क्या राहुल गाँधी को ‘पप्पू’ बताने वाले ‘मोडिया’ का आत्मविश्वास डोलने लगा है !



दो बातें एक साथ हो रही हैं।

एक तो इस बात पर व्यापक सहमति बनती जा रही है कि मोदी जी ने नोटबंदी जैसे क़दमों से भारतीय अर्थव्यवस्था की गाड़ी में पंक्चर कर दिया (अब तो बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी भी कह रहे हैं कि इकोनॉमी क्रैश हो सकती है !), दूसरे, राहुल गाँधी की छवि अचानक गंभीर राजनेता की बनने लगी है।

जिस ‘मोडीफ़ाइड’ मीडिया में राहुल गाँधी को हास्यास्पद साबित करने की एक सुचिंतित कोशिश नज़र आती रही है, वहाँ भी इस बदलाव की झलक नज़र आने लगी है। यह सिलसिला ख़ासतौर पर राहुल गाँधी के अमेरिका में दिए गए हालिया भाषणों के साथ शुरू हुआ है। कई पुराने मोदी प्रशंसक राहुल में उम्मीद तलाशने लगे हैं जबकि वे कल तक राहुल को ‘भोंदू’ बताते थे।

याद कीजिए, बतौर प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी की बढ़ती दावेदारी के साथ ही सोशल मीडिया पर राहुल तेज़ी से पप्पू घोषित होने लगे थे ( कांग्रेस का आरोप रहा है कि इसके पीछे बाक़ायदा मोदी की रणनीति थी और सैकड़ों पेड आईटी वर्कर राहुल के ख़िलाफ़ अनर्गल प्रचार के लिए लगाए गए थे। )। यह सिलसिला मोदी के पीएम बनने के बाद और तेज़ हुआ, लेकिन इधर राहुल के भाषणों और अपनी कमियों को बेझिझक स्वीकारने के उनके अंदाज़ से सोशल मीडिया में भी माहौल बदलने लगा है।

वैसे राहुल एक मामले में मोदी से साफ़तौर पर बेहतर साबित हो रहे हैं। मोदी आमतौर पर इंटरव्यू देते नहीं और देते भी हैं तो फ़िक्स, जिसमें सवाल पहले से तय होते हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने एक भी प्रेस कान्फ्रेंस का सामना नहीं किया जिसमें स्वतंत्र ढंग से सवाल पूछने की आज़ादी हो (बतौर गुजरात मुख्यमंत्री भी, करन थापर के सवालों से पानी माँग उठे मोदी, इंटरव्यू छोड़कर चले गए थे। ) । वहीं राहुल, सवालों का बेझिझक सामना करते हैं। जो लोग राहुल के विरोधी नहीं थे, उनकी भी राय थी कि वे व्यावहारिक ढंग से नहीं सोचते, आदर्शवादी हैं और अपनी ही दुनिया में मगन रहते हैं।

लेकिन मोदी के तीन साल के शासन के बाद, राहुल की यही अदा उनके काम आ रही है।

आदित्य सिन्हा स्तंभकार और उपन्यासकार हैं। अतीत में उन्होंने राहुल ही नहीं सोनिया गाँधी को भी लगातार निशाना बनाया । राहुल की डिग्री पर सवाल उठाने के लिए तो उनका कांग्रेस से खासा विवाद हुआ था। उन्होंने ‘मिड डे’ के अपने स्तंभ ‘द हिदू हिप्पी ’ में एक लेख लिखा है- Why I changed my mind about Rahul ….इस लेख में आदित्य ने जो लिखा है उसका निचोड़ कुछ यूँ है कि “अमेरिका में राहुल को सुनने के बाद उनके विचार पूरी तरह बदल गए हैं। राहुल हर लिहाज़ से मोदी से बेहतर हैं। बीजेपी की अफ़वाह फैलाने वाली मशीन ने राहुल के बारे में लगातार झूठ बोला। राजनीति को लेकर अनिच्छुक और नाकाबिल बताया। लेकिन राहुल ने उन्हें गलत साबित कर दिया। मोदी अपने पार्टी सांसदों का भी सवाल नहीं सुन सकते, जबकि राहुल ने पूरी गंभीरता से कठिन सवालों का सामना किया।”

आदित्य यहीं नहीं रुकते। वे आशा करते हैं कि ” राहुल प्रधानमंत्री बनेंगे और रघुराम राजन को अपना वित्तमंत्री बनाएँगे। ये असुरक्षित मोदी से बिल्कुल उलट होगा जो अपने समर्थक अरविंद पनगढ़िया को भी बर्दाश्त नहीं कर पाए। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का यह कहना गलत साबित होगा कि 2019 चुनाव को देखते हुए भारत के पास कोई सक्षम विकल्प नहीं है। ”

यह केवल आदित्य सिन्हा की बात नहीं है।

हिंदुस्तान टाइम्स में आज वाशिंगटन में नीति निर्धारकों और रणनीतिकारों के साथ राहुल गाँधी की बैठक की एक रिपोर्ट छपी है। यशवंत राज की लिखी इस रिपोर्ट का शीर्षक है- Rahul Gandhi leaves wonks, experts surprised, impressed at Washington DC

यह हेडिंग अपने आप में बहुत कुछ कह रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कई लोगों को राहुल को सुनकर यक़ीन ही नहीं हुआ। (उन्होंने सुन रखा था कि राहुल पप्पू है।) राहुल ने तमाम विषयों में अपनी स्पष्ट समझ से उन्हें चौंका दिया। इस मीटिंग में शामिल तमाम लोगों ने कहा कि राहुल उनकी कल्पना से कहीं बेहतर साबित हुए। एक ने कहा कि जहाँ ज़्यादार नेता राजनीतिक परिस्थितियों और गठबंधनों पर बात करते हैं,  जबकि राहुल नीतियों पर केंद्रित हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि राहुल गाँधी ने वाशिंगटन पोस्ट के संपादकीय बोर्ड के साथ भी एक बैठक की।

मीडिया में झलक रहे इन बदलावों को किसी पीआर एक्सरसाइज़ का नतीजा नहीं कहा जा सकता (इसमें मोदी मीलों आगे हैं ) राहुल सबके सामने बोल रहे हैं, लिखित भाषण के अलावा औचक सवालों का जवाब भी दे रहे हैं। बीजेपी पसोपेश में है। याद कीजिए जब उन्होंने वंशवाद को भारतीय समाज की हक़ीक़त क़रार दिया था तो स्मृति ईरानी समेत कई केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता हमलावर मुद्रा में सामने आए थे, लेकिन जैसे-जैसे राहुल का दौरा आगे बढ़ा, बीजेपी की ओर से ‘इग्नोर’ करने की रणनीति अपनाना ही बेहतर समझा गया। सोशल मीडिया में भी राहुल-विरोधी ट्रोलकंपनी सुस्त दिख रही है।

बहरहाल, 2019 में राहुल विकल्प बन पाएँगे या नहीं, मोदी को हटा पाएँगे या नहीं, यह कहना मुश्किल है। लेकिन राहुल के ‘पप्पू’ होने को लेकर मीडिया का आत्मविश्वास डोलने लगा है, यह बहुत साफ़ है।

कैलीफ़ोर्निया युनिवर्सिटी, बर्कले में 11 सितंबर को दिए गए राहुल गाँधी के इस भाषण को सुनने से इसकी वजह समझ आती है !

. बर्बरीक