जितेन्द्र कुमार
अभी पिछले दिनों बिहार में था। शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था में जितनी तेजी से क्षरण हुआ है उतनी तेजी से तो हमारे समाज में भी नहीं हुआ है। ऐसा नहीं है कि जगन्नाथ मिश्रा या कांग्रेसियों के समय इन दोनों विभागों का हाल बहुत बढ़िया था, फिर भी थोड़ा बहुत बचा हुआ था। लेकिन पिछले पच्चीस-तीस वर्षों के ‘सामाजिक न्याय’ के शासनकाल में इन विभागों को सबसे ज्यादा चौपट किया गया है और शायद यह सायास किया गया है। चूंकि हमारा बिहारी समाज बहुत ही ‘गतिशील’ है परिणामस्वरूप हर गली में कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं। यही हाल ‘कॉनवेंट’ स्कूलों का है। हर मुहल्ले में किसी के निजी मकान में एक इंगलिश मीडियम स्कूल खुल गया है जिसमें बच्चों की कोई कमी नहीं है। बिहार सरकार के आंकड़े देखिए तो पता चलता है कि वहां हर साल सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही है। अगर निजी और सरकारी स्कूल के छात्र-छात्राओं को जोड़ दें तो राज्य में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या कुल जनसंख्या से थोड़ा ही कम रह जाती है!
कहने का मतलब यह कि पूरे देश में और खासकर बिहार में शिक्षा का हाल बेहाल है। हमारे बिहारी समाज ने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा नहीं मिल सकती है, इसलिए उसे भी सामान की तरह निजी दुकानों से खरीदने की जरूरत है! मजेदार बात यह है कि जो लोग शिक्षा बेच रहे हैं वे ज्यादातर उसी शिक्षा पद्धति से निकले हैं और गिने-चुने अपवादों को छोड़ दें तो उन स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को कुछ भी नहीं आता है। लेकिन बदहवासी इतनी है कि सब कुछ मजे में चल रहा है।
कुकुरमुत्तों की तरह खुल आए कोचिंग संस्थानों के ‘मानद डायरेक्टरों’ की कहानी भी कम नहीं है। निजी संस्थानों के उन सभी ‘मानद डायरेक्टरों’ के बारे में कोई न कोई किंवदंती जरूर मौजूद है। जैसे ‘फलांने सर’ आधा नबंर से यूपीएससी से छंट गए थे तो उन्होंने उसी दिन कसम खाई, ‘अगर मुझे नहीं चुना तो क्या हुआ अब झेलो- अपनी तरह आईएएस, आईपीएस या आईएफएस की कतार खड़ी कर दूंगा! और उस दिन से सर के कोचिंग से इतने ‘बच्चों’ ने यूपीएससी कंपीट कर लिया है कि हिसाब ही गड़बड़ा गया है!’ असफलता की ऐसी कहानियों से सफलता के नए-नए ‘इतिहास’ पाटलिपुत्र की धरती पर ‘गढ़े’ जा रहे हैं! कमोबेश सभी ‘डायरेक्टरों’ की कहानी निराशा से शुरू होकर सफलता के शिखर पर पहुंचने की है!
अब देखिए न, कल मेरे पास एक एसएमएस आया। एसएमएस सरकारी था जो अंग्रेजी में थाः सीबीएससी का हेल्पलाइन नंबर 1800118002 है जिस पर दबाव और काउंसलिंग के लिए संपर्क किया जा सकता है। विद्यार्थी 16 फरवरी को सुबह 10.30 बजे से दोपहर 12.30 तक प्रधानमंत्री का ‘परीक्षा पर चर्चा’ कार्यक्रम दूरदर्शन के नेशनल और न्यूज चैनल पर जरूर देखें जिसमें वे छात्रों से परीक्षा के बारे में चर्चा करेगें।
मोदी जी प्रधानसेवक बनने के बाद पिछले तीन वर्षों से अधिक समय से विभिन्न मसलों पर मनमर्जी से अपने ‘मन की बात’ तो करते ही रहे हैं लेकिन इस हफ्ते ‘चाय पर चर्चा’ की तर्ज पर ‘परीक्षा पर चर्चा’ करेंगे। परीक्षा पर चर्चा तो उनको करनी चाहिए जिनका शिक्षा पर काम हो, जो बच्चों को बता पाए कि कैसे इस दबाव को हैंडिल किया जाए! लेकिन आप प्रधानसवेक हैं और सारे संसाधन आपके पास हैं तो आप कुछ भी कर सकते हैं!
सुना है कि प्रधानसेवक ने ‘एग्ज़ाम वारियर्स’ नाम से एक किताब की रचना भी कर दी है। किताब में क्या है इसके बारे में पता नहीं, लेकिन जैसा कि शीर्षक है और अगर किताब सचमुच उसी विषय पर है तो यह हम देशवासियों के लिए बड़ी चुनौती है कि प्रधानसेवक जी के उस ज्ञान को किस रूप में हमें ग्रहण करना चाहिए? प्रधानसेवक जी उस परीक्षा के बारे में शायद बता रहे हैं जिसमें खुद उनके पास होने की अपनी प्रतिभा ही संदिग्ध रही है। खुद का उनका क्लेम है कि वे एमए पास हैं जबकि आरटीआई लगाने के बाद भी उनकी डिग्री सार्वजनिक नहीं की जाती है।
किसी के पास कोई औपचारिक शिक्षा न हो फिर भी वे शिक्षाशास्त्री हो सकते हैं और पूरे समाज को रोशनी दिखा सकते हैं। उदाहरण के लिए पंडिता रमा बाई, सावित्री बाई फुले और ज्योतिबा फूले के पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में किए उनके योगदान क्रांतिकारी हैं जिसे आज भी लोग उसी शिद्दत के साथ याद करते हैं। प्रधानसेवक खुद की शिक्षा को लेकर पिछले चार वर्षों से सवालों के घेरे में हैं, जिसका जवाब नहीं मिला है। इस स्थिति में अगर वह इस तरह का कोई कार्यक्रम करते हैं तो बच्चों के मानस पर कोई सार्थक प्रभाव पड़ेगा, इसकी संभावना नहीं के बराबर है। हो सकता है कि उलटे विद्यार्थी कुछ गलत न समझ लें और कोई वैसा कदम उठा लें जो बच्चों के लिए घातक साबित हो।
अगर प्रधानसेवक जी को किसी विषय पर जनता से संवाद स्थापित ही करना हो तो उन्हें सिर्फ और सिर्फ राजनीति पर बात करनी चाहिए क्योंकि सारे वायदे और उसकी असफलता के बावजूद वह जनता में राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बने हुए हैं।
वैसे भी प्रधानसेवक जी को यह बताना कौन सा आसान काम है और कौन सा वो मान ही जाएंगे!
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और सामाजिक न्याय के विषयों के जानकार हैं.