विघटनकारी है बीजेपी का यूपी घोषणापत्र, ‘मजनूँ विरोधी दल’ में छिपा है लव जिहाद का हल्ला !



उत्तरप्रदेश चुनाव 2017: भाजपा का विघटनकारी एजेंडा

 

उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव, न केवल भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा आदि जैसे राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण हैं वरन देश में धर्मनिरपेक्षता और प्रजातंत्र के भविष्य का निर्धारण करने में भी इस चुनाव की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।  राष्ट्रीय परिदृश्य पर भाजपा का उदय, राममंदिर आंदोलन और उसके बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा से शुरू हुआ था। इसके बाद से भाजपा अपने एजेंडे में नए-नए विघटनकारी मुद्दे शामिल करती जा रही है, जिसका मुख्य उद्देश्य चुनावों में लाभ प्राप्त करना है।

उत्तरप्रदेश के चुनाव की घोषणा होने के पहले से ही कई भाजपा नेताओं ने राममंदिर, लव जिहाद व कैराना से हिन्दुओं का पलायन जैसे मुद्दे उठाने शुरू कर दिए थे। सन 2002 में गुजरात में हुई भयावह मुस्लिम-विरोधी हिंसा को राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने, क्रिया की प्रतिक्रिया बताकर औचित्यपूर्ण ठहराया था। उन्होंने यह भी कहा था कि दंगा पीड़ितों के लिए स्थापित शरणार्थी शिविर, बच्चों के उत्पादन के केन्द्र बन गए हैं और इसलिए उन्हें बंद कर दिया जाना चाहिए। समय के साथ उन्होंने अपने मूल सांप्रदायिक एजेंडे को पर्दे के पीछे रखते हुए विकास का नारा बुलंद करना शुरू कर दिया। परंतु यह केवल लोगों की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास था। मीडिया और अत्यंत चतुराईपूर्ण प्रचार के ज़रिए उन्होंने अपनी छवि ‘विकास पुरूष’ के रूप में बनाने की कोशिश की और उनकी सरकार ने ऐसी नीतियां बनाईं, जिनसे कुबेरपतियों को लाभ हुआ। परंतु अपने मूल एजेंडे को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। सन 2014 के आम चुनाव के प्रचार के दौरान जहां वे‘अच्छे दिन’ लाने का वायदा करते रहे, वहीं वे ‘पिंक रेव्यूलेशन’ (देश से मांस का निर्यात) और असम में गेंडे के संरक्षण के संदर्भ में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा भी उठाते रहे।

इसके अलावा, उनके साथियों ने राममंदिर, मुंहजबानी तलाक और संविधान के अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों को भी जिंदा बनाए रखा। विकास के नारे और पर्दे के पीछे से सांप्रदायिक प्रचार से भाजपा को केन्द्र में अपनी सरकार बनाने में सफलता मिल गई। अभी हाल में चुनाव आयोग ने भाजपा सांसद साक्षी महाराज की इस टिप्पणी पर घोर आपत्ति की कि देश की आबादी में वृद्धि के लिए मुसलमान ज़िम्मेदार हैं।

उत्तरप्रदेश चुनाव में ‘राष्ट्रीयता’, ‘राष्ट्रीय गौरव’ और ‘देशभक्ति’ जैसे भावनात्मक मुद्दे उठाए जा रहे हैं। सरकार, पाकिस्तान के विरूद्ध सर्जिकल स्ट्राईक और नोटबंदी को अपनी बड़ी सफलताएं बता रही है परंतु इन दोनों ही मुद्दों की हवा निकल चुकी है। सर्जिकल स्ट्राईक के बाद भी सीमा पर भारतीय सैनिकों के शहीद होने का सिलसिला जारी है और नोटबंदी के कारण आमजन जितने परेशान हुए हैं, उसके चलते इस बात की बहुत कम संभावना है कि वे इस निर्णय का समर्थन करेंगे। भाजपा को भी यह बात समझ में आ गई है और इसलिए उसने अपना विघटनकारी प्रचार फिर से शुरू कर दिया है। भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में बड़ी चतुराई से ऐसे मुद्दों का समावेश किया गया है। घोषणापत्र में ‘हिन्दू गौरव’ और ‘संपूर्ण हिन्दू समाज’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसमें राममंदिर के मुद्दे को भी जगह दी गई है। भाजपा के विरोधियों का कहना है कि राममंदिर एक ऐसा मुद्दा है जिसे भाजपा जब चाहे ठंडे बस्ते में डाल देती है और जब चाहे उसे पुनर्जीवित कर जनता को भरमाने की कोशिश करने लगती है। बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के बाद से ही राममंदिर का मुद्दा, भाजपा के एजेंडे में बना हुआ है और यह इस बात के बावजूद, कि यह प्रकरण उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है।

यह स्पष्ट है कि अपने चुनाव प्रचार में जहां मोदी सांप्रदायिक मुद्दों को परोक्ष ढंग से उठाएंगे वहीं उनके अन्य साथी खुल्लमखुल्ला नफरत फैलाने वाली बातें कहेंगे। कुछ समय पूर्व, भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने उत्तरप्रदेश के कैराना से हिन्दुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था। अब एक अन्य भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने यह कहना शुरू कर दिया है कि पूरा पश्चिमी उत्तरप्रदेश, कश्मीर बनने की राह पर है, वहां रहने वाले हिन्दुओं को डराया-धमकाया जा रहा है और पलायन करने पर मजबूर किया जा रहा है। सच यह है कि राज्य के मुज़फ्फरनगर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद से हज़ारों मुसलमानों को अपने गांव छोड़कर भागना पड़ा है। हुकुम सिंह के दावे का खोखलापन उजागर हो चुका है। उन्होंने कैराना से पलायन करने वाले जिन हिन्दू परिवारों की सूची जारी की थी, उनमें से कई अब भी वहां रह रहे हैं और कई ने आर्थिक और सामाजिक कारणों से अन्य स्थानों पर रहना बेहतर समझा। भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में इस मुद्दे पर श्वेतपत्र जारी करने की बात कही गई है।

मुज़फ्फरनगर दंगों को भड़काने में लव जिहाद के दुष्प्रचार की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। अब भाजपा‘मजनू-विरोधी दल’ बनाने की बात कर रही है। यह लव जिहाद के मुद्दे को नए कलेवर में प्रस्तुत करने का प्रयास है। गोमांस का मुद्दा भी भाजपा के लिए वोट कबाड़ने का ज़रिया बन गया है। इस मुद्दे पर घोषणापत्र में कहा गया है कि सरकार बड़े बूचड़खानों को बंद करवाएगी। लैंगिक न्याय के मसले पर भाजपा के दोहरे मानदंड सबके सामने हैं। जहां वह मुंहजबानी तलाक के कारण मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय को लेकर बहुत चिंतित है, वहीं दलित, आदिवासी और हिन्दू महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के संबंध में चुप्पी साधे हुए है। यह साफ है कि भाजपा, मुंहजबानी तलाक का विरोध इसलिए नहीं कर रही है क्योंकि वह लैंगिक न्याय की पक्षधर है वरन यह मुद्दा उसके लिए अल्पसंख्यकों के दानवीकरण का उपकरण है। इसके साथ ही,यह कहना भी उचित होगा कि मुंहजबानी तलाक जैसी सड़ीगली परंपराओं से मुक्ति आवश्यक है क्योंकि ये मुसलमानों की प्रगति में बाधक हैं।

हाल में भाजपा विधायक संगीत सोम ने दादरी कांड के बाद दिए गए अपने भाषण का वीडियो प्रसारित किया। इसके बाद उनके खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें उन्हें आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन करने का दोषी बताया गया है। इसी तरह, एक अन्य भाजपा विधायक सुरेश राणा को सांप्रदायिक घृणा फैलाने का दोषी ठहराया गया है और उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है। राणा ने कहा था कि अगर वे चुनाव जीत जाते हैं तो कैराना, देवबंद और मुरादाबाद में स्थायी कर्फ्यू लगाया जाएगा। योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अपना वोट देने से पहले मतदाताओं को दंगों और बलात्कारों को याद करना चाहिए।

भाजपा नेताओं की मूल रणनीति, समाज को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत करने की है। उसके सांप्रदायिक एजेंडे में नए-नए मुद्दे जुड़ते जा रहे हैं। अब उसके पास इस तरह के मुद्दों का भंडार है, जिन्हें उसके अलग-अलग नेता, समय-समय पर उठाते रहते हैं। इन नेताओं को अलग-अलग काम सौंपे गए हैं। कुछ विकास की बात करते हैं, कुछ अपरोक्ष रूप से सांप्रदायिकता फैलाते हैं और तो कुछ खुलेआम और अभद्र भाषा में अल्पसंख्यकों के खिलाफ विषवमन करते हैं। उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि चुनाव प्रक्रिया,धर्मनिरपेक्ष होनी चाहिए। हमें सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का सम्मान करना चाहिए और चुनाव आयोग को अपनी शक्तियों का प्रभावकारी ढंग से इस्तेमाल करते हुए समाज को बांटने वाली बातें कहने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।

. राम पुनियानी

(राम पुनियानी आईआईटी, मुंबई के पूर्व प्रोफ़ेसर हैं। मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया ने किया है)