प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव जीतने के लिए राजनीति को नित नई ‘ऊँचाइयों’ पर ले जा रहे हैं। साज़िशों का आलम यह कि मध्यकालीन शासक भी शरमा जाएँ । न नियम-क़ायदे की परवाह, न सरकारी ख़ज़ाने पर पड़ने वाले बोझ की। इरादा ये कि जनता तमाशा देखने के लिए बस टुकुर-टुकुर ताकती रहे, दिमाग़ पर ज़ोर देने का वक़्त ही नहीं मिली।
ख़बर आई थी कि प्रचार के आख़िरी दिन, चुनाव आयोग ने 12 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गाँधी को रोड शो करने की इजाज़त नहीं दी। लोगों को लगा कि चलो चुनाव आयोग कहीं तो हस्तक्षेप करता नज़र आया और फ़ैसला संतुलित था। लेकिन उसके बाद मोदी ने ‘सी प्लेन’ के ज़रिए अंबा जी के दर्शन को, न्यूज़ चैनलों की ताक़त से एक ईवेंट में तब्दील कर दिया। टीवी चैनलों पर दिन भर चलता रहा कि पहली बार भारत में कोई जहाज पानी पर उतरा है। (जबकि सी प्लेन सेवा देश में कई सालों से जारी है) ख़ुद मोदी ने भी ऐसे ही ट्वीट करके अपनी पीठ थपथपाई। उन्होंने इसे गुजरात के विकास से जोड़ा। कहा कि कांग्रेस के लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि साबरमती नदी में हवाईजहाज लैंड कर सकता है।
लेकिन हक़ीक़त बताती है कि यह सब ड्रामा था।
यह सीप्लेन तो 3 दिसंबर को इसी शो के लिए भारत आ गया था। क्विंट में छपी चंदन नंदी की रिपोर्ट के मुताबिक एक इंजन का ये जहाज अमेरिका में रजिस्टर्ड है। यह 3 दिसंबर को कराची से भारत आ गया था। यानी इस मोदी के जहाजी करतब की तैयारी पहले से थी। जहाज के एक्टीविटी लॉग से सब स्पष्ट है–
नंदी के मुताबिक मोदी के सो पर कम से कम 42 लाख रुपये का खर्च आया होगा। यही नहीं, इस करतब के लिए सुरक्षा मानकों की भी परवाह नहीं की गई। सुरक्षा की दृष्टि प्रधानमंत्री कभी एक इंजन के विमान या हैलीकॉप्टर में नहीं चलते हैं, जबकि यह सी प्लेन महज़ एक इंजन का है।
इसका मतलब ये हुआ कि रोड शो के नाम पर जो हुआ, सब ड्रामा था। रोड शो होता तो चैनलों पर मोदी के साथ राहुल भी दिन भर नज़र आते। स्क्रीन साझा करते। इसलिए यह हवाई दाँव खेला गया। तैयारी पहले से थी। सी प्लेन खड़ा था। गुजरात में तमाम हिस्से पीने के पानी के बिना तरस रहे हैं, लेकिन मोदी जी चाहते हैं कि बात नर्मदा से पानी लाकर बनाए गए साबरमती फ्रंट पर हुए जहाजी करतब पर हो।
‘पहली बार’ का ड्रम बजाने वाले मोदी जी लगता है कि भारत की तमाम उपलब्धियों पर मिट्टी डाल देना चाहते हैं। सच्चाई यह है कि सी प्लेन 2011 से अंडमान-निकोबार में रोज़ाना पाँच-छह उड़ानें भरते हैं और चार से सात हज़ार ख़र्च करके पर्यटक इसका लुत्फ़ उठाते हैं। स्थानीय लोग 600 रुपये में पोर्ट ब्लेयर से हैव लॉक तक की उड़ान का मज़ा ले सकते हैं। आप इस लिंक पर यह सारी जानकारी पा सकते हैं।
मोदी जी जिस जहाजी करतब को विकास का प्रतीक बता रहे हैं, वह अमेरिका में 1912 में पहली बार उड़ा था, यानी सौ साल से ज़्यादा पुरानी तकनीकी उपलब्धि है। भारत में 2011 में जब प्रफुल्ल पटेल उड्डयन मंत्री थे, तो भारत में सी प्लेन सेवा शुरू हुई थी। इसे पवनहंस नाम दिया गया था।
बर्बरीक