गुजरात में अल्पसंख्यकों की एक बड़ी आबादी शहरी इलाकों में रहती है। लेकिन गुजरात सरकार ने राज्य के बड़े और छोटे शहरों में रह रहे इस समुदाय के लोगों के घर बनाने में मदद के लिए कोई फंड जारी नहीं किया। जबकि वर्ष 2014-15 में केंद्र की ओर से इनके लिए 2033.08 करोड़ रुपये जारी हुए थे। हालांकि बाद के साल के यानी 2015 के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन यह भी सच है कि देश भर में अल्पसंख्यकों को आवास मुहैया कराने के लिए 22346.39 करोड़ रुपये जारी हुए, जिसमें से सिर्फ 5226.47 करोड़ रुपये ही खर्च हुए।
हालांकि इस संबंध में गुजरात के ग्रामीण इलाकों के आंकड़े ज्यादा अच्छे हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत अल्पसंख्यकों के आवास के मद में 2015-16 में 2589 लाभार्थियों का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि इसके तहत 2382 लाभार्थियों को फायदा पहुंचाया गया।
गुजरात में अल्पसंख्यक आबादी सबसे ज्यादा कच्छ, राजकोट और भरूच जिले के आठ ब्लॉकों में हैं। कच्छ, जूनागढ़, पंचमहल, भरूच, साबरकांठा, अहमदाबाद, राजकोट, जूनागढ़ और बोरसाड़ जिले के आणंद में सबसे ज्यादा अल्पसंख्यक आबादी है।
यह आंकड़ा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने जारी किए हैं। इसे माइनरिटी को-ऑर्डिनेशन कमेटी, गुजरात के संयोजक मुजाहिद नफीस ने इकट्ठा किया है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि केंद्र सरकार ने 2014-15 में अल्पसंख्यक समुदाय के 670 लाभार्थियों को अपना या सामूहिक तौर पर छोटे उद्योग स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया होगा। लेकिन गुजरात सरकार ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की।
पूरे भारत में अल्पसंख्यक वर्ग के 9000 लाभार्थियों को स्कीम से फायदा पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया गया था। इनमें से 5668 लाभार्थियों की ‘मदद’ की गई। इसी तरह 4424 अल्पसंख्यक स्वयं-सहायता समुदायों को लाभ पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन एक को भी मदद नहीं मिली। वहीं अखिल भारतीय आंकड़ों के मुताबिक देश भर में ऐसे लाभ पाने वाले लाभार्थियों की संख्या रही 67614। जबकि लक्ष्य 60,000 लोगों का रखा गया था।
गुजरात सरकार ने 2014-15 के दौरान अल्पसंख्यक लाभार्थियों के कौशल विकास के लिए कुछ नहीं किया। जबकि लक्ष्य 5535 लोगों को ट्रेनिंग देने का था। इस मामले में अखिल भारतीय स्तर पर 75,000 लोगों को ट्रेनिंग देने का था। इनमें से अल्पसंख्यक समुदाय के 29,880 लोगों को लाभ हुआ। बाद के वर्षों का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
इन आंकड़ों से पता चलता है गुजरात सरकार ने उन जिलों में 2006-07 के दौरान सर्व शिक्षा अभियान के दौरान एक भी प्राइमरी और अपर स्कूल नहीं बनवाया, जहां सबसे ज्यादा अल्पसंख्यक आबादी रहती है। इन जिलों में अल्पसंख्यकों की समस्याएं खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम के तहत एक भी काम नहीं हुआ।
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल प्रोगाम के तहत सघन अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों में कोई फंड प्रवाह नहीं हुआ। हालांकि इस मामले में अखिल भारतीय प्रदर्शन भी कोई अच्छा नहीं है। सिर्फ 22.41 फीसदी आबादी को ही इसके तहत कवरेज मिला है। पूर्व की यूपीए सरकार ने केंद्र प्रायोजित स्कीम के तौर पर मल्टी-सेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (एमएसडीपी) शुरू किया था । इन कार्यक्रमों को सघन अल्पसंख्यक आबादी वाले 710 ब्लॉकों, सघन अल्पसंख्यक आबादी वाले 66 शहरों और गांवों के 13 कलस्टरों को लागू करने का फैसला किया गया था।
एक आधिकारिक सूत्र के मुताबिक एनडीए के शासन में भी अल्पसंख्यकों की सामाजिक-आर्थिक बुनियाद मजबूत करने और उनका जीवस्तर सुधारने की बेसिक सुविधाएं से जुड़ी योजनाएं जारी रहीं। अल्पसंख्यकों की शिक्षा (जैसे- स्कूल बिल्डिंग, पोलिटेकनिक, आईटीआई, हॉस्टल), हेल्थ सेंटर, पेयजल और सड़क परियोजनाओं के लिए वित्तीय संसाधन मुहैया कराने का प्रावधान है। इन परियोजनाओं को उनके लिए आय सृजन का साधन भी माना जाता है। इनसे जुड़ी परियोजनाएं को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से राज्यों से जुड़ी जरूरतों के मुताबिक मंजूर किया जाता है।
(इस संबंध में दिशानिर्देश यहां पढ़ें)
वर्ष 2016-17 के आखिर में खत्म हो रही तीन साल की अविध के दौरान गुजरात सरकार ने एमएसडीपी की तहत एक भी परियोजना शुरू नहीं की। इसलिए इन परियोजनाओं में एक भी पैसा नहीं दिया गया। हालांकि इस संबंध में इस अवधि में अखिल भारतीय रिकार्ड भी कोई बहुत प्रभावी नहीं रहा। इस दौरान इन परियोजनाओं के लिए 1076.22 करोड़ रुपये मंजूर किए गए। लेकिन इनके लिए सिर्फ 859.56 करोड़ ही दिए गए।
(सबरंग से साभार। )