महीने भर पहले बनारस के वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखते हुए आत्मदाह की धमकी दी थी। वे इस बात से क्षुब्ध थे कि उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार बनारस के विश्वनाथ मंदिर से सीधे गंगा दर्शन करवाने की एक परियोजना पर काम कर रही है जिसके अंतर्गत दोनों के बीच 450 मीटर की दूरी में मौजूद तमाम पुरानी धरोहरों को पूरी तरह पाट दिया जाएगा। शर्मा का दुख अपने पौने दो सौ साल पुराने पुश्तैनी घर को लेकर भी था, लेकिन उस वक्त तक एक आयाम इस परियोजना का खुल कर सामने नहीं आया था जो ज्ञानवापी मस्जिद के साथ जुड़ा हुआ है और बेहद भयावह संकेत दे रहा है।
टूसर्किल पर सिद्धांत मोहन ने विश्वनाथ मंदिर परिसर के विस्तारीकरण की इस योजना पर एक विस्तृत स्टोरी की है जिसमें लोगों ने आशंका जतायी है कि यह ‘बनारस में एक अयोध्या रचने’ की भाजपाई साजि़श हो सकती है। दरअसल, काशी विश्वनाथ मंदिर और उसकी बगलगीर ज्ञानवापी मस्जिद के बीच का टकराव बहुत पुराना है। संघ ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के वक्त नारा दिया था- ”अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा बाकी है”। इस नारे में काशी का सीधा लेना-देना ज्ञानवापी और विश्वनाथ मंदिर के ऐतिहासिक टकराव से है। जाहिर है 2009 में मूल रूप से कल्पित इस योजना को सपा या बसपा की सरकार अपनी राजनीति के चलते जामा नहीं पहना सकती थी, लिहाजा इसे वापस ले लिया गया था लेकिन भारतीय जनता पार्टी ऐसा बेशक कर सकती है क्योंकि ज्ञानवापी के साथ छेड़छाड़ उसकी राजनीति में मददगार है।
सिद्धांत मोहन लिखते हैं कि विश्वनाथ मंदिर और गंगा को जोड़ने के लिए दोनों के बीच आने वाले 167 घरों को तोड़ना होगा। इस परियोजना में ज्ञानवापी मस्जिद सबसे कमज़ोर स्थिति में दिखायी देती है क्योंकि मंदिर परिसर को अगर आधा किलोमीटर विस्तारित किया जाएगा तो अपने आप मस्जिद का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा और यह एक और ”बाबरी विध्वंस” के समान अध्याय होगा।
पद्मपति शर्मा ने 30 जनवरी को फेसबुक पोस्ट में लिखा था, ”…मगर सोमवार 29 जनवरी को विकास प्राधिकरण के लोग सरस्वती द्वार के इस प्रहरी के घर आ धमके सर्वे के नाम पर।” उक्त सर्वे को महज एक महीना बीता है लेकिन ज्ञानवापी के सामने वाले मकान तोड़े जा चुके हैं। टूसर्किल के मुताबिक प्रशासन लगातार कह रहा है कि बिना सहमति के किसी का घर नहीं तोड़ा जाएगा लेकिन ”आधा दर्जन घरों को ढहाया जा चुका है और बाकी पर कार्रवाई के लिए लाल निशान लगा दिया गया है”।
इस मामले में विडंबना यह है कि स्थानीय निवासी तभी तक अपने मकानों को ढहाए जाने का विरोध कर रहे हैं जब तक कि उन्हें इस योजना के पीछे की असल सांप्रदायिक मंशा का अंदाजा नहीं है। जिस दिन स्थानीय हिंदुओं को पता लगा कि यह योजना दरअसल पुराने विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण से जुड़ी है, वे सहर्ष अपने मकान सरकार को दे देंगे और इस तरह वहां हज़ारों कारसेवकों को जुटने के लिए एक परिसर बनाना आसान हो जाएगा। इस आशय के बयान स्थानीय लोगों ने टूसर्किल को दिए हैं।
मीडियाविजिल से स्थानीय लोगों की बातचीत में एक और आयाम सामने आया है कि यह योजना वास्तव में इंटेलिजेंस की दृष्टि से तैयार की हुई है और इसमें न केवल राज्य सरकार बल्कि सीधे मोदी सरकार का हस्तक्षेप है। इंटेलिजेंस नहीं चाहता कि ज्ञानवापी मस्जिद के आसपास कोई मकान या रिहायशी परिसर रहे। इसके पीछे सोच चाहे जो हो, लेकिन बनारस जैसे हिंदुत्व के गढ़ में मंदिर परिसर के विस्तारीकरण के नाम पर इसे अमली जामा पहनाया जाना आसान होगा।
twocircles.net की खबर पर आधारित
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