अजीत यादव
एनडीए से बाहर रहते नोटबंदी की तारीफ करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अब नोटबंदी पर सवाल उठाए हैं। शनिवार को पटना में राज्यस्तरीय बैंकर्स कमेटी की 64वीं तिमाही समीक्षा बैठक में उन्होंने कहा कि नोटबंदी का लाभ जनता को उतना नहीं मिला जितना मिलना चाहिए था। नीतीश कुमार ने कहा कि बैंकों का काम सिर्फ पैसे जमा करना और निकासी से कहीं ज्यादा है। बैंकों को सुनिश्चित करना होगा कि जो पैसा सरकारें विकास के लिए आवंटित करती हैं वह जनता तक पहुंचे। इसके लिए बैंकों को अपना सिस्टम ठीक करना होगा।
I was a supporter of demonetization,but how many benefited from the move? Some people were able to shift their cash from one place to another: Bihar CM Nitish Kumar (26.5.18) pic.twitter.com/yrLkHRQqAi
— ANI (@ANI) May 27, 2018
नीतीश कुमार ने कहा कि आरबीआई मानक के अनुसार पांच हज़ार की आबादी पर बैंक शाखा होनी चाहिए, जो देश में 11 हज़ार है और बिहार में तो ये 16 हज़ार तक है। ये आंकड़े साबित करते हैं कि बिहार में बैंकों का तेज़ी से विस्तार करना होगा। बैंकों के कर्ज देने के मानदंडों पर मुख्यमंत्री ने कहा कि क्रेडिट डिपॉजिट रेशियो बिहार में 50 फीसदी से भी कम है जबकि राष्ट्रीय औसत 70 प्रतिशत है। नीतीश कुमार ने कहा, “बिहार के लोगों में लोन लेने की प्रवृत्ति वैसे ही कम है, उस पर से जब वे बैंकों में कर्ज लेने जाते हैं तो कड़े मानदंडों की वजह से काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।”
2016 में हुई नोटबंदी के वक्त नीतीश कुमार एनडीए से बाहर थे। इसके बाद भी नीतीश कुमार ने नोटबंदी की तारीफ ही की थी लेकिन आज नोटबंदी की उनकी आलोचना कई सवाल खड़े करती है। नोटबंदी पर विपक्ष लगातार सवाल उठाता रहा है और सभी नोटों के बैंकों में पहुंचने पर व काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक को बड़ी असफलता बताता रहा है। नीतीश कुमार के नोटबंदी की आलोचना पर आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने तंज करने में देर नहीं की। तेजस्वी ने ट्वीट किया “हम सबके प्यारे चाचा नीतीश जी ने एक और शार्प यू टर्न लिया है। पहले वे नोटबंदी की तारीफ करते थे लेकिन आज इस पर सवाल उठा रहे हैं। नीतीश जी आम जनता के मुद्दे, समस्याएं और मांगें समझने में वर्षों पीछे हैं। नीतीश जी नोटबंदी को देश का सबसे बड़ा घोटाला बता दें तो हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए”
Our beloved Nitish Chacha took another sharp U-turn..
He supported demonetisation but now questioning it…
He is always years behind in understanding the issues, difficulties & demands of common people.
Don’t be surprised if he calls demonetisation the biggest scam of India
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) May 27, 2018
अभी कुछ घंटे पहले ही नीतीश ने केंद्र की मोदी सरकार के चार साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री को ट्वीट कर बधाई दी थी लेकिन ऐसा क्या हुआ कि सुशासन बाबू के सुर अचानक बदल गए। जानकार इसे सुर बदलने की जगह बदली हुई राजनीति के लक्षण के तौर पर देख रहे हैं। एनडीए के सूत्रों की मानें तो नीतीश फिर से यूटर्न लेने की वजहें तलाश रहे हैं और बहुत संभव है की लोकसभा चुनाव की परिस्थितियाँ तैयार होते ही वे एकजुट विपक्ष के साथ हो लें। यह बात अलग है कि विपक्ष को वे सेकुलरवाद के नाम पर दुबारा स्वीकार्य होंगे या नहीं।
माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi को सरकार के गठन के 4 साल पूरे होने पर बधाई। विश्वास है कि सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगी।
— Nitish Kumar (@NitishKumar) May 26, 2018
कही सुनी तो यह भी है कि कुछ समय पहले नीतीश पीएम से मिलने दिल्ली आए थे लेकिन घंटों इंतज़ार करवाने के बाद उन्हें बताया गया कि मुलाकात संभव नहीं है। सूत्रों का कहना है कि नीतीश अपनी कुछ मांगों लेकर आये थे ताकि उसके आधार पर आगे की राजनीतिक दिशा को तय कर सकें। उन्होंने पहले भी केंद्र से बाढ़ राहत के लिए 7600 करोड़ की मदद मांगी थी लेकिन केंद्र ने सिर्फ 1700 करोड़ रूपए स्वीकृत किए थे हालांकि पीएम के बिहार दौरे के बाद उसमें से भी 500 करोड़ की कटौती कर दी गई।
अब जिस उम्मीद से नीतीश ने एनडीए का दामन थामा था उसके फेल होने से उनकी स्थिति असहज हो गई है। एक समय की बात है कि विपक्ष उन्हें पीएम उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रहा था लेकिन विपक्ष को गच्चा देकर पूरी सरकार समेत नीतीश बड़ी उम्मीदों से एनडीए के खेमे में चले गए थे, लेकिन बर्फ सी उम्मीदें पिघलते देर न लगी। कहा जा रहा है कि दिल्ली दरबार की बेकद्री उन्हें अब चुभ गई है।
राजनीति संभावनाओं का खेल है तो नई संभावनाए शायद वक्त की जरूरत हों। इन संभावनाओं पर कई टिप्पणीकारों ने उसी वक़्त आशंका ज़ाहिर की थी जब नीतीश ने पिछली बार पलटी मारी थी। जिस दिन नीतीश ने पिछले साल एनडीए का दामन थामा था, पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने अपनी फेसबुक टिप्पणी में नीतीश के दुबारा पाला बदलने की बात कही थी। उन्होंने लिखा था:
“एक बार फिर नीतीश सही समय पर अंतरात्मा की आवाज़ पर बाहर आएंगे। तब तक अगर 18 दलों के लुचपुच विपक्ष के पास कोई अपना खांटी नैरेटिव नहीं पैदा हुआ, तो 2019 में नीतीश के पीछे आना सबकी मजबूरी बन जाएगी। ऐसे में बिहार में बीजेपी अनाथ हो जाएगी और लालू का होमवर्क भी पूरा हो चुका होगा। राबड़ी अब भी उनके पास हैं, मत भूलिए। अगर ऐसा नहीं भी होता है, तब भी नीतीश अकेले दम पर 2020 में बिहार को बचा ले जाने की स्थिति में होंगे क्योंकि बीजेपी से उनके अलग होने पर लालू के पीछे एकवट खड़ा मुस्लिम वोट बंटेगा और सवर्ण हिंदू शहरी मतदाता तो नीतीश का ही बना रहेगा। दोनों स्थितियां नीतीश के अनुकूल होंगी।”
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