गोरखपुर हत्याकांड के दो दिलचस्प आयाम हैं। पहला, सरकार ने निष्कर्ष निकाल दिया है कि कोई भी मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है लेकिन सारे सबूत इसी बात के निकल कर आ रहे हैं कि 11 अगस्त की रात हुई मौतें ऑक्सीजन की कमी के चलते ही हैं। दूसरी बात यह है कि कार्रवाई के नाम पर सरकार ने डॉ. कफील को नोडल अफसर के पद से मुक्त कर दिया है, लेकिन पत्रकारों की पड़ताल में जितने भी सबूत निकल कर आ रहे हैं वे सब इस ओर इशारा कर रहे हैं कि मौतों का इल्ज़ाम पूरे अस्पताल प्रशासन के सिर पर बराबर है लेकिन कुछ लोग प्रथम दृष्टया दोषी हैं। जो प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए हैं, उनमें डॉ. कफील नहीं हैं। जो हैं, उनके नाम मीडिया में अब तक प्रमुखता से नहीं लिए गए हैं। आइए, हम आपको भ्रष्टाचार की गोरखगंगा का एक दृश्य सरकारी जांच रिपोर्ट के आईने से दिखाते हैं!
मीडियाविजिल के पास आए कुछ काग़ज़ात इस बात की ताकीद करते हैं कि बच्चों की हत्याओं का दोष समूचे प्रशासन समेत सरकार के ऊंचे ओहदों पर बैठे जिम्मेदार लोगों के सिर है। क्यों न इनके ऊपर culpable homicide यानी सदोष मानवहत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए?
साक्ष्य 1
यह पत्र 11 अगस्त यानी 34 बच्चों और 18 वयस्कों की मौत की तारीख को शाम 4 बजकर 30 मिनट पर प्रधानाचार्य, बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नाम मुख्य चिकित्सा अधीक्षक द्वारा भेजा गया था। इस पत्र में लिखा है:
आपको सूचित करना है कि चिकित्सालय में लगा लिक्विड ऑक्सीजन गैस पूर्ण रूप से समाप्त हो गया है तथा ऑक्सीजन गैस की आपूर्ति करने वाली फर्म द्वारा मांग पत्र के अनुसार गैस आपूर्ति नहीं कर (की जा) रही है। उक्त के संबंध में आज दिनांक 11/08/17 को वार्ड संख्या 12 के सेमीनार कक्ष में विभागाध्यक्ष बाल रोग/ डॉ. बीएन शुक्ला, वरिष्ठ परामर्शदाता, बाल रोग/ उपाधीक्षक आदि की बैठक संपन्न हुई जिसमें सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि वस्तुस्थिति से प्रधानाचार्य महोदय को अवगत कराया जाए तथा उनके द्वारा वैकल्पिक रूप से मेडिकल ऑक्सीजन की व्यवस्था कराये तथा साथ ही साथ मंडलायुक्त महोदय एवं जिला प्रशासन से भी वार्ताकर ऑक्सीजन गैस की उपलब्धता सुनिश्चित कराये।
पत्र के दूसरे और आखिरी पैरा में प्रधानाचार्य से इस निर्णय के बाबत अनुरोध किया गया है कि मेडिकल ऑक्सीजन गैस की आपूर्ति शीघ्रातिशीघ्र कराने की कृपा करें जिससे चिकित्सालय में भर्ती गंभीर मरीज़ों की जान बचाई जा सके।
यह चिट्ठी साढ़े चार बजे शाम को रिसीव की गई। मौतें रात में हुईं। यानी सात से आठ घंटे का वक्त था जब इंतजामात किए जा सकते थे लेकिन नहीं किए। इसका सीधा दोष प्रधानाचार्य, मंडलायुक्त और जिला प्रशासन के सिर पर है क्योंकि उन्हें दिन में हुई बैठक के सर्वसम्मत निर्णय से अनगत कराया जा चुका था, जैसा कि सीएमओ लिखते हैं।
साक्ष्य 2
जिलाधिकारी द्वारा घटना की जांच की रिपोर्ट 12/08/17 को सरकार को सौंपी गई। इस रिपोर्ट पर निम्न के हस्ताक्षर हैं:
डॉ. रवीन्द्र कुमार, मुख्य चिकित्साधिकारी, गोरखपुर
डॉ. पुष्कर आनंद, अपर निदेशक, चिकित्सा स्वास्थ्य परिवार कल्याण, गोरखपुर मंडल
विवेक कुमार श्रीवास्तव, नगर मजिस्ट्रेट, गोरखपुर
रजनीश चन्द्र, अपर जिला मजिस्ट्रेट (नगर), गोरखपुर
संजय कुमार सिंह, अपर आयुक्त प्रशासन, गोरखपुर मंडल, गोरखपुर
आइए, बिंदुवार देखते हैं कि इस रिपोर्ट में जांच समिति ने क्या निष्कर्ष दिए हैं।
- ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता फर्म मे. पुष्पा सेल प्राइवेट लिमिटेड लखनऊ द्वारा लिक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित की गई जिसके लिए वह जिम्मेदार है जो इनके जीवनरक्षक काय को देखते हुए नहीं किया जाना चाहिए था।
- डॉ. कफील खान (नोडल 100 बेड ए.ई.एस. वार्ड) ने बताया कि वार्ड की एसी खराब जाने के बारे में डॉ. सतीश कुमार को लिखित रूप से अवगत कराया था परन्तु समय से रिपेयर नहीं किया गया। डॉ. सतीश, एचओडी एनेस्थेसिया दिनांक 11.08.17 से बिना लिखित अनुमति के बीआरडी मेडिकल कॉलेज से अनुपस्थित हैं। डॉ. सतीश लिक्विड ऑक्सीजन आपूर्ति को निर्बाध बनाए रखने के भी पभारी हैं। अत: डॉ. सतीश अपने दायित्वों का सम्यक् निर्वहन न करने के लिए प्रथम दृष्टया दोषी हैं।
- ऑक्सीजन सिलेंडर का स्टॉक बुक एवं लॉग बुक मेन्टेन करने के लिए प्रभारी डॉ. सतीश एवं श्री गजानन जायसवाल, चीफ फार्मेसिस्ट, मेडिकल कॉलेज हैं। इनके द्वारा अपने रिकार्ड को भलीभांति मेन्टेन नहीं किया या और स्टॉक बुक में ओवरराइटिंग की गई है। लॉग बुक के प्रभारी डॉ. सतीश द्वारा कभी लॉग बुक को न तो अवलोकित किया गया और न ही उस पर हस्ताक्षर किया गया है, जो यह स्पष्ट करता है कि न तो उनके द्वारा और न ही प्राचार्य द्वारा इस विषय को गंभीरता से लिया गया।
- डॉ. राजीव मिश्रा, प्राचार्य, बीआरडी मेडिकल कॉलेज दिनांक 10.08.17 के प्रात: मुख्यालय से बाहर थे तथा डॉ. सतीश कुमार भी दिनांक 11.08.17 को बिना अनुमति के मुंबई चले गए थे। इस प्रकार मेडिकल कॉलेज छोड़ने से पूर्व यदि इन दोनों अधिकारियों द्वारा उक्त समस्या का समाधान समय से कर दिया गया होता तो ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न नहीं होतीं जबकि उक्त दोनों अधिकारियों को फर्म द्वारा पहले से ही आपूर्ति बाधित करने के संबंध में जानकारी रही होगी।
- डॉ. राजीव मिश्रा, प्राचार्य, बीआरडी मेडिकल कॉलेज द्वारा बाल रोग विभाग की संवेदनशीलता को देखते हुए इस वार्ड में दी जाने वाली सुविधाओं, रखरखाव एवं भुगतान आदि पर ध्यान नहीं दिया जिससे शिथिल नियंत्रण प्रथम दृष्टया परिलक्षित होता है।
- उक्त दोनों अधिकारियों के मुख्यालय से बाहर होने के बाद सीएमएस डॉ. रमाशंकर शुक्ला, कार्यवाहक प्राचार्य डॉ. रामकुमार, नोडल 100 बेड डॉ. कफील खान, एचओडी बाल रोग डॉ. महिमा मित्तल के मध्य आपस में समन्वय की कमी पाई गई।
- लिक्विड ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता फर्म द्वारा बार-बार भुगतान करने के आग्रह करने के बावजूद तथा बजट दिनांक 05.08.2017 को उपलब्ध होने के उपरान्त भी अवशेष बिलों का समय से भुगतान न करने के लिए, प्राचार्य को समय से सूचित न करने व पत्रावली समय से प्रस्तुत न करने के लिए संबंधित उदय प्रताप शर्मा, क. सहायक, लेखा अनुभाग तथा श्री संजय कुमार त्रिपाठी, लेखा लिपिक, लेखा अनुभाग एवं श्री सुधीर कुमार पांडेय, सहायक लेखाकार, नेहरू चिकित्सालय भी प्रथम दृष्टया दोषी हैं।
- ऑक्सीजन सिलेंडर का लॉग बुक दिनांक 10.08.17 को बनाए जाने एवं स्टॉक बुक में ओवर राइटिंग करने तथा लिक्विड ऑक्सीजन आपूर्तिकता फर्म के बिलों का क्रमवार या तिथिवार भुगतान न होने के पीछे वित्तीय अनियमितता होना प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है जिसके लिए ऑडिट कराया जाना एवं प्रकरण की शासन के चिकित्सा शिक्षा विभोगग द्वारा उच्च स्तरीय जांच कराया जाना उचित होगा।
उपर्युक्त आठों निष्कर्ष बिंदु सरकारी जांच रिपोर्ट के हैं जिसे पढ़ने से यह समझ में आता है कि जिन्हें मौतों का कारण ”प्रथम दृष्टया” माना गया है, वे सभी कार्रवाई से बचे हुए हैं (सिवाय प्राचार्य के)। पूरे मामले में सबसे बड़ा दोषी ऑक्सीजन सिलेंडर का स्टॉक बुक एवं लॉग बुक मेन्टेन करने के प्रभारी डॉ. सतीश एवं श्री गजानन जायसवाल, चीफ फार्मेसिस्ट, मेडिकल कॉलेज हैं जिनमें से प्रमुख डॉ. सतीश कुमार बिना बताए घटना के दिन मुंबई चले गए थे।
पूरी कहानी कुछ यूं है कि मामला बुनियादी रूप से ”वित्तीय अनियमितता” यानी भ्रष्टाचार का है जिसमें लेखा विभाग से लेकर आपूर्ति विभोग, फार्मासिस्ट, चिकित्सक और प्राचार्य सब के सब बराबर के भागी और लिप्त हैं। यह व्यवस्थागत भ्रष्टाचार का क्लासिकल उदाहरण है जहां हर व्यक्ति अपनी-अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभा रहा और कुल मिलाकर नतीजा आम लोगों की मौत के रूप में सामने आता है।
इन साक्ष्यों के बाद शायद गोरखपुर कांड पर कहने को और कुछ नहीं बच रहा। ये सारे काग़ज़ात खुद सरकार बहादुर के हैं, भले ही सरकार इतनी बहादुर न हो कि वह इस पर काई कार्रवाई करे। सबसे बुनियादी बात यह है कि जब सरकार ने पहले ही मान लिया कि मौतें ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई थीं, तो किसी भी जांच रिपोर्ट या साक्ष्य का कोई महत्व नहीं रह जाता।
इसके बावजूद एक अंतिम बात रह जाती है। वो यह, कि सच छुपाने की चाहे कितनी कोशिश की जाए, सच छुपता नहीं। सामने आ जाता है। इस त्रासद घटना को लेकर भले सबका अपना-अपना सच हो, लेकिन विडंबना है कि सरकार का अपना सच ही उसे नंगा किए दे रहा है। इसे सरकार का इकबाल खत्म होना कहते हैं।
ऐसी सरकार से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांगने का भी कोई मतलब नहीं है क्योंकि इसके आधार में नैतिकता की छटांक भर नहीं है।