ऐसी ख़बरें हिंदी मीडिया आमतौर पर नहीं मिलतीं। अँग्रेज़ी में भी ढूँढनी पड़ती हैं। बहरहाल इकोनामिक एंड पोलिटकल वीकली (EPW) अपनी रवायत निभा रहा है। इस बीच दो ऐसी ख़बरें उसने छापी हैं जो बताती हैं कि मोदी सरकार कॉरपोरेट मालिकों के लिए किस हद तक जा सकती है या जा रही है।
क्या आप यक़ीन कर सकते हैं कि भारत के वित्तमंत्री अरुण जेटली अपने पुराने क्लाइंट वोडाफ़ोन के लिए अभी भी बैटिंग कर रहे हैं। यह सीधे-सीधे वित्तमंत्री पद का दुरुपयोग है। EPW के मुताबिक–
वोडाफ़ोन पर ब्याज़/पेनाल्टी समेत 30 हज़ार करोड़ का इनकम टैक्स बकाया है | 2014 तक उसके वकील अरुण जेटली होते थे, सुप्रीम कोर्ट से फैसला भी करा लिया था कि टैक्स बनता ही नहीं। मगर मामला ख़त्म नहीं हो पाया था क्योंकि प्रणब मुखर्जी के समय में पिछली तारीख से कानून बदल दिया गया था। कंपनी फिर नीदरलैंड के एक मध्यस्थता पंचाट में चली गई।
पहले जेटली ने बड़ा ‘नैतिक’ फैसला किया कि वह इस मामले की फ़ाइल नहीं देखेंगे क्योंकि वोडाफोन के वकील रह चुके हैं। पर इस बीच मामला किसी वजह से गड़बड़ हो गया – कंपनी को लगा कि इस मध्यस्थता पंचाट में गोटी ठीक नहीं बैठी और फैसला पूरी तरह उसके हक़ में नहीं जायेगा, तो उसने लंदन के मध्यस्थता पंचाट में एक नया मामला शुरू करने को कहा। जेटली से पूछे बिना किसी अधिकारी ने सिफारिश की कि इस मध्यस्थता पंचाट में शामिल ही न हुआ जाये। अब जेटली जी ने कंपनी के लिए अपनी वफ़ादारी निभाते हुए मोदी जी को पत्र लिखा है कि लंदन के मध्यस्थता पंचाट में शामिल हुआ जाए और अपनी तरफ़ से किसी सलीम मूमन नाम के वकील की सिफारिश भी की है ! आखिर अपने क्लाइंट को नुकसान कैसे होने दें !
EPW की रिपोर्ट का लिंक यहाँ हैं— Violating Conflict of interest Jaitley intervenes in Vodafone case
दूसरा मामला भी कम दिलचस्प नहीं है। अडानी पॉवर के लिए नियम बदल कर उसे उन 500 करोड़ रूपये का कस्टम ड्यूटी रिफंड दिया जा रहा है जो उसने जमा ही नहीं की थी ! ऐसे समझिये कि बिना इनकम टैक्स दिए ही रिफंड मिल जाये! EPW ने विस्तार से इस पर छापा है।
EPW का लिंक यहाँ है––Modi Government’s ₹500 Crore Bonanza to Adani Group Company