भारतीय जीवन बीमा निगम जो हर साल लगभग 1.5 से 2 प्रतिशत के बीच ही ग्रॉस एनपीए बनाए रखती थी वह सितंबर 2019 में सकल एनपीए 6.10 प्रतिशत बता रही हैं. साफ है कि एलआइसी मोदी सरकार के पापों का बोझ उठाते-उठाते अब थकने लगी है, पिछले पांच साल में एलआइसी का एनपीए दोगुना हो गया है. एलआइसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 30 सितंबर 2019 तक कुल 30000 करोड़ रुपये का सकल एनपीए है.
Crores of honest people invest in LIC because they trust it.
The Modi Govt is risking their future by damaging LIC & destroying the trust the public has in it.
These short sighted actions create panic & can have catastrophic consequences. https://t.co/F0dmk5t5uB
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 22, 2020
रिपोर्ट के अनुसार सितंबर 2019 में कंपनी का सकल एनपीए 6.10 प्रतिशत रहा जोकि पिछले पांच सालों में लगभग दोगुना है. यह एनपीए निजी क्षेत्र के यस बैंक, आईसीआईसीआई, एक्सिस बैंक के करीब ही है.
डेक्कन क्रॉनिकल, एस्सार पोर्ट, गैमन, आईएल एंड एफएस, भूषण पावर, वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज, आलोक इंडस्ट्रीज, एमट्रैक ऑटो, एबीजी शिपयार्ड, यूनिटेक, जीवीके पावर और जीटीएल आदि में एलआइसी का 25 हजार करोड़ रुपये फंसा हुआ है. यह सारी कम्पनियां दीवालिया अदालत में कार्रवाई का सामना कर रही हैं. एलआइसी ने ने दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड, इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनैंशल सर्विसेज (DHFL) और अनिल अंबानी की अगुवाई वाले रिलायंस ग्रुप सहित कई संकटग्रस्त कंपनियों को भारी-भरकम कर्ज दे रखा है.
पिछले साल कांग्रेस नेता अजय माकन ने तब आरबीआई की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया था कि पिछले पांच साल में एलआईसी ने ‘जोखिमवाली’ सरकारी कंपनियों में अपना निवेश दोगुना बढ़ाकर 22.64 लाख करोड़ रुपये कर लिया है. जिस तरह से बड़ी कम्पनिया डूब रही है एलआइसी में फँसे आम आदमी के लाखों करोड़ों रुपए के निवेश पर खतरा मंडरा रहा है.
भारतीय जीवन बीमा निगम देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी होने के साथ-साथ मार्केट का सबसे बड़ा घरेलू निवेशक भी है. एलआईसी के पास सालाना करीब 3 लाख करोड़ रुपये का प्रीमियम जमा होता है. देश के करोड़ों लोगों की गाढ़ी कमाई के बल पर लाखों करोड़ रुपये के मोटे भंडार पर बैठी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) का इस्तेमाल दुधारु गाय की तरह होता रहा है. एलआईसी लंबे समय से सरकार के लिए ‘सोने का अंडा देने वाली मुर्गी’ रही है.
पहले भी UPA की सरकार LIC के फंड का मनमाना इस्तेमाल करती आई है लेकिन मोदी सरकार ने तो पिछले साढ़े पाँच सालो से सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. साल 2014 में इसने भेल की बड़ी हिस्सेदारी खरीदकर सरकार को राहत पहुंचाई. साल 2015 में कोल इंडिया के विनिवेश से सरकार ने 22 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा जुटाने का लक्ष्य रखा था, एलआईसी ने इसकी भी 7,000 करोड़ की हिस्सेदारी खरीदकर सरकार को राहत दी.
2016 में जब इंडियन ऑयल का विनिवेश फ्लॉप होता दिख रहा था तब एलआईसी ने इसमें 8,000 करोड़ रुपये का निवेश किया. साल 2017 में न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी और जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया का सरकार ने जब विनिवेश किया तो एलआईसी ने इनमें करीब 13,000 करोड़ रुपये का निवेश किया. मार्च 2018 में जब हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स का विनिवेश ऑफर आया तो एलआईसी ने 2,900 करोड़ के निवेश से इस ऑफर का 70 फीसदी हिस्सा खरीद लिया. साल 2018-19 में सरकारी बैंकों में सबसे बदतर खराब लोन का रेश्यो वाले IDBI बैंक को सरकार ने LIC के गले लटका दिया.
एलआईसी अकेले आईडीबीआई के शेयर नहीं खरीद सकती थी उस पर किसी एक कंपनी में अधिकतम 15 फीसदी शेयर खरीदने की शर्त लागू थी ओर एलआईसी के पास आईडीबीआई के 10.82 प्रतिशत हिस्सेदारी पहले से ही थी इसके बावजूद एलआईसी ने इस बैंक को बचाने के लिए इसकी 51 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी. एलआईसी ने इस अधिग्रहण के तहत 28 दिसंबर को आईडीबीआई बैंक में 14,500 करोड़ रुपये डाले थे.
उसके बाद 21 जनवरी को उसने बैंक में 5,030 करोड़ रुपये और डाले. लेकिन इससे भी मोदी सरकार का मन नही भरा है अक्टूबर 2019 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रियल एस्टेट सेक्टर के लिए बड़ी राहत का ऐलान किया है. उन्होंने कहा कि देशभर में अटके हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए 15 हजार करोड़ रुपये भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा मिलकर दिया जाएगा. अब यह भी चर्चा है कि 60 हजार के कर्ज में डूबे एयर इंडिया का भी एलआइसी के द्वारा ही उध्दार किया जाएगा.
यानी साफ है 2020 में एलआइसी की वित्तीय स्थिति और भी खराब होने की आशंका है एलआईसी में देश की अधिकांश जनता की जमा-पूंजी है और वह प्रतिवर्ष अपनी बचत से हजारों-लाखों रुपये निकालकर एलआईसी की पॉलिसी में डालता है. इस पैसे के सहारे उसका और उसके परिवार का भविष्य सुरक्षित रहता है. अब यह पूंजी ही इन डूबती हुई कंपनियों को बचाने के लिए स्वाहा की जा रही हैं.
गिरीश मालवीय स्वतंत्र टिप्पणीकार और आर्थिक मामलों के जानकार हैं.