रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’: घाटे में चल रही निजी कंपनियों को कर्ज़ से उबारने की तरकीब



अजय सिंह रावत

हर कहानी में एक खलनायक या थोड़ी सी नकारात्मक छाप होती है। रक्षा क्षेत्र में केंद्र सरकार के अग्रणी कार्यक्रम ‘मेक इन इंडिया डिफेन्स प्रोग्राम’ के अंतर्गत निजी कंपनियों पर जो उदारता दिखाई जा रही है, वह इससे अलग नहीं है। भ्रष्टाचार खुला हो या ढंका हुआ, दिखता सबको है लेकिन हमारी चुप्पी जब तक टूटती है तब तक हमारा गूंगापन बहरे हो चुके प्रशासन के समक्ष खड़ा रहता है।

एनडीए सरकार द्वारा जब ‘मेक इन इंडिया’ की पहल की गई थी तब इस पूरी योजना के केंद्र में रक्षा क्षेत्र ही था। सरकार का पूरा ध्यान इसी पर केंद्रित था। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरगामी सोच थी कि निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी बड़ी रक्षा परियोजनाओं में विदेशी कंपनियों के साथ रणनीतिक साझेदार के रूप में शामिल किया जाए।

‘मेक इन इंडिया डिफेन्स’ के तहत भारतीय निजी कंपनियों को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं जिनके अंतर्गत वे बड़ी रक्षा परियोजनाओं के आर्डर ले सकती हैं। ‘मेक इन इंडिया’, रक्षा क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए विदेशी विनिर्माण के साथ जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसमें भारतीय कंपनियों के लिए तय निर्यात नियमों और शर्तों को भी आसान बनाया गया ताकि इस योजना को सफल बनाया जा सके।

जिस प्रकार से और जिस पृष्ठभूमि की कंपनियों को रक्षा मंत्रालय द्वारा ऑर्डर आवंटित किये गए हैं, उस पर कई सवाल खड़े होते हैं। ये कम्पनियां कई वर्षों से नुकसान झेल रही थीं, भारतीय बैंको का ब्याज देना भी इन्होंने बंद कर रखा था, इनके बहीखाते में कई गुना कर्जा पहले से ही है। खास बात यह है कि डिफेन्स कभी भी इनका परंपरागत कार्यक्षेत्र नहीं रहा और इनकी व्यावसायिक साख और कुशलता पर पहले से ही कई सवालिया निशान लग चुके हैं और इनके ऊपर मुक़दमे चल रहे हैं।

जिस प्रकार से रक्षा क्षेत्र की परियोजनाएं निजी क्षेत्र की घटा झेल रही कंपनियों को दिए गए हैं उसमे काफी कुछ संदेहजनक है। हमने पिछले कुछ वर्षों में देखा है कि हमारा बैंकिंग सिस्टम अपने नॉन परफार्मिंग एसेट्स के कारण बर्बादी के कगार पर पहुँच चुका है। कंपनियों को दिए गए कर्ज का नॉन परफार्मिंग एसेट्स में तब्दील होने का मुख्य कारण कर्ज लेने वाली कंपनियों के प्रति बैंकों का बेहद उदार रवैया और लेनदेन में पारदर्शिता का निम्न स्तर भी है। यह भी सर्वविदित है कि कॉर्पोरेट गवर्नेंस में खामियां और धोखाधड़ी की गतिविधियों ने कई वित्तीय घोटालों को जन्म दिया है। इनमें प्रमुख घोटाले हैं सत्यम, UTI, शारदा चिटफण्ड, सहारा, NSEL, नीरव मोदी, विजय माल्या, इत्यादि।

‘मेक इन इंडिया डिफेन्स’ के नाम पर ऐसी कई भारतीय कंपनियों को ऑर्डर आवंटित किये गए हैं जो पहले से ही घाटे और कर्ज में डूबी हुई हैं। मीडिया ने इस जगह अभी खोदना शुरू नहीं किया है लेकिन यह बात तय है कि जब खुदाई होगी तो कई कंकाल बरामद होंगे। फिलहाल ऐसे दो उदाहरण देखे जाने चाहिए:

# पुंज लॉयड: यह कंपनी एक समय में इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन क्षेत्र की अग्रणी कंपनी थी लेकिन आज न केवल इसकी वित्तीय हालत खराब है बल्कि यह अपने सबसे बुरे दौर में है। कंपनी पर पहले से ही कई मुकदमे लंबित हैं और SABIC मुकदमे के निपटारे के कारण यह बुरी तरह से चरमरा गई थी जोकि UK  की एक अदालत के फैसले पर आधारित था और शायद इसी का परिणाम था कि इसे अपनी 100 वर्ष से अधिक पुरानी कंपनी SIMON CARVES को दो मिलियन डॉलर में बेचना पड़ा। खराब प्रबंधन ने इसकी भारतीय सहायक कंपनी पीएल इंजीनियरिंग पर भी ग्रहण लगा दिया है।

नीचे दी गई तालिका देखें, जो स्पष्ट रूप से कंपनी की दयनीय स्थिति और निचले स्तर के वित्तीय प्रदर्शन को दर्शाती है:

पुंज लॉयड को डिफेन्स के ऑर्डर आवंटित करते समय रक्षा मंत्रालय द्वारा उपरोक्त तथ्यों को निश्चित रूप से अनदेखा किया गया है- एक ऐसी कंपनी जो पांच वर्षों से लगातार नुकसान झेल रही है, जिसका कुल ऋण बोझ लगभग 6113.9 करोड़ रुपया है और जो बैंकों को दिए जाने वाले ब्याज भुगतान पर लगातार चूक रही है।

रक्षा मंत्रालय ने पुंज लॉयड पर रक्षा ऑर्डर को निष्पादित और वितरित करने का भरोसा किया, जबकि कंपनी द्वारा अनुचित निष्पादन और परियोजना को पूरा करने में विफल रहने के कारण UK  की एक अदालत के हस्तक्षेप और आदेश के बाद SABIC के दावों का भुगतान करना पड़ा है।

# रिलायंस नेवल और इंजीनियरिंग लिमिटेड (एडीएजी समूह): इस कंपनी को पुंज लॉयड द्वारा सह-स्थापित और पिपावाव शिपयार्ड के नाम से शुरू किया गया था। इसका नाम बदल कर पहले पिपावाव डिफेन्स, फिर रिलायंस डिफेन्स और अब रिलायंस नेवल और इंजीनियरिंग लिमिटेड कर दिया गया। इसको भी रक्षा मंत्रालय द्वारा डिफेन्स के ऑर्डर मिलने में कोई कमी नहीं है।

कंपनी अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (एडीएजी) से संबंधित है और इसकी सभी सूचीबद्ध कंपनियों पर भारी कर्ज का बोझ है। भारी कर्ज ने कंपनी को चल-अचल संपत्तियों और व्यवसायों को बेचने के लिए मजबूर कर दिया है। साथ ही, यह कंपनी बैंकों को तय ब्याज भुगतान पर लगातार चूक रही है।

नीचे दी गई तालिका रिलायंस नेवल की वित्तीय बीमारी का एक बुलेटिन मात्र है:

ऐसा प्रतीत होता है कि ‘मेक इन इंडिया इन डिफेन्स’ निजी क्षेत्र की बीमार और ऋणग्रस्त कंपनियों को फिर से खड़ा करने का एक जरिया भर है। महाभारत में महाराज धृतराष्ट्र अपने पुत्रों द्वारा किये जाने वाले कुकर्मों को लेकर हमेशा अंधे बने रहे। आधुनिक भारत में धृतराष्ट्र की अंधता को राज्य ने संस्थागत स्वरूप दे दिया है।


लेखक स्वतंत्र पत्रकार और मार्केटिंग कंसलटेंट हैं