मोदी के इशारे पर पन्नीरसेल्वम में हवा भर रहा है मीडिया !



मीडिया को पन्नीरसेल्वम ये मोहब्ब्त यूं ही नही है !

ये मान कर चला जाये कि जयललिता ने अगर पन्नीरसेल्वम को तीन बार अस्थाई मुख्यमंत्री बनाया था तो उनकी रीढ़ की हड्डी की जांच ठीक तरह से कर ली होगी. अब अचानाक वो सीधे खड़े हो गये हैं तो जाहिर है किसी ने खप्पच्ची लगाई होगी. कब तक खड़े रह पायेंगे कहना मुश्किल है.

संवैधानिक स्थिति:

बोम्मई केस में सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है बहुमत का परीक्षण विधानसभा में ही हो सकता है नाकि गवर्नर हाउस, टीवी स्टूडियो, रिसोर्ट में और न ही इस अधार पर कि किसकी आत्मा ने किससे क्या कहा. कानूनी रूप से शशिकला पार्टी की महासचिव हैं और संसदीय दल की नेता. उन्होने अगर पन्नीरसेल्वम के खिलाफ कोई कार्यवाही की है तो वो वैधानिक है. अभी हम समाजवादी पार्टी के मामले में ये देख चुके हैं. गवर्नर के पास शशिकला को सरकार बनाने का न्योता देने और सदन के अंदर बहुमत सिद्ध करने के निर्देश के अलावा कोई दूसरा रास्ता नही है. ये काम अगर वो खुद नही करेंगे तो अदालत उनसे करायेगी. इसे भी कई बार आजमाया जा चुका है – पिछ्ले ही साल उत्तराखंड में भी. नतीजा क्या हुआ था हम सब वाकिफ है.

ऐसा नही है कि तमाम संपादक जो पन्नीरसेल्वम का कद बढ़ा कर बता रहे है और शशिकला को कितना समर्थन है या उनकी कानूनी स्तिथि कितनी मज़बूत है उससे वाकिफ नही हैं. पढ़े लिखे है ये भी. इनकी परेशानी शशिकला से है – क्योंकि ये मोदी की भी परेशानी है.

गुजरात के ठेकेदार और शशिकला:

बात तब की है जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. तामिलनाडू में गुजरात के कुछ ठेकेदारो के ठेके छिन गये. इन ठेकेदारो ने शशिकला के खिलाफ एक मुहीम चालाई – मोदी ने इन ठेकेदारो की मदद की और शशिकला को जयललिता के घर और पार्टी से निकलवाने में कामयाब भी हो गये. कुछ ही महीने में जयललिता और शशिकला की सुलह हो गई और वो जयललिता के घर और पार्टी में पहले की स्तिथि में बहाल हो गईं.

अन्ना द्रमुक के 11 सांसद हैं राज्यसभा में. इस पृष्ठभूमि में अगर शशिकला मुख्यमंत्री बनेगी तो केंद्र सरकार के तमाम बिलो पर उनकी पार्टी का रुख क्या रहेगा समझा जा सकता है. मीडिया अपने भगवान को बचाने में लगा है – बचा पायेगा क्या?

(वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन की फ़ेसबुक पोस्ट )