COMCASA: अमेरिका दबाव में झुककर भारत की संप्रुभता से समझौता कर गई मोदी सरकार !



गिरीश मालवीय 

दिल थाम कर पढ़िए–मोदी सरकार ने देश की सम्प्रुभता को अमेरिका के हाथों गिरवी रखने का पाप कर दिया है।  लेकिन यह विश्लेषण आपको किसी भी अखबार में पढ़ने या टीवी चैनलो पर सुनने को नही मिलेगा।

पिछले दिनों दिल्ली मे भारत और अमेरिका के बीच टू प्लस टू की बैठक सम्पन्न हुई है इस बैठक में भारत की तरफ से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भाग लिया अमेरिका के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री भी इस बैठक में भाग लेने के लिए भारत आए थे।

इस बैठक में भारत का जोर मुख्यतः दो बातों पर था पहला ये कि अमेरिकी नाराजगी को देखते हुए भारत ईरान से तेल नहीं खरीदें तो कहां जाए? दूसरा ये कि अमेरिकी आपत्तियों के चलते रूस से मिसाइल क्यों न खरीदें?

भारत अपनी जरुरतों का एक चौथाई तेल ईरान से मंगाता है अभी जो तेल के दाम बढ़ रहे हैं यह दाम ओपेक देश बढ़ा रहे हैं, अमेरिका के दबाव में आकर भारत ईरान से तेल मंगाना लगभग बन्द कर चुका है इसलिए उसे ओपेक देशो की मनमानी सहन करना पड़ रही है और इस कारण पेट्रोल डीजल के दाम भी बढ़ रहे है अमेरिकी दबाव में चाबहार पोर्ट पर भी भारत पीछे हट रहा है।

रूस से किया गया एस 400 मिसाइल प्रणाली का सौदा ‘आखिरी चरण’ में है लेकिन अमेरिका इस सौदे को न करने का दबाव बना रहा है।

लेकिन अमेरिका ने इन दोनों मुद्दों को पूरी तरह से इग्नोर कर दिया अमेरिकी प्रतिनिधि माइक पोम्पियो ने कहा कि भारत और अमेरिका पहली ‘टू प्लस टू’ वार्ता के दौरान बड़े और रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा होगी उन्होंने कहा कि बैठक मुख्य रूप से रूस से मिसाइल रक्षा प्रणाली और ईरान से तेल खरीदने की भारत की योजना पर केन्द्रित नहीं है।

तो फिर चर्चा किस बात पर की गयी ? और बैठक का नतीजा क्या निकला! यह भी समझ लीजिए-

भारत ने अमेरिकी दबाव में आकर इस बैठक में ‘कम्युनिकेशन कंपेटिबिलिटी ऐंड सिक्युरिटी अग्रीमेंट’ (कॉमकासा) पर हस्ताक्षर कर दिए है ओर मोदी सरकार की मांगों पर उसे ठेंगा दिखा दिया गया है।

अब यह कॉमकसा समझौता क्या है यह जानना बेहद जरूरी है क्योंकि यह भारत की सम्प्रुभता को गिरवी रखने वाले समझौतों की दूसरी कड़ी है। किसी देश पर अपना सम्पूर्ण प्रभाव जमाने के लिए अमेरिका तीन रक्षा समझौतों को आवश्यक मानता है इसी में से एक समझौता है कॉमकासा (COMCASA) जो इस बैठक में किया गयाष

दो अन्य समझौते हैंः लेमोआ यानी लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरंडम ऑफ एग्रीमेंट (Logistics Exchange Memorandum of Agreement :LEMOA) और ‘बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट फॉर जियोस्पपेटियल को-ऑपरेशन यानी ‘बेका’ (Basic Exchange and Cooperation Agreement for Geo-spatial Cooperation: BECA)

लेमोआ पर मोदी सरकार अमेरिका से अगस्त 2016 में समझौता कर चुकी है जिसके तहत दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के सैन्य अड्डों का इस्तेमाल कर सकती हैं तीसरा समझौता ‘बेका’ पर भी वार्ता की शुरुआत हो चुकी हैं

लेमाओ समझौते के तहत अमरीका जब चाहे तब हिंदुस्तान के अंदर अपनी फौजों को तैनात कर सकता है। भारत के परिपेक्ष्य में यह बहुत गलत समझोता था अमरीकी सशस्त्र बलों को भारतीय नौसैनिक बंदरगाहों तथा हवाई अड्डो का अपने युद्घ-पोतों, जंगी जहाजों की सर्विसिंग, तेल भराई तथा उनके रख-रखाव के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत देने का मतलब है हमारे देश द्वारा अब तक अपनाए जा रहे स्वतंत्र रुख से और किसी सैन्य गठजोड़ में शामिल न होने की उसकी नीति से पूरी तरह से हट जाना।

लेकिन कॉमकसा का समझौता तो ओर अधिक खतरनाक है इसे पहले सिसमोआ (CISMOA) के नाम से जाना जाता था इस पर दस्तखत करने के बाद अमेरिका अपनी कम्पनियों द्वारा सप्लाई किए गए हथियारों का समय समय पर निरीक्षण करने का हकदार होगा। यानी वह जब चाहे मांग कर सकता है कि जिन हथियारों पर अमेरिकी संचार उपकरण लगे हैं वह उनकी जांच करेगा यह समझौता दोनों देशों के सैन्य बलों के संचार नैटवर्कों का आपस में जोड़ देगा भारत की कोई तकनीक सीक्रेट नही रह जाएगी।

यूपीए सरकार पर भी इन दोनों समझौतों को मानने का दबाव बनाया गया था लेकिन मनमोहन सरकार ने इस पर दस्तखत नहीं किए थे, तत्कालीन रक्षा मंत्री, ए के अंथनी ने इस संबंध में स्पष्ट रुख अपनाया था।

इसे मोदी समर्थक भारत की कूटनीति कहेंगे लेकिन LEMOA ओर COMCASA पर हस्ताक्षर भारत की कूटनीतिक विफलता है क्योंकि किसी शक्तिशाली देश जैसे अमरीका की गोद में बैठ जाने को कूटनीति नहीं कहते, कूटनीति का अर्थ होता है सभी देशों के साथ अच्छे सम्बंध बना के हर देश का अपने सामरिक हितों के पक्ष में इस्तेमाल करना। LEMOA ओर COMCASA जैसे किसी समझौते पर हस्ताक्षर कर के अमरीका जैसे किसी शक्तिशाली देश की सेना को अपनी सरज़मी पर बुलाने को आत्मसर्पण करना बोलते हैं, कूटनीति नही।

स्पष्ट है कि भारतीय हितो से समझौता कर मोदी सरकार अमेरिका जैसी साम्राज्यवादी शक्तियों की गोदी में खेल रही हैं।

 

लेखक आर्थिक मामलों के जानकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।