सोहराबुद्दीन केस में सीबीआई को लताड़ने वाली जस्टिस रेवती का कामकाज बदला



कुछ दिन पहले ही उन्होंने सोहराबुद्दीन फ़र्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआई को असहयोग के लिए लताड़ा था और अब ख़बर आई है कि बाम्बे हाईकोर्ट की जज, जस्टिस रेवती मोहिते डेरे का कामकाज बदल दिया गया है। हाईकोट की नोटिस में कहा गया है कि जस्टिस रेवती आपराधिक समीक्षा के आवेदनों के बजाय अग्रिम ज़मानत अर्ज़ी के मामले देखेंगी।

जस्टिस रेवती, सोहराबुद्दीन शेख फर्ज़ी मुठभेड़ मामले में कुछ पुलिस अफ़सरों को आरोपमुक्त किए जाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं को सुन रही थीं। अब यह मामला जस्टिस एन.डबल्यू सांबरे देखेंगे।

बीती 21 फ़रवरी को जस्टिस रेवती ने सुनवाई के दौरान कहा था कि सीबीआई अदालत को पर्याप्त सहयोग नहीं दे रही है। यहाँ तक कि धारा 164 के तहत हुई गवाहियों का रिकॉर्ड भी नहीं रखा जा रहा है। उन्होने रुख कड़ा करते हुए कहा था कि अभियोजन एजेंसी का फर्ज़ है कि वह अदालत के सामने सभी साक्ष्य रखे, लेकिन वह केवल उन्हीं लोगों तक सीमित है जिन्हें आरोपमुक्त करने की चुनौती उसने दी है।

गौरतलब है कि सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने वरिष्ठ आईपीएस डी.जी.बंजारा, राजस्थान के पुलिस अफसर दिनेश एम.एन और गुजरात पुलिस के अधिकारी राजकुमार पांडियन को निचली अदालत द्वारा आरोपमुकत किए जाने को बाम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी है जबकि सीबीआई ने केवल राजस्थान पुलिस के कान्सटेबल दलपत सिंह राठौड़ और गुजरात पुलिस के अधिकारी एन.के.मीन को बरी किए जाने के ख़िलाफ़ याचिका दायर की है।

जस्टिस रेवती तीन हफ्तों से मामले की दैनिक सुनवाई कर रही थीं। रुबाबुद्दीन के वकील का कहना है कि वे चीफ़ जस्टिस से माँग करेंगे कि मामले की सुनवाई जस्टिस डेरे ही करें क्योंकि वे काफ़ी सुनवाई कर चुकी हैं।

सन 2005 में गुजरात पुलिस ने सोहराबुद्दीन शेख को मारा था। आरोप कि यह फ़र्जी एन्काउंटर था और साक्ष्य मिटाने के लिए सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी को भी पुलिस ने मार दिया। बाद में मामले के गवाह तुलरीसाम प्रजापित को भी पुलिस ने मार दिया।

हैरानी की बात ये है कि सीबीआई ने कभी मामले की जाँच में पूरी ताक़त लगाई थी और वंज़ारा, पांडियन, दिनेश के अलावा गुजरात के तत्कालीन गृहराज्यमंत्री अमित शाह (मौजूदा बीजेपी अध्यक्ष)  सहित 38 लोगों के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दायर किया था। वंज़ारा, पांडियन, दिनेश और अमित शाह सहित 15 लोगों को निचली अदालतों से आरोप-मुक्त किया जा चुका है, लेकिन सीबीआई की ओर से सिर्फ दो छोटे अधिकारियों को बरी किए जाने को ही चुनौती दी गई है।