‘चौकाघाट-लहरतारा फ्लाइओवर’ निर्माण के दौरान रूट डाइवर्जन का विकल्प होने के बावजूद वाहनों का नहीं बदला गया रूट
केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रियों और प्रशासनिक अधिकारियों की समीक्षा बैठकों पर भी उठ रहे सवाल
शिव दास / बनारस से
‘चौकाघाट-लहरतारा फ्लाइओवर’ निर्माण में प्रशासनिक अधिकारियों की खींचातानी और सुरक्षा मानकों की अनदेखी ने गत मंगलवार को दर्जनों लोगों की जान ले ली! कैंट रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर वसुंधरा रेलवे कॉलोनी के गेट संख्या एक के सामने निर्माणाधीन फ्लाइओवर से दो बीम गिरने की घटना और उसमें दर्जनों लोगों की मौतों की वजह की तहकीकात कुछ ऐसे ही संकेत दे रहे हैं। वहीं, हादसे के बाद प्रशासनिक अधिकारियों और सत्ताधारी राजनीतिक नुमाइंदों की बयानबाजियां उनकी संवेदनशीलता और भूमिका पर सवाल खड़ा कर रही हैं।
फ्लाइओवर निर्माण में लापरवाही बरतने के मामले में पुलिस प्रशासन ने बेरीकेडिंग से खफा होकर उत्तर प्रदेश सेतु निगम पर 19 फरवरी 2018 को भी एक एफआईआर दर्ज किया था लेकिन उसमें कोई कार्रवाई नहीं हुई। उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री समेत विभिन्न मंत्री और अधिकारी हर महीने वाराणसी में निर्माणाधीन योजनाओं की समीक्षा करते रहते हैं लेकिन उनमें बरती जा रही लापरवाहियों के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इसका नतीजा यह रहा कि ताज़ा हादसा घटित हो गया जिसमें निर्माणाधीन फ्लाइओवर के पिलर संख्या-79 और 80 पर रखे दो बीम मंगलवार की शाम करीब सवा पांच बजे वहां से गुजर रहे करीब एक दर्जन वाहनों पर जा गिरे। इनमें दोपहिया वाहन से लेकर छह चक्का यात्री वाहन तक शामिल थे। इससे दर्जनों लोगों की मौत मौके पर ही हो गई। हालांकि प्रशासन मृतकों की संख्या 15 बता रहा है जबकि घायलों में 11 लोगों के नाम शामिल हैं। घटना में घायल पीड़ितों और प्रत्यक्षदर्शियों की अनुमानों पर विश्वास करें तो दुर्घटना में मरने वालों की संख्या 50 से ज्यादा होगी।
फ्लाइओवर निर्माण के दौरान सुरक्षा मानकों के तहत सर्विस लेन के लिए रूट डायवर्जन का प्रावधान है। इसके बावजूद जिला प्रशासन समेत उत्तर प्रदेश सेतु निगम के अधिकारियों ने वाहनों का रूट डायवर्जन नहीं किया जबकि घटनास्थल के पास रूट डायवर्जन का विकल्प मौजूद था। हादसे के बाद जिला प्रशासन ने रूट डायवर्जन के लिए इन्हीं रूटों को वाहनों के आवाजाही के लिए खोल दिया है। इसके लिए इस समय दो रूटों का इस्तेमाल हो रहा है। पहला घटना स्थल से करीब 100 मीटर पहले रेलवे कॉलोनी से होते हुए वाहन कैंट रेलवे स्टेशन के सामने जीटी रोड पर निकल रहे हैं। वहीं दूसरा वसुंधरा रेलवे कॉलोनी से होते हुए इंगलिशिया लाइन चौराहे पर निकलता है। इस समय इन्हीं दोनों रूटों का इस्तेमाल छोटे वाहनों के आवागमन के लिए इस्तेमाल हो रहा है। अगर उत्तर प्रदेश सेतु निगम, जिला प्रशासन और कैंट रेलवे प्रशासन के अधिकारी घटनास्थल के फ्लाइओवर निर्माण के दौरान वाहनों का रूट डाइवर्जन इन रूटों पर किये होते तो दर्जनों की संख्या में लोगों की जान नहीं गई होती।
दुर्घटना के बाद रूट डायवर्जन को लेकर उत्तर प्रदेश सेतु निगम और वाराणसी यातायात पुलिस प्रशासन के अधिकारियों के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया है। यातायात पुलिस प्रशासन के अधिकारी उत्तर प्रदेश सेतु निगम के अधिकारियों पर रूट डायवर्जन के लिए संपर्क नहीं करने का आरोप लगा रहे हैं तो वहीं उत्तर प्रदेश सेतु निगम के अधिकारी कई बार पत्र लिखने के बाद भी यातायात पुलिस प्रशासन द्वारा सहयोग नहीं मिलने की बात कह रहे हैं।
नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर फ्लाइओवर निर्माण में शामिल और मौके पर मौजूद एक मजदूर ने बताया कि हादसे में 60 लोग दबे थे। इनमें केवल एक ही व्यक्ति चिल्ला रहा था। अन्य सभी खामोश थे। वहीं दुर्घटना में घायल सीताराम मौर्या ने हादसे में हताहत होने वालों की संख्या 100 बतायी। उन्होंने कहा कि बीम का कुछ हिस्सा सरकारी बस (जो अहरौरा से वाराणसी कैंट के बीच चलती है) पर ड्राइवर वाले हिस्से के पीछे गिरा था जिससे भारी मात्रा में खून बस के बाहर आया। उसमें करीब 20 से तीस आदमी रहे होंगे। रोडवेज प्रशासन हालांकि केवल दो यात्रियों के मरने और एक व्यक्ति के घायल होने की बात कह रहा है जो विश्वसनीय नहीं लगता है। दरअसल हादसा जिस जगह हुआ है, वहां बस के खाली होने का सवाल ही नहीं होता है। अहरौरा से कैंट आने वाली बस में सवार होने वाले यात्री अधिकतर इंग्लिशिया लाइन तिराहे के पास उतरते हैं। घटनास्थल वहां से करीब 200 मीटर दूर है और वहां केवल रेलवे कॉलोनी और कैंसर हॉस्पिटल जाने वाले यात्री ही उतरते हैं जो बहुत ही कम संख्या में होते हैं।
उधर सत्ताधारी भाजपा और पूर्ववर्ती सपा के नेताओं के बीच दुर्घटना के लिए आरोपों और प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे ने विपक्ष पर हमला करते हुए कहा है कि ‘फ्लाइओवर दुर्घटना की जांच की आंच’ पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक पहुंच सकती है। वहीं समाजवादी पार्टी के नेताओं ने भाजपा सरकार पर कमीशखोरी के चक्कर में सामान आपूर्ति करने वाली फर्मों को बदलने का आरोप लगाया है।
फ्लाइओवर निर्माण में प्रशासनिक समन्वय के साथ दुर्घटना के बाद सरकार के नुमाइंदों के बीच भी आपसी समन्वय का भारी अभाव दिखा। दुर्घटना की रात उत्तर प्रदेश सरकार के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने फ्लाइओवर हादसे में मरने वालों की संख्या जहां 18 बताई, वहीं मुख्यमंत्री समेत प्रशासनिक अधिकारी मृतकों की संख्या 15 बता रहे हैं। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में प्रशासनिक अधिकारियों में बड़े पैमाने पर आपसी समन्वय का अभाव है। शहर के साथ-साथ जिले में संचालित विकासपरक योजनाओं और निर्माणाधीन परियोजनाओं में कमीशनखोरी के बाजार ने प्रशासनिक अधिकारियों समेत सरकार के राजनीतिक नुमाइंदों को कई खेमों में बांट दिया है। इस वजह से नगर समेत जिले में विकासपरक योजनाएं दम तोड़ रही हैं।
फिलहाल जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्रा द्वारा अग्रसारित शिकायत के आधार पर फ्लाइओवर हादसे में उत्तर प्रदेश सेतु निगम के अधिकारियों पर भारतीय दंड विधान की धारा-304, 308 और 427 के तहत सिगरा थाना पुलिस ने प्रथम सूचना रपट दर्ज कर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए दबिश दे रही है। उधर मुख्यमंत्री ने कृषि उत्पादन आयुक्त राज प्रताप सिंह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर 48 घंटे में रिपोर्ट मांगी। इनमें सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता भूपेंद्र शर्मा और उत्तर प्रदेश जल निगम के प्रबंध निदेशक राजेश मित्तल शामिल थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने परियोजना के चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर एचसी तिवारी, असिस्टेंट प्रोजेक्ट मैनेजर केआर सूडान, राजेंद्र सिंह और लालचंद को निलंबित कर दिया है। दुर्घटना में उत्तर प्रदेश सेतु निगम के प्रबंध निदेशक राजन मित्तल को भी कार्यमुक्त कर दिया गया है। उनकी जगह जेके श्रीवास्तव को तैनात किया गया है।
गौरतलब है कि 77.41 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली 1710 मीटर लंबी ‘चौकाघाट-लहरतारा फ्लाइओवर’ परियोजना वाराणसी में राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी और महत्वपूर्ण परियोजना है जो कैंट रेलवे स्टेशन के सामने जीटी रोड पर लगने वाले जाम से लोगों को राहत दिला सकती है। अभी तक कुल 63 पिलरों में 45 पिलरों का ही निर्माण हुआ है। शेष 18 पिलर का निर्माण आगामी 30 जून तक करना है। इस परियोजना का शुभारंभ अखिलेश सरकार में 1 अक्टूबर 2015 को हुआ था जिसे 31 दिसंबर 2018 तक पूरा करना है।