
आश्यर्च होता है जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की संसदीय सीट गोरखपुर के सबसे बड़े अस्पताल बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में बीते पांच दिनों में हुई 60 बच्चों की मौत को तिहाड़ रिटर्न स्वयंभू ‘राष्ट्रवादी’ पत्रकार सुधीर चौधरी ‘हादसा नहीं, हत्या’ कहते हैं। सुधीर चौधरी ने रिपोर्टर विशाल पांडे द्वारा किए गए एक ट्वीट को रीट्वीट करते हुए खराब गवर्नेंस और सरकार की संवेदनहीनता का हवाला देते हुए लिखा है, ”यह हादसा नहीं, हत्या है”।
Everyone should read these letters.They reflect the poor governance&govt's insensitivity.Its not tragedy it's MURDER. #GorakhpurTragedy https://t.co/uXrmsyl2s0
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) August 12, 2017
ट्वीट में दो पत्रों की तस्वीरें हैं। एक पत्र दिनांक 10/08/17 का है जिसे सेंट्रल पाइपलाइन अथॉरिटी के कर्मचारियों कृष्ण कुमार, कमलेश तिवारी और बलवन्त गुप्ता ने बाल रोग विभाग को लिखा है। दूसरा पत्र दीपांकर शर्मा की ओर से मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य को 1 अगस्त 2017 को लिखा गया है। दोनों में ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित कराने और आपूर्तिकर्ता कंपनी का बकाया भुगतान करने की बात है। ये पत्र डीएम से लेकर मुख्य चिकित्सा अधिकारी और नोडल अधिकारी समेत महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं, उत्तर प्रदेश सरकार को भेजे गए थे। ये दोनों पत्र काफी पहले से सार्वजनिक हैं और इनके सबंध में सबसे पहली रिपोर्ट वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह ने गोरखपुर न्यूज़लाइन पर की थी।
सुधीर चौधरी इन दो चिट्ठियों के सहारे ‘योगीजी’ से पूछ रहे हैं कि ‘बच्चों के हत्यारों पर कार्रवाई कब?’ इसका साफ़ मतलब यह निकलता है कि वे भले ही इस घटना को हादसा नहीं, हत्या मान रहे हों, लेकिन ‘हत्यारा’ किसी और को मान रहे हैं जिस पर कार्रवाई करने की गुज़ारिश ‘योगीजी’ से कर रहे हैं। यह घटना को कवर-अप करने और योगी आदित्यनाथ को मामले से पाक-साफ़ बचा ले जाने की बहुत महीन पहल है।
योगी जी इन चिट्ठियों को देखिए आखिर क्या कारण है कि इतनी चेतावनी के बावजूद सरकार नहीं जागी ? बच्चों के हत्यारों पर कार्यवाई कब ? @ZeeNews pic.twitter.com/78LSxclO6l
— Vishal Pandey (@vishalpandeyk) August 12, 2017
अब देखिए चुनाव विशेषज्ञ कहे जाने वाले सीवोटर नामक एजेंसी के मालिक व पत्रकार यशवंत देशमुख को। देशमुख दो कदम आगे जाकर सीधे 2011 की एक आरटीआइ ले आते हैं जिसमें अस्पताल के इंतज़ामात का खुलासा किया गया था। ज़ाहिर है बीते छह महीने छोड़ दें तो पांच साल अखिलेश यादव की सरकार उत्तर प्रदेश में रही है। यशवंत लिखते हैं: ”मीडिया और संपादकों के लिए आंख खोलने वाला: अगर वे गोरखपुर हादसे पर गंभीर बहस करना चाहते हों, वरना जो कर रहे हो करते रहो।’
An eye-opener for Media and Editors: Just in case they seriously wish to discuss #GorakhpurTragedy . Else continue with what you are doing. https://t.co/uk3V7ficom
— Yashwant Deshmukh (@YRDeshmukh) August 12, 2017
छह साल पीछे के आंकड़ों तक ले जाकर तात्कालिक घटना की गंभीरता को हलका बनाने की यह कोशिश दरअसल योगी आदित्यनाथ की सरकार से दोष हटाकर पिछली सरकार के ऊपर मढ़ देने की महीन कोशिश है। इसे समझा जाना चाहिए।
आंकड़ों और चिट्ठियों का खेल हर कोई नहीं कर रहा। टाइम्स नाउ की राजनीतिक संपादक नविका कुमार इस मामले में बहुत स्पष्ट हैं जिनका कहना है कि वंदे मातरम पर हो रही बहस के बीच गोरखपुर का मामला उठाकर बहस को ‘डायवर्ट’ किया जा रहा है। पूरी बेशर्मी से यह बात उन्होंने टाइम्स नाउ की परिचर्चा के दौरान राकेश सिन्हा से कही जिसका वीडियो नीचे है।
Navika on @TimesNow We r debating on Vande Mataram & by raking up issue of child deaths in Gorakhpur, u want to divert from real issues. pic.twitter.com/IFoNBWX4cE
— Kapil (@kapsology) August 12, 2017
अभी योगी सरकार को बचाने का मीडिया में खेल शुरू ही हुआ है। यह संयोग नहीं है। बाकायदा इसके लिए ऊपर से आदेश आए हैं, जैसा कि बीजेपी इनसाइडर की यह ट्वीट कहती है।
It's has been made clear to CM that cover up deaths in Grkpur. At any cost!!
— BJP Insider (@11AshokaRoad) August 11, 2017
कुछ दिनों पहले बनारस में कुछ मरीज़ों की मौत बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में हुई थी। वहां के मामले में तो मीडिया ने पूरी तरह नजरंदाज कर दिया था। स्थानीय मीडिया में कुछ स्वर उभरे थे लेकिन जांच कमेटी बनाकर और मरने वालों की संख्या को घटा कर बीएचयू प्रशासन ने उस मामले से पल्ला झाड़ लिया था। उस मामले में भी मृतकों का पोस्टमॉर्टम नहीं किया गया था और गोरखपुर में भी यही रणनीति प्रशासन ने अपनायी है।
तस्वीर साभार दि इंडियन एक्सप्रेस