नदीमर्ग हत्‍याकांड के 15 साल: केंद्र-राज्‍य दोनों जगह BJP, कश्‍मीरी पंडितों को फिर भी इंसाफ़ नहीं?



कश्‍मीरी पंडितों के संगठन कश्‍मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) के अध्‍यक्ष संजय टिक्‍कू ने सवाल उठाया है कि आज पंद्रह साल नदीमर्ग के हत्‍याकांड को बीत गए जिसमें 24 कश्‍मीरी पंडित मारे गए थे लेकिन आज तक सुरक्षा एजेंसियां औश्र जांच एजेंसियां इस हत्‍याकांड के आरोपियों को पकड़ने और दंडित करने से आखिर क्‍यों बचती रही हैं। टिक्‍कू ने श्रीनगर में गुरुवार को की एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में कहा, ”इसकी वजह खुद सरकार ही बेहतर जानती होगी।”

आज से ठीक पंद्रह साल पहले कश्‍मीर के नदीमर्ग में 24 कश्‍मीरी पंडितों की हत्‍या कर दी गई थी। मारे गए 24 पंडितों में 75 साल की एक महिला से लेकर दो साल का एक बच्‍चा भी था। 1997 से लेकर 2003 तक छह साल के दौरान कुल 66 निर्दोष कश्‍मीरी पंडितों की हत्‍या अलग-अलग घटनाओं में की गई।

टिक्‍कू ने कहा, ”जिन लोगों ने कश्‍मीरी पंडितों को अपना निशाना बनाया था, वे आज संपनन जीवन जी रहे हैं और कुछ को तो सरकारी विभागों में भी जगह मिल चुकी है।” आज तक कश्‍मीरी पंडितों की हत्‍या के संबंध में जितनी भी जांचें हुई हैं सब गड़बड़ थीं और तकरीबन सभी जांच अब बंद हो चुकी है जिसका कारण जांच एजेंसियां ही बेहतर जानती हैं।”

उन्‍होंने कहा, ”केपीएसएस का मानना है कि कश्‍मीरी पंडितों और सरकारी एजेंसियों के बीच भरोसे के संकट का सबसे बड़ा कारण यही है।” उन्‍होंने सभी राष्‍ट्रीय व अंतरराष्‍ट्रीय मंचों से आग्रह किया कि वे राज्‍य सरकार पर दबाव डालें कि इन अपराधों पर वह एक श्‍वेतपत्र लेकर आवे और एक सत्‍य व तथ्‍य जांच आयोग की स्‍थापना करे ताकि  बीते 27 साल में मारे गए लोगों को इंसाफ मिल सके।

ध्‍यान रहे कि कश्‍मीरी पंडित संघर्ष समिति हर साल 23 मार्च को नदीमर्ग हत्‍याकांड पर जांच की माग करती है। पिछले साल भी टिक्‍कू ने एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस कर के कहा था कि सुरक्षा एजेंसियां 2003 के नदीमर्ग हत्‍याकांड के दोषियों को बचा रही हैं। समिति का दावा है कि उसने खुद इस हत्‍याकांड की ज़मीनी स्‍तर पर एक जांच की थी जिसमें पाया गया था कि यह हत्‍याकांड ”2002 के गुजरात दंगों की प्रतिक्रिया में कुछ स्‍थानीय युवकों द्वारा अंजाम दिया गया था।”

पिछले साल भी समिति ने सत्‍य एवं तथ्‍य जांच आयोग बैठाने की माग की थी। कश्‍मीर में भाजपा समर्थित पीडीपी सरकार को आए काफी दिन हुए लेकिन अब तक कश्‍मीरी पंडितों की इस मांग की सुनवाई नहीं हुई है।

नदीमर्ग हत्‍याकांड के बाद सरकार ने इसका दोष तुरंत पाकिस्‍तान प्रायोजित आतंकवादियों पर लगा दिया था, लेकिन एक दिलचस्‍प घटनाक्रम में आतंकी समूहों ने इसमें अपना हाथ होने के आरोप से साफ़ इनकार कर दिया जिससे अपनी बात को साबित करने का सारा बोझ भारतीय एजेंसियों के कंधे पर आ गया। आम तौर से संघर्ष वाले क्षेत्रों में जहां एक से ज्‍यादा समूह काम करते हैं, किसी भी हिंसक कार्रवाई की जिम्‍मेदारी अपने ऊपर लेना एक राजनीतिक कार्रवाई मानी जाती है। चूंकि किसी संगठन ने नदीमर्ग हत्‍याकांड की जिम्‍मेदारी नहीं ली, तो भारत सरकार के सामने अपनी बात को साबित करने की आपात स्थिति पैदा हो चुकी थी।

शाहनवाज़ आलम ”बियॉन्‍ड हेडलाइंस” पर अपने लेख ”नेशनल इंटरेस्‍ट, फिफ्थ कॉलम एंड दि रोमांटिक किलर्स” में लिखते हैं, ”इस दबाव में इन्‍होंने अब्‍दुल सुलतान, अनवर अली और एक अज्ञात को 29 मार्च 2003 में मुंबई के गोरेगांव हत्‍याकांड का ‘मास्‍टरमाइंड’ करार देते हुए मार दिया। फिर इन्‍होंने एक ‘लश्‍कर आतंकी’ जिया मुस्‍तफा उर्फ अरबाज़ उर्फ अब्‍दुल्‍ला उमर को 10 अप्रैल 2003 को नदीमर्ग का मास्‍टरमाइंड करार देते हुए मार गिराया। इसके बाद पाकिस्‍तानी मूल के एक और व्‍यक्ति को मास्‍टरमाइंड बताते हुए मार दिया गया और अंत में मंजूर जाहिद चौधरी को मार दिया गया जो कुख्‍यात था। कुख्‍यात इसलिए क्‍रूोंकि 9 अगस्‍त 2003 को जल्‍दीबाज़ी में रखी गई एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में बीएसएफ के डीआइजी के श्रीनिवासन ने उसे न केवल नदीमर्ग हत्‍याकांड बल्कि दळ से ज्‍यादा दूसरे आतंकी हमलों का दोषी ठहरा कदिया, जिसमें अक्षरधाम पर हुआ हमला भी था।” (http://articles.economictimes.indiatimes.com/2003-08-09/news/27545657_1_bsf-party-akshardham-temple-nadimarg)

एक अन्‍य रिपोर्ट के अनुसार चौधरी को 8 अगस्‍त 2003 को बीएसएफ की हिरासत में मारा गया था (Times of India. New Delhi. Masood Hussain. 12 September 2003)। नदीमर्ग कांड के तुरंत बाद इतने सारे ‘मास्‍टरमाइंडों’ की हत्‍या कर के सरकार खुद फंस चुकी थी। उसी दौरान केपीएसएस के संजय टिक्‍कू ने तमाम आतंकी धमकियों को धता बताते हुए कहा था:

”दोषियों को पकड़ने के लिए कुछ नहीं किया गया सिवाय एक पाकिस्‍तानी मूल के व्‍यक्ति को बलि का बकरा बना दिया गया और इस पर कठपुतली प्रशासन ने कमज़ोर साक्ष्‍यों और जांच का परदा डाल दिया। पिछले 25 साल में कश्‍मीरी मुस्लिमों की तरह ही कश्‍मीरी पंडितों की भी सभी भारतीय एजेंसियों में आस्‍था कमज़ोर हुई है जिसमें भारतीय न्‍यायपालिका, भारतीय पुलिस और राजनीतिक पार्टियां भी शामिल हैं।”

टिक्‍कू पिछले 15 साल से लगातार नदीमर्ग की घटना की जांच की मांग किए जा रहे हैं और हर साल वे प्रेस कॉन्‍फ्रेंस कर के 23 मार्च को नए सिरे से मांग को उठाते हैं। विडंबना है कि भारतीय जनता पार्टी, जो कश्‍मीर पर बहस उठते ही बात-बात में कश्‍मीरी पंडितों के साथ हुए जुल्‍म को अपनी दलील में ढाल बनाती है, आज उसकी केंद्र और राज्‍य दोनों जगहों पर सरकारें हैं लेकिन कश्‍मीरी पंडितों का कोई पुरसाहाल नहीं है।