भंवर मेघवंशी
मैं किसी दलित स्त्री को राम की पुजारिन बनाने और पिछड़े वर्ग की मेहनतकश कौम को दान दक्षिणा मांगते देखने की किसी भी मुहिम से खुद को सहमत नहीं पाता ,क्योंकि न तो राम मंदिर के पुजारी बनने से दलितों का भला होने वाला है और ही गुर्जर (ओबीसी ) लोगों को ट्रस्ट में शामिल हो कर कोई मुक्ति मिलने वाली है,न ही प्रधान पुजारी बनना लाभकारी होगा।
मेरा साफ मानना है कि एक दलित विदुषी जो संस्कृत की प्रकांड विदुषी है ,उसको मंदिरों में घण्टे घड़ियाल बजाने भेजना समझदारी का काम नहीं होगा।यह प्रतिक्रांति के लक्षण है।
मानव जाति का इतिहास गवाह है कि मन्दिर,मस्जिद,दाढ़ी,चोटी, पुजारी,मुल्ला,पादरी,पुरोहित ये सब इंसानियत के विरुद्ध खड़े हैं।ऐसे में न्याय ,समानता ,स्वतंत्रता,बंधुता के संवैधानिक मूल्यों के विपरीत की राह पकड़ कर क्या करेंगे बहुजन लोग ?
मेरे मन में एक सवाल है कि क्या गुर्जर समाज जो कि गुर्जर प्रतिहार राजवंश से स्वयं को गौरान्वित पाता है,वह राम मंदिर ट्रस्ट में शामिल होकर और मुख्य पुजारी बन कर अन्य पिछड़ा वर्ग का स्टेटस छोड़ देगा ? क्या उनका जनजाति आरक्षण पाने का आंदोलन थम जाएगा,क्या वे पौरोहित्य कर्म से विकास कर लेंगे समाज का ? क्या उनका पिछड़ापन,अशिक्षा और अन्य प्रकार की आर्थिक,सामाजिक व राजनीतिक व्याधियां इस तरह के आंदोलनों से समाधान पा लेगी ?
गुर्जर समाज के शिक्षित,बुद्धिजीवी व समझदार तबके को सोचना होगा कि वे पीछे की यात्रा के आकांक्षी है या आगे का सफर करने ज़ुनूनी है ,उन्हें पौराणिक प्रतिष्ठा जंचेगी या संवैधानिक अधिकार उनको आगे ले जाएंगे ?
रही बात किसी दलित को या आदिवासी को राम मंदिर का पुजारी नियुक्त करने की ,मुझे तो इस तरह की बात ही ठीक नहीं लग रही है,मेरे जेहन में रह रह कर सवाल कौंध रहे हैं कि इतना पढ़ लिखकर आगे बढ़ने के बाद दलित समाज के बुद्धिजीवी राम की पूजा करने को ही अपना मकसद बना लेंगे ?
कैडर कैम्पों में शम्बूक के वध की कहानियां तो बहुत कहते रहे,राम को काल्पनिक पात्र भी बताते रहे,हनुमानजी के चित्रों को भी अपमानित करने से नहीं चूके,अब वे रामभक्त हनुमान भक्त कहलवाना गौरव का विषय मानेंगे।
हम मंदिरों से दूरी बनाने की कसमें खाते रहे,एक वैकल्पिक धारा की बात कहते रहे,सबाल्टर्न का दावा किया,स्वयं को बुद्ध ,कबीर,फुले,पेरियार,बिरसा मुंडा और अम्बेडकर से जोड़ा और अन्ततःअब इक्ष्वाकु राम के मंदिर की चौखट पर पहुंच गए कटोरा लेकर कि पुजारी बना दो !
यह क्या हो रहा है जी ? ट्विटर पर ट्रेंड कराने के लिए भी मुद्दों का चयन ठीक से किया जा सकता है,क्या ऊलजलूल लगा रखा है,हमारा भला होगा,इन मंदिरों से ? राम जी करेंगे हमारा बेड़ा पार ? महापंडिता बन जाएगी कौशल पंवार ,तो हम सब नाक रगड़ने जाएंगे अयोध्या ?
मित्रों ,इस प्रकार के हनी ट्रेप में फंसने की कोई जरूरत नहीं है,मंदिर मस्जिद हमारे मुद्दे नहीं है,न पुरोहिताई हमारा लक्ष्य होना चाहिये, ये देवी देवता,घंटे घड़ियाल हमारा उद्धार कर देते तो संविधान की क्या जरूरत थी ?
दलित बहुजन चेतना को भटकाइये मत,पूजा पाठ के पाखण्ड से दूरी ही रखिये ,समाज को प्रगतिशील मूल्य, वैज्ञानिक चेतना से लेश कीजिये,जिनके राम है ,उन्हीं के मन्दिर है,उन्हीं को बजाने दीजिये घंटे घड़ियाल,उतारने दीजिये आरतियाँ, कौशल पंवार साहिबा को पढ़ाने दीजिये,मत धकेलिये किसी मंदिर में ,कुछ हासिल नहीं होगा।
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भेड़चाल में मत फंसिए,धर्म कर्म के दल दल में मत धंसिये, अयोध्या और राम मंदिर हमारा मामला नहीं है,इससे हमें कोई लेना देना नहीं है,इस पर बात करके या इस पर क्रिया प्रतिक्रिया करके अपनी ऊर्जा नष्ट मत कीजिये।
यह कमंडल आंदोलन मण्डल कमिशन की जातियों की चेतना को नष्ट करने का सुनियोजित अभियान है,यह दलित बहुजन चेतना को खत्म कर देने की साज़िश है,इस दुष्चक्र से दूर रहिये।
जिनके आराध्य,उनके धर्मस्थल,जिनकी अयोध्या, उनके ट्रस्ट ,वे ही काबिज़ रहेंगे,कितने ही ट्विटर ट्रेंड करवा लो ,नहीं बनने वाली पंवार मैडम पुजारिन,बननी भी नहीं चाहिये।
और हाँ गुर्जर भाईयों, किस अंधेरे रास्ते पर जाने का मन बना रहे हो,आपके अपने आदर्श है,अपना इतिहास है,अपने देवनारायण और संस्कृति है ,एक स्वाभिमानी कौम हो कर किससे मांग रहे हो ? कुछ नहीं मिलने वाला है,मुख्य पुजारी तो बहुत दूर असिस्टेंट पुजारी भी नहीं बनायेंगे।
ट्रस्ट तो बनेगा ,पर उसमें होंगे विहिप के साधु संत ,धन्ना सेठ और पंडे पुजारी व संघी भाजपाई नेतागण,यह उनसे सजेगा,आपको कौन पूछ रहा है ? कुछ भी नहीं मिलने वाला है,यह जरूर है कि ऐसी मांग उठाकर कुछ लोग नेता बन जायेंगे,मीडिया में छा जाएंगे,आम जन की भावनाओं को उकसायेंगे और फिर गायब हो जायेंगे।
समाज का सच्चा हितैषी वो नहीं है जो काल्पनिक मुद्दों पर भावनात्मक भयादोहन करे,बल्कि वो है जो सोच समझ के साथ समाज को चेताएँ और बुनियादी मुद्दों पर उसे टिकाए रखें।
मन्दिर,ट्रस्ट और पूजा पाठ के इस खेल में दलित ,पिछड़े,बहुजन सिर्फ उपभोक्ता बनने वाले है,आपका काम है ,श्रद्धापूर्वक सिर झुकाओ, दान पात्र में पैसा डालो,प्रसाद चढ़ाओ और जोर जोर से जय सिया राम बोलो,बाकी रिसोर्सेज पर अधिकार तो रिसॉर्सफुल लोगों का ही रहेगा।
लेखक शून्यकाल डॉटकॉम के संपादक हैं। उनके फेसबुक से साभार प्रकाशित।