सांगोद के रहने वाले जीवन लाल की पांच दिन की बेटी का वज़न कम है, गांव के डॉक्टरों ने कहा जेके लोन ले जाओ। कोटा की रहने वाली ममता को उसके भाई और बहन उसके एक दिन के बेटे के साथ लेकर जेके लोन आए हैं। इटावा गांव के रहवासी ललित मीणा का दस दिन का बच्चा सांस न ले पाने के कारण यहां के एनआइसीयू में भर्ती है। ऐसे न जाने कितने मासूम कोटा के जेके लोन अस्पताल के एनआइसीयू में मशीनों के बीच लेटे हैं और बाहर उनके तीमारदार असमंजस में टकटकी लगाए बैठे हैं!
कोचिंग नगरी कहा जाने वाला कोटा शहर 2018 के आखिर में साल भर में हुई कुल 15 छात्रों की आत्महत्या के चलते सुर्खियों में आया था। अब 2019 के आखिर में एक बार फिर कोटा अखबारों के पहले पन्ने पर है। मौत ही इस बार भी वजह है, लेकिन अबकी नवजात मरे हैं, छात्र नहीं। कोटा के जेके लोन अस्पताल में बीते दिसम्बर हुई बच्चों की मौत से मातम पसरा हुआ है।
अब तक बीते 33 दिनों में कुल 104 बच्चों की मौत हो चुकी है। इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब महज 48 घंटे के भीतर (23 व 24 दिसंबर को) 10 बच्चों ने यहां दम तोड़ दिया, जिसमें कई नवजात शामिल थे। इसके बाद से मौतों का सिलसिला रुका नहीं है।
इन मौतों पर दिए अपने लापरवाह बयान के कारण सूबे के मुख्यमंत्री अशाेक गहलोत निशाने पर आ गए हैं। गहलोत ने आंकड़े गिनवाते हुए 2 जनवरी को कहा था कि यहां शिशुओं की मृत्यु दर लगातार कम हो रही है।
जेके लोन अस्पताल, कोटा में हुई बीमार शिशुओं की मृत्यु पर सरकार संवेदनशील है। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। कोटा के इस अस्पताल में शिशुओं की मृत्यु दर लगातार कम हो रही है। हम आगे इसे और भी कम करने के लिए प्रयास करेंगे। मां और बच्चे स्वस्थ रहें यह हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।
1/— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) January 2, 2020
जेके लोन में बच्चों की मौत भले बीते दिसंबर में सुर्खियों में आयी है लेकिन बीते तीन साल के आंकड़े बताते हैं कि यहां 2995 नवजात बच्चों ने दम तोड़ा है, जिसका मतलब है कि यहां रोज़ लगभग दो नवजातों की मौत हो रही है।
आंकड़ों की सुविधा
आंकड़ों पर शिशु रोग विभाग के एचओडी अमृत लाल बैरवा भी मुख्यमंत्री की भाषा बोलते हुए मौतों में कमी का दावा करते हैं। बीते कुछ साल में यहां बच्चों की मौत के आंकड़े निम्न हैंः
अस्पताल ने माह दर माह भी मौतों के आंकड़े जारी किए हैंः
इस तालिका के हिसाब से देखें तो अकेले दिसंबर में होने वाली मौतों का आंकड़ा 2017 के मुकाबले 2019 में तकरीबन दोगुना दिखता है जबकि 2018 के मुकाबले भी यह काफी ज्यादा है। पिछले पांच साल के दिसंबर के आंकड़ों को मिलाकर देखें तो सबसे ज्यादा मौतें 2019 में ही दिख रही हैं और अब भी जारी हैं। जनवरी में भी मौतों के आंकड़े कुछ कम नहीं हैं।
अस्पताल प्रशासन की रिपोर्ट से शुरू हुई लीपापोती
मामले के मीडिया में आने के बाद हड़बड़ाये अस्पताल प्रशासन के डॉक्टरों और अधिकारियों ने आंकड़ों के ज़रिये पूरे घटनाक्रम पर लीपापोती शुरू कर दी। लापरवाही से साफ़ तौर पर इनकार करते हुए प्रशासन ने कहा कि अस्पताल के सारे उपकरण सुचारु रूप से चल रहे हैं औऱ जांच के लिए कमेटी बना दी गई है।
घटना के दूसरे दिन प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पिछले दो दिनों में जिन 10 बच्चों की मौत हुई वे सभी वेंटिलेटर पर थे। इन बच्चों में शामिल पांच नवजात केवल एक दिन के थे।
अस्पताल प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट में बच्चों की मौत की वजह में हाइपॉक्सिक इस्केमिक इंसेफ्लोपैथी (ऑक्सीजन की कमी), निमोनिया, एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम, दिल की बीमारी और ऐस्पिरेशन सीजर डिसऑर्डर जैसी बीमारियों का हवाला दिया है, लेकिन शुरू से ही प्रशासन एनआइसीयू में किसी भी प्रकार के संक्रमण की बात को नकार रहा है।
NICU में छुपी है अनसुलझी गुत्थी?
अस्पताल की सबसे संवेदनशील जगह मानी जाने वाली एनआइसीयू यूनिट के अंदर बच्चों की मौत के कई राज़ छुपे हैं। जब हम NICU के भीतर दाखिल हुए तो वहां सफाई का काम जोरों पर था क्योंकि पिछले दो तीन दिन से लगातार सरकार और विपक्ष के नेताओं का यहां जमावड़ा लगा हुआ है।
NICU के इंचार्ज मतीन कहते हैं, “हमारे यहां सब सही है, हमारे ऊपर लोड बहुत ज्यादा है, अब प्राइवेट वाले खून चूसते हैं तो हम क्या करें, हमें तो सभी को भर्ती करना पड़ता है।” बच्चों की मौत के बारे में पूछने पर इंचार्ज साहब कहते हैं− “इसके बारे में हमारे सर ही बताएंगे।”
सफाई व्यवस्था को लेकर पूछे गए सवाल पर यूनिट के स्टाफ ने अनजान सी भंगिमा बनाते हुए कहा− “हम कुछ नहीं कहेंगे, हम तो सर को ही रिपोर्ट करते हैं।”
NICU में सेंट्रलाइज्ड ऑक्सीजन की कमी
जनरल वार्ड के बाहर बैठे हरिराम का बच्चा अंदर भर्ती है। वे बताते हैं, “हमें तो यह भी नहीं पता चलता कि बच्चे को ऑक्सीजन मिल रही है या नहीं!” अस्पताल के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि ऑक्सीजन सिस्टम की कमी तो है ही, कभी-कभी ज्यादा बच्चे आ जाते हैं तो ऑक्सीजन सिलेंडर से सभी को ऑक्सीजन देना मुश्किल हो जाता है।
इमरजेंसी की हालत में सिलेंडर खींचकर अंदर ले जाए जाते हैं जिससे समय का नुकसान और इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है, हालांकि लगातार 10 बच्चों की मौत के बाद प्रशासन का कहना है कि उसने सेंट्रलाइज्ड ऑक्सीजन का काम शुरू कर दिया है।
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, NICU में लगे 533 जीवनरक्षक उपकरणों में से 320 उपकरण काम नहीं कर रहे हैं जिनमें वार्मर और वेंटिलेटर जैसे अहम उपकरण भी शामिल हैं।
पूरे दिन खुले रहते हैं एनआइसीयू के दरवाजे
जेके लोन में बच्चों के लिए आमने-सामने दो विंग में एनआइसीयू वार्ड है, जहां 12-12 बेड की व्यवस्था है। लगभग 40-50 बच्चे बेड पर हमेशा रहते हैं। एक बेड पर दो-दो बच्चे व्यवस्था की पोल खोलते नज़र आते हैं।
यहां स्टाफ के लोग बिना मेडिकेटेड जूते पहने अंदर बाहर पूरे दिन घूमते हैं, जिससे इंफेक्शन का खतरा साफ तौर पर बनता है।
सुबह सफाई होने के बाद वार्ड के बाहर एक तीमारदार दरवाजे पर बैठे गार्ड से लड़ रहे थे क्योंकि वो उन्हें अंदर जाने से मना कर रहा था। अस्पताल प्रशासन भी ओवर क्राउडिंग पर चिंता जता रहा है और चिंतित परिजनों की अंदर जाने की जिद अपनी जगह है।
लोगों में जानकारी का अभाव औऱ महंगा प्राइवेट का इलाज
हाड़ोती संभाग का मुख्यालय कोटा है और जेके लोन यहां का बड़ा सरकारी अस्पताल है। ऐसे में यहां हर दिन कोटा के आसपास के गांवों और बूंदी, बारां, झालावाड़ व मध्यप्रदेश से भी लोग आते हैं।
लोगों से बात करने पर कमोबेश सभी का यही कहना था कि गांव के डाक साहब ने कहा बच्चे को जेके लोन लेकर जाओ। ऐसे में साफ़ समझ आता है कि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का कितना बुरा हाल है। ज्यादातर लोग प्राइवेट संस्थानों में इलाज नहीं करवा पाते तो सरकारी अस्पताल में आने को मजबूर होते हैं।
गांव से अस्पताल लाने में देरी, कुपोषण, रास्ते में इंफेक्शन का खतरा, जैसे कारणों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। शिशु रोग विभाग के एचओडी अमृत लाल बैरवा की मानें तो मरीज़ों के अलावा अस्पताल पर सरकार की कई योजनाओं का भार अलग से रहता है।
इंफेक्शन मॉनिटरिंग पर अस्पताल प्रशासन शक के घेरे में
इंफेक्शन मॉनिटरिंग के सवाल पर बैरवा कहते हैं, “एनआईसीयू में इंफेक्शन की जांच माइक्रोबॉयोलजी डिपार्टमेंट करता है जो हर महीने की 13 तारीख को सैम्पल लेता है, अभी तक उनकी रिपोर्ट में हमें किसी भी तरह का इंफेक्शन वार्ड में नहीं मिला है।”
बैरवा बताते हैं कि इंफेक्शन की वजह वार्ड के आगे जमा लोगों की भीड़ है। उनके मुताबिक सेंट्रलाइज्ड ऑक्सीजन का काम शुरू करवा दिया गया है।
इंफेक्शन के सवालों को लेकर हम माइक्रोबॉयोलजी लैब के अधीक्षक डॉ. नवीन सक्सेना के पास पहुंचे। शुरुआत में ही नवीन सक्सेना ने बच्चों की मौत मामले में अलग से कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। लैब की जांच प्रक्रिया के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, “हम हर महीने हर वार्ड से एयर और सर्फेस से लेकर हर तरह के डेटा का सेम्पल लेते हैं, फिर जांच कर के संबंधित विभाग को रिपोर्ट भेजते हैं।”
जब हमने एनआइसीयू की पिछले महीने की डेटा रिपोर्ट देखने की बात कही तो उन्होंने रिपोर्ट को ऑफिशियल बताकर दिखाने से मना कर दिया।
इस बीच गहलोत ने मौतों पर सवाल उठने के बाद इसे जाने अनजाने में कुछ लोगों की “शरारत” करार दिया है और मीडिया पर भी इलजाम लगाया है।
कोटा को लेकर knowingly, unknowingly, innocently, कुछ लोग mischievously शरारत कर रहे हैं। जिस प्रकार मीडिया में चलाया गया वह ठीक नहीं है। आज मैंने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रीजी से बात की है। उनको मैंने कहा है आप खुद एक बार पधारो,आप खुद मंत्री हैं,आप आते ही समझ जाएंगे स्थिति क्या है pic.twitter.com/BNnErcyu7t
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) January 2, 2020
अवधेश पारीक जयपुर के फ्रीलांस रिपोर्टर हैं। हफ्ते भर पहले उन्होंने कोटा के जेके लोन अस्पताल का दौरा किया है और मामले पर निगाह रखे हुए हैं। सभी तस्वीरें उन्हीं की खींची हुई हैं।