अपना देश ट्यूनीशिया नहीं, महान है! खाइए, पीजिए, चिंतन-मनन और योगा कीजिए



बिहार के मुज़फ्फ़रपुर और आसपास के क्षेत्रों में दिमागी बुखार से सैकड़ों बच्चों की मौत के बीच योग दिवस के दिन प्रधानमंत्री मोदी मुजफ्फरपुर से 300 किलोमीटर की दूरी पर योगासन कर रहे थे. इससे पहले अपने दल के चुने हुए सांसदों के साथ दिल्ली के अशोक होटल में सामूहिक भोज समारोह में शामिल होने की तस्वीरें प्रधानमंत्री ने अपने ट्विटर अकाउंट से साझा की थीं और इससे एक दिन पहले वे एक खिलाड़ी की उंगली में चोट को लेकर बहुत दुखी थे. ट्यूनीशिया की राजधानी ट्यूनिश के एक सरकारी अस्पताल में बीते मार्च में 24 घंटे के भीतर 11 बच्चों की रहस्यमय तरीके से मौत के बाद वहां के स्वास्थ्य मंत्री अब्लदु-रऊफ अल-शरीफ को इस्तीफा देना पड़ा था. यहां कुछ ऐसा संभव है क्या?

इसी बीच एक और ख़बर आई. पटना में सचिवालय के अधीन उर्दू निदेशालय की ओर से बीते कल और आज श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में जश्न-ए-उर्दू का आयोजन किया जा रहा है. इसमें देशभर से उर्दू साहित्यकार, शायर, नाटयकर्मी आदि शिरकत कर रहे हें. एक अखिल भारतीय मुशायरा का आयोजन भी हुआ है. महफिल में नामचीन शायर हिस्सा ले रहे हैं. आज का प्रथम सत्र महिला साहित्यकारों पर केंद्रित था. गोद उजड़ गई माताओं की चीखों के बीच शायरी, कविता, ग़ज़ल, नाटक और स्त्री-विमर्श आदि का सरकारी आयोजन? ‘गज़ब’ शब्द का ईजाद ऐसे मौकों के लिए हुआ होगा!

कुछ ऐसा ही नज़ारा बीते वर्ष गोरखपुर का था. सरकार के पास बीआरडी अस्पताल के ऑक्सीजन का बकाया चुकाने के लिए 70 लाख रुपए नहीं थे. लोगों का गुस्सा और संवेदनाओं का पुलाव बन कर सोशल मीडिया पर बिछ गया. और कुछ महीने के बाद उसी प्रदेश में हेलिकॉप्टर से राम-सीता और लक्ष्मण उतरते हैं और मुख्यमंत्री योगी उनका स्वागत करने जाते हैं. टेलीविजन पर द्वापर युग लौट आता है. हिन्दू धर्म और संस्कृति के खूंखार रक्षक एंकर गर्व से कहते हैं अयोध्या में राम की वापसी. कल तक उन्माद और शोकाकुल जनता के मन में दीवाली की रौशनी भर जाती है. गुम हो जाती हैं मरे हुए बच्चों की आत्माएं. दब जाती हैं निस्‍संतान हो चुकी माताओं की चीखें. बता दें कि गोरखपुर में फिर से मौतें हुई हें. अब तक 16 बच्‍चे मर चुके हैं लेकिन मीडिया में यह घटना खबर नहीं है.

चमकी बुखार से 150 से ज्यादा मासूमों की मौत हो चुकी है और लू लगने से 150 से अधिक लोग दम तोड़ चुके है. स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के साथ मुज़फ़्फ़रपुर पहुंचे तो वे थके नज़र आए. नतीजा हुआ जब हर्षवर्धन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे तब उनके जूनियर मंत्री कई बार झपकी लेते हुए दिखाई दिए. कल जब वे मुजफ्फरपुर में पत्रकारों के सवालों का सामना कर रहे थे तो ऐसा लगा कि उनके मुंह में दही जमा हुआ था. इस बारे में चौबे ने कहा है कि वे सोते नहीं हैं, आंख बंद कर के मनन-चिंतन करते हैं.

रात हिंदी के कवि पंकज चतुर्वेदी के फेसबुक पेज पर प्रसिद्ध लेखक-पत्रकार व दार्शनिक एदुआर्दो गेलिआनो का एक कथन पढ़ा –”कम हमेशा ज़्यादा है. मौन सर्वश्रेष्ठ भाषा है, हम शब्दों की भयावह स्फीति के समय में रह रहे हैं और यह मुद्रा-स्फीति से भी बुरा है.”

हमें नहीं पता कि सत्ता ने इस पूरे कथन को कितना समझा होगा, किन्तु पक्के तौर पर कह सकते हैं कि मौके के हिसाब से उसने ‘मौन सर्वश्रेष्ठ भाषा है’ को आत्मसात ज़रूर कर लिया है. इससे पहले हमने अक्सर उनको कठिन या विचलित करने वाले सवालों पर ‘नो कमेंट’ कह कर निकल जाते देखा है किन्तु अब वे माइक से बच कर भाग रहे हैं. यह पलायन और ‘मौन सर्वश्रेष्ठ भाषा’ केवल ऐसे ही मुद्दों तक सीमित है. आज की सत्ता से आप राष्ट्रवाद, जाति-धर्म पर सवाल कीजिये, फिर देखिये मौन की सर्वश्रेष्ठ भाषा कहां चली जाती है.

भारत में प्रतिवर्ष लाखों बच्चे भुखमरी और कुपोषण से मारे जाते हैं. बच्चे ही नहीं महिलाएं और मजदूर भी मारे जाते हैं. किन्तु हम क्षण भर के लिए तभी जागते हैं जब टीवी पर्दे पर ‘ब्रेकिंग’ लिखा हुआ आता है. अकेले महाराष्ट्र में प्रति वर्ष औसतन 11 हजार बच्चे कुपोषण से मारे जाते हैं. झारखंड में 48 फीसद बच्चे कुपोषित हैं. 2016 में राज्य पोषण मिशन के सर्वे के अनुसार झारखंड में चार लाख बच्चे कुपोषित हैं. बिहार में करीब 44 फीसदी बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं. इसी तरह मध्यप्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में जनवरी 2016 से जनवरी 2018 के बीच क़रीब 57,000 बच्चों ने कुपोषण के चलते दम तोड़ दिया था. मध्य प्रदेश में कुपोषण से हर दिन 92 बच्चों की मौत होती है. ओडिशा में भी कुपोषित बच्चों और महिलाओं की बड़ी आबादी है.

वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत 103वें स्थान पर है. ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 का कहना है कि दुनिया में कुल 15 करोड़ 80 लाख अविकसित बच्चों में से 31 फीसदी बच्चे भारत में हैं, जबकि दुनिया भर के कुपोषित बच्चों का आधा हिस्सा भारत में है. हमारे देश में 4 करोड़ 60 लाख 60 हज़ार बच्चे हैं जो लंबे समय तक खराब पोषण के भोजन और बार-बार संक्रमण की वजह से पीड़ित रहते हैं. पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए  कुपोषण, मृत्यु दर का एक बड़ा कारण है. यह भुखमरी या बीमारी के कारण होता है. ग्रामीण भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में 40.7 प्रतिशत कुपोषित हैं. शहरी भारत में 30.6 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं. ग्रामीण इलाकों में पांच वर्ष से कम उम्र के 21.1 प्रतिशत बच्चे रुग्‍ण (स्‍टंटेड) हैं और 19.9 शहरी क्षेत्रों में ऐसे बच्चे हैं. मने भारत बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी नीचें है.

ये सारे आंकड़े सहज उपलब्ध हैं, पर परवाह किसे और क्यों होने लगी भला? राष्ट्रवाद और मूर्ति स्थापन के क्रियाकलापों से हमें फुर्सत कहां? अनाज उगाने वाला किसान ही मजबूर है मरने को तो कुपोषण की चिंता कहां से आएगी. इन्सान से अधिक हमें गाय की चिंता है. ऐसे में पत्रकार राष्ट्र की सुरक्षा की चिंता में चीख-चीख कर देश को जगाने में लगा है कि क्यों आपत्ति है जय श्रीराम और वंदेमातरम् कहने पर? अंत में संसद में गूंज उठा जय श्रीराम और अल्लाह हु अकबर, जय मां काली का नारा. हम खाए–अघाए लोग यूं ही पगलाए रहते हैं. तालिबान ने मलाला युसुफ़ज़ई को गोली मारी. हमने कविताएं लिखीं. वह बच गई और उसे कैलाश सत्‍यार्थी के साथ नोबेल मिल गया. मने भारत–पाकिस्तान को संयुक्त नोबेल. यही सत्य है. सत्य का अर्थ क्‍या सत्‍यार्थी समझते हैं? मुज़फ्फ़रपुर बालिका गृह कांड पर सत्यार्थी ने सत्ता से कोई सवाल किया क्या? किया हो तो बताइएगा.

मीडिया की बात न कीजिये.  हरियाणा के कुरुक्षेत्र के बोरवैल में एक प्रिंस नामक बच्चा गिरा था. तब देश का तमाम मीडिया लगातार लाइव प्रसारण दिखाने में जुट गया, सेना को बुलाया गया, आखिर में प्रिंस गड्ढे से बाहर आ गया. आज वो प्रिंस कहां है? कहां है तेज दौड़ने वाला बुधिया? मीडिया मेजबान के जायके के हिसाब से मसाले की खेती करती है और हम उसी स्वाद में बहकने लगते हैं.

बीते वर्ष गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में जब इसी दिमागी बुखार और ऑक्सीजन की कमी से सैकड़ों बच्चों की मौत हुई तब यूपी के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था, ‘अगस्त में बच्चे तो मरते ही हैं’. उस घटना में जो डॉक्टर अपने दम पर बच्चों को बचाने की कोशिश कर रहा था, यूपी सरकार ने उसे ही अपराधी बना कर जेल भेज दिया! झूठ की उम्र लम्बी नहीं होती. डॉक्टर कफील बाहर आये और अब वे बिहार पहुंच कर गरीब बच्चों का उसी तरह इलाज कर रहे हैं, लोगों को जागरूक बना रहे हैं. अब तक मीडिया की नज़र उन पर नहीं पड़ी है. बेहतर है. पड़ गयी तो कहीं बिहार सरकार भी उन्‍हें जेल न भेज दे इसका डर है.