अब शायद आप यकीन कर पायेंगे कि यह मोदी सरकार सिर्फ और सिर्फ अम्बानियों की सुनती है।
याद है ना, जियो मोबाइल के लॉन्चिंग विज्ञापन में ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा था। ऐसा इतिहास में पहली बार हुई कि कोई प्रधानमंत्री किसी निजी कंपनी का मॉडल बना हो। बदले में ‘मुफ़्तिया’ जियो का सबसे ज़्यादा फ़ायदा बीजेपी को हुआ। झूठ गढ़ने की जो व्हाट्सऐप युनिवर्सिटी तैयार हुई, वह इसी मुफ़्तिया जियो के ज़रिये गाँव-गाँव तक अपना ‘ज्ञान’ पहुँचा पाई। इस ज्ञान का नतीजा है कि 80 रुपये पेट्रोल को देश के विकास से जोड़ने वाले ज्ञानी घूम रहे हैं।
इतने अच्छे परफ़ार्मेंस पर शाबाशी तो मिलनी ही थी। नतीजा सामने है..
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने अम्बानी के जियो को छोड़, अन्य दूरसंचार ऑपरेटरों को जबरदस्त झटका दिया है। दरअसल अब किसी ऑपरेटर का ग्राहक दूसरे ऑपरेटर के नेटवर्क पर कॉल करेगा तो उसे इस नेटवर्क के इस्तेमाल के एवज में प्रति मिनट मात्र 6 पैसे का इंटरकनेक्ट यूजेज चार्ज देना होगा. यानी अगर रिलायंस जियो का कोई उपभोक्ता एयरटेल के उपभोॉ
ट्राई के इस फैसले से रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के शेयर्स ने रिकॉर्ड ऊंचाई छुई है। इस नयी व्यवस्था के अंर्तगत उस कम्पनी का फायदा होगा जो नयी आयी है ओर पुरानी कम्पनियाँ नुकसान में रहेंगी।
ट्राई ने इंटरकनेक्ट यूजेज चार्ज (आईयूसी) की दरों को जियो के हित में 58 फीसदी घटा दी है (या कहें कि नई दरों का यह स्वाभाविक नतीजा है।) नई दरें अगले महीने से से लागू होंगी और दो साल में यह शुल्क पूरी तरह से खत्म हो जाएगा.
नीतियों में बदलाव तकनीक और उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए या कहें कि इन दोनों के मद्देनजर ही नीतियां बनाई जानी चाहिए, लेकिन अब इस नयी नीति से आने वाले सालो में एक कम्पनी का एकाधिकार होगा।
एक रिपोर्ट के अनुसार जियो अभी प्रति वर्ष अन्य कंपनियों को इंटर कनेक्शन चार्ज के रूप में 6,000-7,000 करोड़ रुपये का भुगतान कर रहा है। जबकि भारती एयरटेल करीब 7,700 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाती है। अब जियो को उससे आधे से भी कम पैसा देना होगा और 2 साल में यह देयताएं भी समाप्त हो जाएगी। अब एयरटेल ओर अन्य नेटवर्क का इस तरह का मुनाफा लगभग खत्म हो जाएगा
आइडिया सेल्युलर ने चेतावनी दी थी कि इंटर-कनेक्ट यूजेज चार्जेज (आईयूसी) घटाए जाने से रिलायंस जियो को छोड़कर पूरा दूरसंचार उद्योग बीमार पड़ जाएगा । आदित्य बिड़ला समूह के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला की तरफ से ट्राई को लिखे गए पत्र में कहा गया था कि ट्राई को वायरलेस फोन ऑपरेटरों के बीच आईयूसी के आकलन की योजना पर पारदर्शी होना चाहिए। इसमें कहा गया था कि आईयूसी घटाने से सिर्फ एक ऑपरेटर को फायदा होगा और दूरसंचार क्षेत्र की वित्तीय हालत और खराब हो जाएगी।
ब्रिटेन के वोडाफोन समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विटोरियो कोलाओ ने दूरसंचार मंत्री मनोज सिन्हा को लिखे एक पत्र में कहा था कि इंटर कनेक्शन चार्ज में कोई कमी करने से पुरानी टेलीकॉम कंपनियां बर्बादी की कगार पर आ जाएँगी।
एयरटेल के सुनील मित्तल ने एक खुले सत्र में कहा कि आईयूसी अरसे से अंतर्राष्ट्रीय सिद्घांत पर खरा उतरा है और विकसित देशों से लेकर उभरते देशों के तमाम नियामकों ने यह सुनिश्चित किया है कि निवेश करने वाले ऑपरेटर को हर्जाना मिलना चाहिए। उन्होंने इस संबंध मे इंटरनेशनल कॉल के लिए आईयूसी का हवाला देते हुए कहा कि इस समय भारत से अमेरिका में एक कॉल करने पर आईयूसी के तहत 1.2 सेंट देने पड़ते हैं जबकि यूरोप के लिए 3 से 30 सेंट।
ट्राई द्वारा 20 जुलाई को एक खुले सत्र का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में मोबाइल इंटरकनेक्ट प्रयोग शुल्क को लेकर लोगों से अपनी राय देने को कहा गया था। इस खुले सत्र में मौजूदा संसद सत्र के बावजूद लोकसभा और राज्यसभा के कई सांसद पहुंचे थे। लेकिन फैसले में सुनील भारती मित्तल की दलीलों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया ओर अन्य ऑपरेटर की बात भी नही मानी गयी।
इस बदलाव से कॉल रेट भले ही कम होने की बात की जा रही हो, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका विपरीत असर देखने को मिलेगा। दरअसल इन टेलीकॉम कंपनियों पर बैंकों का 8 लाख करोड़ रुपए से अधिक कर्ज है, ओर रिजर्व बैंक ने पहले ही बैंकों से टेलीकॉम सेक्टर के फंसे कर्ज के लिए अधिक प्रॉविजनिंग करने को कहा था। अब इस कर्ज की वसूली ओर भी मुश्किल हो गयी हैं
ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच का मानना है कि यदि भारत की टेलीकॉम कंपनियां, बैंकों से लिए गए कर्ज के मामले में डिफाल्ट करती हैं तो इससे बैंकों की बैलेंस शीट बिगड़ सकती है। ऐसे फैसले से अन्य ऑपरेटर अब भारत सरकार को लाइसेंस फीस दे पाने के लायक नही रहेंगे और मजबूरन सरकार इसे फिर माफ करने या आगे बढ़ाने की नीति अपनाएगी। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की नवीनतम रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि टेलीकॉम कंपनियों ने अपने राजस्व को कम दिखाकर सरकार के हिस्से का 7,700 करोड़ रुपये का राजस्व मार दिया हैं, तो अब देशहित में टेक्स का बोझ उठाने को मध्यम वर्ग को नए सिरे से तैयार रहना होगा आखिर गिरती हुई अर्थव्यवस्था को संभालने की जिम्मेदारी बड़े उद्योगपतियो की थोड़ी है वह तो जनता की है…है ना ?
लेखक इंदौर (मध्यप्रदेश )से हैं , ओर सोशल मीडिया में सम-सामयिक विषयों पर अपनी क़लम चलाते रहते हैं ।