अभिषेक श्रीवास्तव
दो साल हो गए केंद्र और दिल्ली की सरकार के बीच तलवारें खिंचे हुए। एक टकराव केंद्र के प्रतिनिधि दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर और दिल्ली की चुनी हुई सरकार के बीच पहले से था। दूसरा टकराव पिछले महीने दिल्ली सरकार का अपने ही मुख्य सचिव के साथ हो गया। मुख्य सचिव विधानसभा से खुद को मिले नोटिस को लेकर हाइकोर्ट चले गए। दिल्ली सरकार में नंबर दो मनीष सिसोदिया ने नौकरशाहों को राशन माफिया के बीच गठजोड़ की बात कर के आइएएस असोसिएशन को खाप पंचायत बता दिया। हाइ कोर्ट ने केजरीवाल सरकार से ठंड रखने को कह दिया। रोज़मर्रा के इस विदूप के बीच दिल्ली की जनता का हाल क्या है?
आम आदमी पार्टी के मंत्री, विधायक से लेकर सांसद तक के निजी रूप से कहने पर भी दिल्ली में काम नहीं हो रहे। कोई काम कर ही नहीं रहा है। सबसे बुरा हाल दिल्ली के बहुप्रचारित स्वास्थ्य मॉडल का है। कहा गया था कि कोई ऐसा कानून बना है कि जिस मरीज़ का इलाज करने में सरकारी अस्पताल नाकाम होंगे, केजरीवाल सरकार उसका इलाज सरकारी खर्च पर निजी अस्पताल में करवाएगी। दावा खोखला निकल गया है। दो छवियां दिखलाते हैं। दो कहानियां सुनाते हैं।
जीटीबी अस्पताल के चक्कर काटता एक बुजुर्ग आंदोलनकारी
पहली कहानी एक बजुर्ग दिल्लीवासी की है। अर्जुन प्रसाद सिंह दिल्ली से पटना और पंजाब तक वाम दायरे के परिचित सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता हैं जिन्होंने पूरी जिंदगी मजदूर्रों और किसानों के आंदोलनों के लिए लगा दी। वे पिछले कुछ साल से दिल्ली में रह रहे हैं। उनकी पत्नी कुछ दिनों से बीमार चल रही हैं। पिछले दिनों उन्हें इलाज के लिए दिल्ली के अस्पताल जाना पड़ा तो वहां लगातार दो बार डॉक्टर नदारद मिले। खुद पढि़ए एक बुजुर्ग की आपबीती उनकी दो पोस्टों में:
3 मार्च, 2018
आज सुबह-सुबह जीटीबी अस्पताल की नंदनगरी डिस्पेंसरी ने मेरा दिन खराब किया। आज मुझे एक हड्डी के डॉक्टर से मिलना था क्योंकि आज ही उनके आने का दिन था। मैं जब निबंधन कर्मचारी के पास गया तो उन्होंने बताया कि आज हड्डी के डॉक्टर नहीं आएंगे, उनका डेट तो कल था। मैंने कहा कि आपके पास के बोर्ड में तो आज ही का दिन लिखा है। उन्होंने तपाक से जवाब दिया कि बोर्ड तो काफी पुराना है, उससे तय मत कीजिए। तो मैंने पूछा कि आप इस बोर्ड को बदल क्यों नहीं देते? इस पर तो वे नाराज़ हो गए और घूर कर झिड़के कि आपको इलाज कराना है कि बोर्ड बदलवाना है; जाइये अगले शुक्रवार की सुबह आइये, आपका इलाज हो जायेगा। और मैं वापस लौट आया। फायदा यह हुआ कि करीब चार किलोमीटर का मॉर्निंग वॉक हो गया!
6 मार्च, 2018
नन्दनगरी स्थित जीटीबी अस्पताल की डिस्पेंसरी में आज भी हड्डी के डॉक्टर के बैठने का दिन था लेकिन वे आज भी नहीं आए। लाइन में करीब तीन घंटे से खड़े मरीजों ने बताया कि ये डॉक्टर साहब पिछले डेट पर भी नहीं आए थे और उन्हें 1 बजे तक प्रतीक्षा कर बिना दवा के घर लौटना पड़ा था। आज मुझे भी इस डॉक्टर से दिखाना था। आज दूसरी बार करीब 4 घंटे समय बर्बाद कर डिस्पेंसरी से लौट रहा हूँ। लगता है, दिल्ली सरकार का स्वास्थ्य विभाग अपने दायित्व को निभाने में पूरी तरह विफल हो रहा है। विडम्बना यह है कि केजरीवाल सरकार दिल्ली की जनता को बेहतर स्वास्थ्य लाभ दिलाने के संदर्भ में बड़े-बड़े दावे कर रही है। सच्चाई यह है कि न तो सरकारी अस्पताल ठीक से काम कर रहे हैं और न ही इनकी मुहल्ला क्लीनिक जनता की मेडिकल जरूरतों को पूरा कर रही हैं। ऐसी स्थिति में इस सरकार से जनता का मोह भंग होना स्वाभाविक है।
एलएनजेपी अस्पताल में मौत से जूझती बच्ची
दिल्ली विश्वविद्यालय की एक छात्रा मेघा 24 फरवरी से नोएडा के मेट्रो अस्पताल के आइसीयू में वेंटिलेटर पर थी। निम्न आय वर्ग के इस परिवार के दस दिन में पांच लाख से ज्यादा खर्च हो चुके थे। यह परिवार अपनी बिटिया का इलाज सरकारी अस्पताल में करवाना चाहता था। कोंडली के विधायक के माध्यम से पिता नवरतन सिंह की बात आइसीयू के लिए हुई, तो तय पाया गया कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में आइसीयू मिल जाएगा। लड़की के पिता के मुताबिक स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के पीए ने अस्पताल में फोन कर के वहां आइसीयू सुनिश्चित किया और लड़की को वेंटिलेटर पर वहां ले जाने को कहा। जब मरीज़ अस्पताल पहुंचा, तो उसे आइसीयू के बजाय जनरल वॉर्ड संख्या 31 के बेड संख्या 10 पर डाल दिया गया और मैनुअल वेंटिलेटर पर लगा दिया गया।
दो दिन तक आइसीयू का इंतज़ार करने के बाद लड़की के पिता नवरतन सिंह ने मुझसे संपर्क किया। यह बात 6 मार्च की है। उस शाम प्रेस क्लब में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह संयोग से मिल गए। संयोग था कि उस शाम पत्रकार नीलाभ मिश्र की स्मृति सभा थी और कई वरिष्ठ पत्रकार इकट्ठा थे। मैंने उन्हें केस बताया। कुछ और पत्रकारों से डिस्कस किया। संजय सिंह ने एक सरकारी चिकित्सक किन्हीं डॉ. दास को विवरण भिजवाया और चलते-चलते एलएनजेपी के निदेशक को फोन कर के मामला बता दिया। यह तय हुआ कि डॉ. दास सब कुछ देख लेंगे। निदेशक ने मरीज़ के पिता को 7 मार्च की सुबह अपने कमरे में मिलने भेजने को कहा।
7 मार्च की सुबह वेंटिलेटर हटा लिया गया। डॉक्टरों और नर्सों की आम राय थी कि जनरल वॉर्ड में संक्रमण का खतरा है, इसलिए आइसीयू अब भी बहुत ज़रूरी है। लड़की के दिमाग में गहरी चोट है और उसकी इंद्रिया प्रतिक्रिया नहीं दे रही हैं। मरीज़ के पिता तीन बार निदेशक से मिलने गए। निदेशक मीटिंग में थे। फिर मैंने निदेशक को 7 मार्च की सुबह फोन लगाकर बात की। उन्होंने फिर भेजने को कहा। अबकी फिर वे मीटिंग में पाए गए। डॉ. दास का नवरतन के पास सुबह फोन आया कि वे देखने आ रहे हैं। अब तक उनका इंतज़ार है।
इस बीच एक पत्रकार मित्र के माध्यम से आम आदमी पार्टी के एक युवा पदाधिकारी से संपर्क कर के अस्पताल के एचओडी से मरीज़ का स्टेटस मंगाया गया। पता चला कि मरीज़ की किडनी में पानी आ जा रहा है और उसे डायलिसिस की ज़रूरत है। मामले की पुष्टि जब लड़की के पिता से की गई तो उन्होंने बताया कि सारे टेस्ट हो चुके हैं और डॉक्टर ने किडनी, लीवर आदि को ओके बताया है। समस्या फेफड़े में है। दिक्कत यदि किडनी में थी तो अब तक डायलिसिस शुरू हो जाना चाहिए था। इस बात को भी 48 घंटे होने को हैं और डायलिसिस शुरू नहीं हुआ है। इसके बजाय लड़की के पिता को एमआरआइ करवाने को कहा गया है। लड़की के फेफड़ों में इनफेक्शन होता जा रहा है।
8 मार्च को दिन में मरीज़ के परिजनों ने अस्पताल के निदेशक से आखिरकार मुलाकात की। निदेशक ने तरजीही आधार पर ICU दिलवाने का भरोसा दिलाया। कहा गया कि शाम सात बजे तक ICU मिल जाएगा। ताज़ा हालात ये है कि लड़की तिल-तिल कर मर रही है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के विधायक से लेकर सांसद और कार्यकर्ता तक सब मिलकर एक अदद आइसीयू दिलवा पाने में नाकाम हो चुके हैं।
नवरतन से मेरी थोड़ी देर पहले बात हुई। बता रहे थे कि एक बार फिर मेधा को वेंटीलेटर पर डाल दिया गया है। वे कह रहे थे कि उसे रह-रह कर दौरे आ रहे हैं। अचानक बुखार चढ़ जा रहा है। बिटिया को लेकर जब वे यहां आए थे तो उसके फेफड़े बिलकुल दुरुस्त थे। सुगर 100 के नीचे था।अब रह-रह कर खांसी आ रही है। सुगर 277 पर पहुँच चुका है। अस्पताल वाले मरीज़ के मरने का इंतज़ार कर रहे हैं। परिवार ने डॉक्टरों से आस छोड़ दी है। कोई संपर्क काम नहीं आ रहा और इनफेक्शन बढ़ता जा रहा है।
ऐसा नहीं है की दिल्ली सरकार के नुमाइंदों और आम आदमी पार्टी के लोगों ने प्रयास नहीं किया। गुरूवार को दिन भर ICU दिलवाने की कोशिशें जारी रही हैं। शुक्रवार की सुबह तक इसका इन्तज़ाम नहीं हो सका था। जनता की चुनी हुई सरकार की अपने ही महकमों में अगर सुनवाई नहीं है तो क्या चुनाव और क्या लोकतंत्र?