प्यू रिसर्च सेंटर के ताज़ा सर्वे का नतीजा है कि भारत के 10 में से 9 लोग मोदी जी के साथ हैं। यह किसी नेता की लोकप्रियता का चरम है। कुल 2,464 लोगों से बात करके प्यू ने यह नतीजा निकाला है। इससे पहले भी प्यू रिसर्च कई ऐसे सर्वे ऐन चुनाव के मौकों पर जारी कर चुका है जिन्होंने प्रकारांतर से भाजपा के पक्ष में मत निर्माण में भूमिका निभायी है। दिलचस्प है कि प्यू के रिसर्च का नमूना आकार दो-ढाई हज़ार से ज्यादा नहीं होता। पिछले साल इस एजेंसी ने मुसलमानों की आबादी के बारे में एक सर्वे जारी किया था जिस पर खूब बहस हुई थी।
2014 मे लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्यू ने भारत में अपने कदम रखे और नरेंद्र मोदी की स्वीकार्यता को स्थापित करने के लिए एक सर्वे जारी किया जिसके अनुसार केंद्र में 63 फीसदी जनता भारतीय जनता पार्टी की सरकार चाहती थी और 78 फीसदी लोग नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री देखना चाहते थे। यह सर्वे भी 2464 लोगों के बीच किया गया था। हम पहले भी बता चुके हैं कि न्यू रिसर्च सेंटर क्या है। आज गुजरात चुनाव के ठीक पहले जब फिर से प्यू का वायरस मीडिया में घुस आया है, पाठकों को उसका एजेंडा याद दिलाना ज़रूरी हो गया है।
प्यू रिसर्च सेंटर वॉशिंगटन स्थित एक अमेरिकी थिंक टैंक है जो अमेरिका और बाकी दुनिया के बारे में आंकड़े व रुझान जारी करता है। इसे प्यू चैरिटेबल ट्रस्ट्स चलाता और वित्तपोषित करता है, जिसकी स्थापना 1948 में हुई थी। इस समूह में सात ट्रस्ट आते हैं जिन्हें 1948 से 1979 के बीच सन ऑयल कंपनी के मालिक जोसेफ प्यू के चार बेटे-बेटियों ने स्थापित किया था। सन ऑयल कंपनी का ब्रांड नाम सनोको है जो 1886 में अमेरिका के पेनसिल्वेनिया में बनाई गई थी। इसका मूल नाम पीपुल्स नैचुरल गैस कंपनी था। कंपनी के मालिक जोसेफ प्यू के सबसे बड़े बेटे जे. हॉवर्ड प्यू (ट्रस्ट के संस्थापक) 1930 के दशक में अमेरिकन लिबर्टी लीग की सलाहकार परिषद और कार्यकारी कमेटी के सदस्य थे और उन्होंने लीग को 20,000 डॉलर का अनुदान दिया था। यह लीग वॉल स्ट्रीट के बड़े अतिदक्षिणपंथी कारोबारियों द्वारा बनाई गई संस्था थी जिसका काम अमेरिकी राष्ट्रपति रूज़वेल्ट का तख्तापलट कर के वाइट हाउस पर कब्ज़ा करना था। विस्तृत जानकारी 1976 में आई जूलेस आर्चर की पुस्तक दि प्लॉट टु सीज़ दि वाइट हाउस में मिलती है। हॉवर्ड प्यू ने सेंटिनेल्स ऑफ दि रिपब्लिक और क्रूसेडर्स नाम के फासिस्ट संगठनों को भी तीस के दशक में वित्तपोषित किया था।
प्यू परिवार का अमेरिकी दक्षिणपंथ में मुख्य योगदान अतिदक्षिणपंथी संगठनों, उनके प्रचारों और प्रकाशनों को वित्तपोषित करने के रूप में रहा है। नीचे कुछ फासिस्ट संगठनों के नाम दिए जा रहे हैं जिन्हें इस परिवार ने उस दौर में खड़ा करने में आर्थिक योगदान दिया:
1. नेशनल एसोसिएशनऑफ मैन्युफैक्चरर्स: यह फासीवादी संगठन उद्योगपतियों का एक नेटवर्क था जो न्यू डील विरोधी अभियानों में लिप्त था और आज तक यह बना हुआ है।
2. अमेरिकन ऐक्शन इंक: चालीस के दशक में अमेरिकन लिबर्टी लीग का उत्तराधिकारी संगठन।
3. फाउंडेशन फॉर दि इकनॉमिक एजुकेशन: एफईई का घोषित उद्देश्य अमेरिकियों को इस बात के लिए राज़ी करना था कि देश समाजवादी होता जा रहा है और उन्हें दी जा रही सुविधाएं दरअसल उन्हें भूखे रहने और बेघर रहने की आज़ादी से मरहूम कर रही हैं। 1950 में इसके खिलाफ अवैध लॉबींग के लिए जांच भी की गई थी।
4. क्रिश्चियन फ्रीडम फाउंडेशन: इसका उद्देश्य अमेरिका को एक ईसाई गणराज्स बनाना था जिसके लिए कांग्रेस में ईसाई कंजरवेटिवों को चुनने में मदद की जाती थी।
5. जॉन बिर्च सोसायटी: हज़ार इकाइयों और करीब एक लाख की सदस्यता वाला यह संगठन कम्युनिस्ट विरोधी राजनीति के लिए तेल कंपनियों द्वारा खड़ा किया गया था।
6. बैरी गोल्डवाटर: वियतनाम के खिलाफ जंग में इसकी अहम भूमिका थी।
7. गॉर्डन-कॉनवेल थियोलॉजिकल सेमिनरी: यह दक्षिणपंथी ईसाई मिशनरी संगठन था जिसे प्यू ने खड़ा किया था।
8. प्रेस्बिटेरियन लेमैन: इस पत्रिका को सबसे पहले प्रेस्बिटेरियन ले कमेटी ने 1968 में प्रकाशित किया, जो ईसाई कट्टरपंथी संगठन था।
जोसेफ प्यू की 1970 में मौत के बाद उनका परिवार निम्न संगठनों की मार्फत अमेरिका में फासिस्ट राजनीति को फंड कर रहा है:
1. अमेरिकन इंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट, जिसके सदस्यों में डिक चेनी, उनकी पत्नी और पॉल उल्फोविज़ जैसे लोग हैं।
2. हेरिटेज फाउंडेशन, जो कि एक नस्लवादी, श्रम विरोधी, दक्षिणपंथी संगठन है।
3. ब्रिटिश-अमेरिकन प्रोजेक्ट फॉर दि सक्सेसर जेनरेशन, जिसे 1985 में रीगन और थैचर के अनुयायियों ने मिलकर बनाया और जो दक्षिणपंथी अमेरिकी और ब्रिटिश युवाओं का राजनीतिक पोषण करता है।
4. मैनहैटन इंस्टिट्यूट फॉर पॉलिसी रिसर्च, जिसकी स्थापना 1978 में विलियम केसी ने की थी, जो बाद में रीगन के राज में सीआइए के निदेशक बने।
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