जेएनयू प्रशासन मुर्दाबाद! मामिडाला मार ही डाला! संघी वीसी गो बैक! मामिडाला चोर है! बोल रे साथी हल्ला बोल, मामिडाला पर चढ़के बोल! हम अपना अधिकार मांगते, नहीं किसी से भीख मांगते!!!
ये कुछ नारे हैं जो एक घंटे जेएनयू में बिताने के बाद कहीं न कहीं से आप सुन ही जाएंगे। जेएनयू फिलहाल अपने दौर की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहा है। यह शिक्षा के निजीकरण और बाजारीकरण के ख़िलाफ़ लड़ाई है।
देशभर से एकजुटता
देशभर में अपने अकादमिक शोध के लिए सबसे चर्चित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय इन दिनों अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है। एकाएक 1000% तक की फ़ीस वृद्धि और कर्फ्यू टाइमिंग के ख़िलाफ़ यहां के छात्र पिछले तीन सप्ताह से आंदोलनरत हैं। जेएनयू पिछले तीन सप्ताह से कम्प्लीट स्ट्राइक पर है और छात्र रोज़ाना प्रदर्शन कर के अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं।
जेएनयू को इस लड़ाई में अब तक देश-विदेश के 150 से भी ज़्यादा शिक्षण संस्थानों का समर्थन मिला है। इनमें ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज और हारवर्ड विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। पिछले दिनों देश के सभी IIT में फ़ीस को दस गुना तक बढ़ा दिया गया था लेकिन विरोध की आवाज़ें दबी रह गयीं। उत्तराखंड में आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज की फ़ीस बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ छात्र पिछले डेढ़ महीने से आंदोलन कर रहे हैं। बिना किसी नियम का पालन किये हुए फ़ीस को ढाई गुना बढ़ाकर 80 हज़ार से 2 लाख 15 हज़ार कर दिया गया।
ये खबरें अखबारों के पहले पन्ने पर कभी जगह नहीं बना पाईं, लेकिन जेएनयू में हुई फ़ीस वृद्धि ने इन खबरों की तरफ़ देश का ध्यान आकर्षित किया है। इसे देखते हुए IIT-BHU में भी छात्रों ने फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। जेएनयू के प्रोफेसरों और छात्रों ने सरकार की नई शिक्षा नीति के ख़िलाफ़ मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक एक मार्च निकाला था जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय, अंबेडकर विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया के छात्र भी शामिल हुए थे। इसे देखते हुए कहा जा सकता है शिक्षा के निजीकरण के ख़िलाफ़ अब एक मुकम्मल लड़ाई छिड़ चुकी है। इसका नेतृत्व जेएनयू के हाथों में है।
कैंपस से संसद तक तैयारी
जेएनयू छात्रसंघ के नेतृत्व में जेएनयू के छात्रों ने सोमवार को संसद मार्च का आह्वान किया है। जेएनयू, उत्तराखंड के आयुर्वेदिक कॉलेजों, आइआइटी और अन्य विश्वविद्यालयों में फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ इस मार्च में दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र भी शामिल हो सकते हैं।
फरवरी में आयी CAG की रिपोर्ट बताती है कि शोध और विकास के क्षेत्र को जारी किए गए फंड में से 7298 करोड़ रुपया अब तक खर्च नहीं हो पाया है। सरकार ने कॉरपोरेट क्षेत्र को अब तक 5.7 लाख करोड़ का लोन माफ़ किया है और 4 लाख करोड़ की टैक्स रियायत दी है। फिर सवाल उठता है कि सार्वजनिक शिक्षा के लिए उसके पास पैसा क्यों नहीं है? इन्हीं सवालों को लेकर छात्र संसद की तरफ़ अपने कदम बढ़ाएंगे।
सोमवार से ही संसद का शीत सत्र भी शुरू हो रहा है। सांसदों से भी छात्रों को काफी उम्मीद है। जेएनयू के मुद्दे पर विपक्ष के कई नेताओं ने ट्वीट किया था। अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव और मनोज झा सहित कई नेताओं ने इस पर केंद्र सरकार की आलोचना की थी। मनोज झा राज्यसभा से सांसद हैं और इन सवालों को पहले भी संसद में बखूबी उठाते रहे हैं। छात्रों को इनसे खास उम्मीद है।
जेएनयू में इन्हीं मुद्दों को लेकर इतवार को एक टॉक शो आयोजित किया गया जिसमें मनोज झा ने छात्रों को आश्वस्त किया। कांग्रेस से राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने मीडियाविज़िल से बात करते हुए संसद में फीस वृद्धि का सवाल उठाने पर हामी भरी है।
जेएनयू में बवाल के पीछे की कहानी
असल मुद्दा यह था कि जेएनयू की IHA मीटिंग में अलोकतांत्रिक तरीके से हॉस्टल का नया ड्राफ़्ट मैन्युअल लाया गया। इसके लागू होने के बाद हॉस्टल फ़ीस, जो पहले 20 और 10 रुपये थी, उसे 600 और 300 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया। छात्रों को अब रखरखाव का चार्ज 1700 रुपये प्रतिमाह देना होगा, जो पहले था ही नहीं। बिजली और पानी का बिल भी छात्रों पर ही फाड़ा जाएगा। मेस का एकमुश्त सिक्योरिटी भुगतान भी 5500 से बढ़ाकर 12 हज़ार रुपये कर दिया गया। सारे खर्च को जब जोड़ा गया तो देश में सबसे सस्ती और बेहतर शिक्षा के लिए मशहूर जेएनयू अचानक सबसे महंगी पब्लिक फंडेड यूनिवर्सिटी बन गया। मैन्युअल में और भी कई बातें थीं जिनको लेकर विरोध शुरू हो गया।
जेएनयू हमेशा से अपनी आज़ादी के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन प्रशासन ने यहां हॉस्टल में 11:30 बजे रात के बाद प्रवेश पर दंड लगाने का फरमान सुना दिया। यहां की सेंट्रल लायब्रेरी चौबीसों घंटे सातों दिन खुली रहती है। इसका मतलब है कि छात्र कभी भी हॉस्टलों से बाहर निकल सकते थे। नए फ़ऱमान के बाद छात्रों को अंदेशा हो गया कि रात में लायब्रेरी बंद करने का फैसला भी प्रशासन जल्द ही कर सकता है। मैन्युअल में लड़कियों के लिए प्रॉपर ड्रेस कोड की बात भी कही गयी है। जेएनयू के सबसे ऊंचे नेचुरल व्यू पॉइंट पार्थसारथी रॉक्स (PSR) को भी एडमिनिस्ट्रेशन ने बंद करवा दिया।
सबसे हैरान कर देने वाली बात ये थी कि इसे जेएनयू छात्रसंघ और जेएनयू अध्यापक संघ को बैठक में शामिल किये बिना अलोकतांत्रिक तरीके से पास कर दिया गया। IHA की बैठक में प्रशासन ने छात्रों और अध्यापकों की तरफ़ से निर्वाचित दोनों संगठनों को नहीं बुलाया और मैन्युअल को पास कर दिया। छात्रों ने एकाएक लगायी गयी इतनी सारी पाबंदियों का विरोध शुरू कर दिया। जैसे-जैसे प्रशासन अड़ता गया, आंदोलन बढ़ता गया।
मानव संसाधन विकास मंत्री का घेराव
इस मुद्दे को लेकर कैंपस में कई विरोध प्रदर्शन हुए लेकिन जिस घटना ने इसे सुर्खियों में लाने का काम किया, वह थी जेएनयू के दीक्षांत समारोह में मानव संसाधन विकास मंत्री और कुलपति का घेराव। समारोह में बतौर मुख्य अतिथि भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू आए थे। इस विरोध प्रदर्शन में छात्रों पर पानी की बौछारों और लाठियों से हमला किया गया। अपनी मांगों को लेकर ज़िद पर अड़े छात्रों के सामने एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को झुकना पड़ा।
छह घंटे से ज़्यादा के घेराव के बाद निशंक ने छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष और अन्य प्रतिनिधियों से मुलाकात की। छात्रसंघ ने छात्रों की समस्या बताते हुए उन्हें अपना मांगपत्र सौंपा। निशंक ने आश्वासन दिया कि वे अपनी अध्यक्षता में, कुलपति और छात्रसंघ की मौजूदगी में एक बैठक बुलाएंगे जिसमें इन समस्याओं का उचित हल निकाला जाएगा। छात्रों ने इस सकारात्मक प्रतिक्रिया का सम्मान करते हुए उस दिन का प्रदर्शन खत्म कर दिया।
मंत्री की वादाखिलाफ़ी
आश्वासन के तीन-चार दिन बाद मंत्रालय के सचिव आर. सुब्रमण्यम का एक ट्वीट आता है जिसमें वे लिखते हैं कि जेएनयू फ़ीस वृद्धि के मामले में “मेजर रोलबैक” हुआ है और छात्रों से अपील है कि वे अब अपने-अपने क्लास की ओर लौटें। मीडिया में जमकर यह खबर चली।
संशोधित मैन्युअल को पढ़ने पर पाया गया कि जिसे “मेजर रोलबैक” बताया जा रहा था, वह दुष्प्रचार से ज़्यादा कुछ भी नहीं था क्योंकि यह छात्रों की मांग का एक प्रतिशत भी नहीं था। प्रशासन का यह भी बयान आया कि उसने छात्रों के फीडबैक को संज्ञान में लेते हुए ये संशोधन किए हैं। जेएनयू छात्रसंघ ने इनके दावों को झुठलाते हुए इसे धोखा करार दिया। जेएनयू में SSS की काउंसिलर अनाघा प्रदीप ने कहा कि छात्रसंघ की तरफ़ से चार हज़ार से भी ज़्यादा छात्रों के फ़ीडबैक विश्वविद्यालय प्रशासन को भेजे गए थे और उसमें छात्रों की बस एक मांग थी और वो है “फुल रोलबैक”।
संशोधित मैन्युअल का दुष्प्रचार
संशोधित मैन्युअल में एक बिस्तर वाले कमरे के फ़ीस को 600 से 200 रुपया किया गया है और दो बिस्तर वाले कमरे का 300 से 100 रुपये। बाकी 1700 प्रतिमाह सर्विस चार्ज और बिजली पानी बिल छात्रों को अब भी देना होगा। फिर छात्रों को थमाया गया लॉलीपॉप। मंत्रालय के ट्वीट में आपने ईडब्लूएस के लिए स्पेशल स्कीम देखा होगा, लेकिन प्रशासन के प्रेस नोट में यह बीपीएल श्रेणी में दर्ज है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय और जेएनयू प्रशासन को अब तक यह नहीं पता कि ईडब्लूएस और बीपीएल में क्या अंतर है।
मंत्रालय ने जो ईडब्लूएस के छात्रों को फ़ीस में 50% छूट की बात कहकर मीडिया में दुष्प्रचार किया, वह सफेद झूठ है। सच्चाई कुछ और है। जेएनयू प्रशासन के मैन्युअल में यह बस बीपीएल वालों यानी गरीबी रेखा से नीचे वालों के लिए है। गरीबी रेखा से नीचे वे छात्र आएंगे जिनकी सालाना पारिवारिक आय 27 हज़ार रुपये से कम है यानी महीने के 2250 रुपये। ईडब्लूएस के लिए वार्षिक आय 8 लाख रुपये तय की गयी है यानी इन्हें इसका कोई फ़ायदा नहीं मिलना है। साथ ही मैन्युअल में OBC, SC, ST का तो कहीं कोई ज़िक्र ही नहीं है।
जिनकी पारिवारिक आमदनी 2250 रुपये प्रतिमाह है उन्हें भी सर्विस चार्ज, पानी, बिजली और यूटिलिटी चार्ज, हॉस्टल फ़ीस और मेस बिल सहित महीने के पांच हज़ार से भी ज़्यादा खर्च करने हैं। इतना महंगा खर्च तो वे भी उठा पाने में अक्षम होंगे जिनके परिवार की वार्षिक आय डेढ़ लाख रुपये से कम होगी। फिर यह कैसा फ़ायदा? किसका फ़ायदा?
क्या है सरकार की मंशा
आंकड़े के मुताबिक जेएनयू के 40% छात्र ऐसे हैं जिनके परिवार की सालाना आय डेढ़ लाख रुपये से भी कम है। क्या सरकार चाहती है कि गरीब और वंचित छात्र पैसे के अभाव में उच्च शिक्षा से वंचित रह जाएं? बीच में ही पढ़ाई छोड़कर लौट जाएं? फ़िलहाल उससे भी बड़ा सवाल यह है कि कुलपति की नियुक्ति विश्वविद्यालय को चलाने के लिए हुई है, भागने के लिए नहीं। छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष ने साफ़ तौर पर कहा है कि “VC उन्हें IHA की मीटिंग में बुलाएं और पहले बताएं कि क्यों यह ज़रूरत पड़ी कि फ़ीस अचानक इतना बढ़ा दिया गया। हमें बताएं कि कहां विश्वास की कमी हुई तो हम भी सहयोग करने की स्थिति में होंगे लेकिन अगर संवाद की स्थिति नहीं बनती है तो जेएनयू के छात्र किसी भी तरह से कोऑपरेट नहीं करेंगे और ये स्ट्राइक तब तक चलता रहेगा जब तक कम्प्लीट रोलबैक न हो जाए।”
पूर्व छात्रों की ताकत
इस बार के आंदोलन में पूर्व छात्रों की ओर से काफी ताकत छात्रों को मिल रही है। जेएनयू से पढ़े लोग जो अपने-अपने क्षेत्रों में काफ़ी अच्छा कर रहे हैं, वे सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार के बीच वहां जेएनयू से जुड़े अपने अनुभव बता रहे हैं कि क्यों देश में ऐसे विश्वविद्यालयों की ज़रूरत है। क्यों जेएनयू गरीब और वंचितों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
जेएनयू के कई पूर्ववर्ती छात्रों ने लिखा कि यहां से 283 रुपये में पढ़ने वाले छात्र बाद में इसका कई गुना कर सरकार को भरते हैं। इनमें अकादमिक क्षेत्र से लेकर पत्रकारिता और राजनीति के कई नामचीन चेहरे शामिल हैं। फ़िलहाल कैंपस के भीतर की लड़ाई में जेएनयू के छात्रों को आंशिक सफ़लता हाथ लगी है। अगर संसद में भीतर भी उनकी लड़ाई लड़ी जाती है तो जेएनयू की पहचान और अस्मिता को बचाने को में यह अहम भूमिका निभा सकता है।