मीडियाविजिल डेस्क / साभार The Caravan
सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई करने वाले सीबीआइ के विशेष जज जस्टिस बीएच लोया की तीन साल पहले नागपुर में हुई मौत की संदिग्ध परिस्थितियों पर अंग्रेज़ी की पत्रिका द कारवां द्वारा कई किस्तों में की जा रही उद्घाटक स्टोरी की पहली ठोस पुष्टि शनिवार शाम को हुई जब अधिवक्ता मिलिंद पखाले ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवायी कि नागपुर के सरकारी गेस्ट हाउस रवि भवन में रजिस्टर की प्रविष्टि से छेड़छाड़ की गई है।
जस्टिस लोया तीन साल पहले नागपुर अपने एक सहकर्मी जज की बेटी की शादी में बंबई से आए थे और रवि भवन में ही ठहरे हुए थे। दो दिन पहले द कारवां ने एक विस्तृत स्टोरी कर के उजागर किया था कि कैसे इस सरकारी गेस्टहाउस के उपस्थिति रजिस्टर में लोया के प्रवास से ठीक पहले की गई प्रविष्टियों में हेरफेर पाई गई है और उसी दौरान एक पन्ने पर रिक्तियां भी मौजूद हैं, जो कि अस्वाभाविक हैं।
महाराष्ट्र की मशहूर वकील और खैरलांजी ऐक्शन कमेटी के संयोजक मिलिंद पखाले ने पुलिस में एक अहम शिकायत दर्ज करवायी है जो रिकॉर्ड में हेरफेर के द कारवां के दावे की पुष्टि करती है। पखाले के इस भवन में ठहरने की प्रविष्टि रजिस्टर में लोया के ठहरने से जुड़ी दो प्रविष्टियों से ठीक पहले की है। पखाले ने 20 दिसंबर 2017 को नागपुर के उसी सदर थाने में शिकायत दर्ज करवायी जहां जस्टिस लोया की मौत की फाइल पड़ी हुई है जिसे सीताबल्दी थाने में दर्ज जीरो एफआइआर को ट्रांसफर कर के लाया गया था। पुलिस के अलावा पखाले ने एक शिकायत नागपुर के लोक निर्माण विभाग के कार्यकारी अभियंता के पास भी भेजी है जो रवि भवन का संचालन करते हैं। नागपुर पुलिस ने द कारवां को ऐसी शिकायत आने की पुष्टि की है।
पखाले ने अपनी शिकायत में लिखा है, ”किसी ने 30.11.2014 को हुई जघन्य घटना के संबंध में सरकारी रिकॉर्ड से छेड़छाड़ की है जिसका उद्देश्य मेरे पंजीकरण के साक्ष्य को मिटाना था औश्र इसके लिए दस्तावेज़ में हेरफेर कर के एक फर्जी काग़ज़ का इस्तेमाल किया गया।” पखाले का कहना है कि उन्होंने अपने हाथ से 2014 की वह एंट्री की थी लेकिन आज वही एंट्री उसी रजिस्टर में आगमन और प्रस्थान की तारीख 2017 दर्शा रही है और हाथ की लिखावट भी किसी और की है। उनका कहना है कि आगमन औश्र प्रसथान की तारीख के अलावा बाकी प्रविष्टि उन्हीं की लिखावट में दर्ज है। पखाले लिखते हैं, ”मैं यह शिकायत दर्ज करवाते हुए इस हेरफेर के लिए जिम्मेदार अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ तत्काल जांच की मांग करता हूं।”
जस्टिस लोया की रहस्यमय मौत में जांच के लिहाज से यह शिकायत बहुत अहम है। अब तक लोया के परिवरवालों, मित्रों, सहकर्मियों आदि ने लगातार उनकी मौत की जांच की मांग उठायी है। हाल ही में कुछ अवकाश प्राप्त सम्मानित जजों ने भी इस मामले में जांच की मांग की थी। ध्यान रहे कि जसिटस लोया सोहराबुद्दीन केस की तो सुनवाई कर रहे थे, उसमें सीबीआइ ने मुख्य आरोपी अमित शाह को बनाया था जो आज भारतीय जनता पार्अी के राष्अ्रीय अध्यक्ष हैं।
द कारवां ने 21 दिसंबर को एक लंबी रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए बताया था कि लोया की जिंदगी की आखिरी रात से जुड़े अब तक सार्वजनिक हुए तमाम विवरण कैसे आपस में विराधाभासी और विसंगतिपूर्ण हैं। इसी रिपोर्ट में रवि भवन की उपस्थिति पंजिका में दर्ज प्रविष्टियों में हेरफेर की बात की गई थी। रजिसटर के ये पन्ने पत्रिका को सूचना के अध्रिकार के तहत किए गए एक आवेदन के जवाब में पीडब्लूडी विभाग द्वारा मुहैया कराए गए थे। आवेदन नागपुर के वकील सूरज लोलागे ने किया था। लोलागे ने बंबई हाइकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में लोया के मामले में एक जनहित याचिका भी दाखिल की है।
पत्रिका ने अपनी रिपोर्ट में रवि भवन के रजिस्टर में की गई तीन रिक्त प्रविष्टियों की बात उठायी थी। ये तीनों प्रविष्टियां जस्टिस लोया से जुड़ी दो प्रविष्टियों से ठीक पहले की गई थीं। इनमें आने और जाने की तारीख में 2014 की जगह 2017 की तारीख पड़ी है। रिपोर्ट कहती है कि इस प्रविष्टि में अतिथि का नाम ”बाबासाहेब आंबेडकर मिलिंद …” है जिसमें आखिरी शब्द पढ़ा नहीं जा सका। उस वक्त रिपोर्टर यह अंदाजा नहीं लगा सके कि आखिर यह प्रविष्टि किसकी है।
यही वह एंट्री है जिस पर मिलिंद पखाले ने दावा ठोका है कि यह उनकी है और इसे छेड़ा गया है। पखाले पुलिस शिकायत में कहते हैं कि उन्होंने 30 नवंबर 2014 को यह एंट्री अपने हाथ से पूर्व सांसद प्रकाश आंबेडकर के लिए की थी जिन्हें लोकप्रिय तरीके से बाबासाहेब आंबेडकर कह कर पुकारा जाता है। पखाले के मुताबिक प्रकाश आंबेडकर नागपुर में होते हैं तो रवि भवन में ही ठहरते हैं।
पखाले ने द कारवां से कहा, ”यह संभव ही नहीं है कि कोई 2014 में तारीख लिखते वक्त 2017 डाले।” खुद प्रकाश आंबेडकर ने इस बात को माना है कि वे रवि भवन में ही रुकते हैं और उनके रुकने आदि का इंतज़ाम पखाले करते हैं।
इस रजिस्टर में 2014 में ही तीन साल बाद की तारीख में प्रविष्टि किए जाने की बात असंभावित है। हो सकता है कि संयोग से 2017 में आए किसी अतिथि के आने का वर्ष गफ़लत में खुद अतिथि और रिसेप्शनिस्ट 2020 डाल दे, लेकिन इस मामले में ऐसी गड़बड़ी दो बार हुई है- इस अतिथि के चेक-आउट की तारीख पड़ी है 30/11/17 और समय नहीं दर्ज है।
पेज संख्या 45 पर अंतिम की दो पंक्तियां खाली हैं और उनमें केवल सुइट संख्या 2 और 3 का जि़क्र है। अगले पेज 46 पर पहली पंक्ति खाली है और इसमें सुइट संख्या 5 का जि़क्र है। अगली दो प्रविष्टियां कुलकर्णी और फनसालकर-जोशी के नाम से हैं। इन्हें करीब से देखने पर पत चलता है कि कुलकर्णी के आने की तारीख पहले 30 दिसंबर 2014 लिखी गई थी यानी लोया की मौत के पूरे एक महीने बाद की तारीख। ऐसा लगता है कि महीने की संख्या में 2 को घिसकर 1 किया गया जिससे आने की तारीख 30 नवबर 2014 जान पड़ सके।
सूचना के अधिकार के तहत किए गए एक आवेदन के जवाब में रवि भवन का संचालन करने वाले महाराष्ट्र सरकार के लोक निर्माण विभाग ने रजिस्टर के 26 पन्नों की प्रति मुहैया करायी है, जिसकी प्रति द कारवां के पास है। इनमें से किसी भी पन्ने पर 45 और 46 के अलावा रिक्त प्रविष्टि नहीं है। वैसे भी किसी उपस्थिति पंजिका में रिक्त प्रविष्टि का कोई मतलब नहीं होना चाहिए। ध्यान देने वाली बात है कि ये दोनों रिक्तियां और साथ ही बेमेल तारीखों वाले दोनों उदाहरण लोया के वहां निवास से जुड़ी प्रविष्टियों से ठीक पहले के हैं।
अब तक मीडिया से बॉम्बे हाइकोर्ट के जिन दो जजों ने बात की है, उनमें एक जस्टिस भूषण गवई ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि लोया दो पुरुष जजों के साथ रवि भवन में ठहरे थे। यह संभावना अपने आप खारिज हो जाती है कि इनमें से कोई एक रजिस्टठर के अनुसार महिला जज के सुइट में रुका होगा। इसका मतलब कि तीनों जज एक ही सुइट में रुके थे यानी सुइट संख्या 10 में, जो कि कुलकर्णी के नाम से पंजीकृत था। रवि भवन के हर सुइट में दो बिस्तर हैं। यह साफ़ नहीं हो रहा कि आखिर कोई जज क्यों अपनी रात कमरे के सोफे पर या फर्श पर बिताना चाहेगा या दो बिस्तरों को साझा करना चाहेगा या एक अतिरिक्त बिस्तर लगवाना चाहेगा अगर उस वक्त कम से कम तीन खाली सुइट उपलब्ध हों, जैसा कि रजिस्टर की रिक्तियां कहती हैं।
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