वायरल हुए तेरह साल पुराने ऑडियो पर बस्‍तर के पत्रकारों में सनसनी, HT ने खबर हटायी



बुधवार को एक खबर बहुत तेज़ी से सोशल मीडिया पर फैली जिसमें बस्‍तर से एक ऑडियो क्लिप का जि़क्र था। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत पत्रकारों ने इस ऑडियो क्लिप के बारे में बताया कि यह छत्‍तीसगढ़ पुलिस के वायरलेस की रिकॉर्डिंग है जिसमें पुलिस बस्‍तर में कवर करने गए पत्रकारों को जान से मारने की बात कह रही है। चौबीस घंटा भी नहीं बीता है कि जिन लोगों ने उक्‍त ऑडियो क्लि के बारे में लिखा था, न सिर्फ उनकी पोस्‍ट गायब है बल्कि गुरुवार की सुबह प्रमुखता से इसे अपने यहां छापने वाले अखबार हिंदुस्‍तान टाइम्‍स के पेज से भी उक्‍त ख़बर गायब है।

अब यह बात सामने आ रही है कि उक्‍त ऑडियो क्लिप 2004 का है। इस बारे में कुछ पत्रकारों ने अपनी फेसबुक दीवार पर लिखा भी है। इस बारे में एक और कहानी मीडिया में तैर रही है जिसके मुताबिक बीजापुर के संवाददाता मुकेश चंद्राकर के साथ बीजापुर के पत्रकार गणेश मिश्र, पी. रंजन दास, रितेश यादव और यूकेश चंद्राकर 27 जुलाई को तेलंगाना की सीमा से लगे पुजारी कांकेर स्थित पांच पांडव पर्वत पर स्‍टोरी करने निकले थे लेकिन बारिश के कारण यह दल 27 के बजाय 28 जुलाई को पुजारी कांकेर पहुंचा और 29 जुलाई को बीजापुर लौट आया। इसी बीच 30 जुलाई को प9कारों को सूत्रों से खबर मिली कि दल रवाना होने के बाद सुरक्षाबलों द्वारा वायरलेस सेट पर एक संदेश पास किया गया जिसमें सभी पत्रकारों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए थे।

दि वॉयस पर मुकेश चंद्राकर और गणेश मिश्र की लिखी एक खबर कहती है, ”एक सूत्र द्वारा 41 सेकंड का एक ऐसा धवनि संदेश उपलब्‍ध कराया गया जिसे सुनकर रूह कांप जाती है। उपलब्‍ध कराए गए एक टेप में सुरक्षाबल का एक अधिकारी अपने जवान को वायरलेस सेट पर आदेश दे रहा है कि अगर उधर कोई भी पत्रकार जाता है तो उसे सीधे मरवा देगा।”

ख़बर कहती है, ”इस अपुष्‍ट ऑडियो के सामने आने के बाद बस्‍तर के पत्रकार सकते में हैं। बीजापुर प्रेस क्‍लब के अध्‍यक्ष गणेश मिश्र ने राज्‍य सरकार से पूरे मामले की जांच करवाने का आग्रह किया है। दि वॉयस ने हालांकि ऐसे किसी टेप की पुष्टि नहीं की है।

बस्‍तर के मशहूर पत्रकार कमल शुक्‍ला लिखते हैं:

इस बारे में छत्‍तीसगढ़ के वरिष्‍ठ पत्रकार रुचिर गर्ग ने अपने स्‍तंभ त्‍वरित टिप्‍पणी में लिखा है कि यह वायरलेस संदेश 2004 का ही है जिसे कथित रूप से नक्‍सलियों ने इंटरसेप्‍ट कर के मीडिया को उपलब्‍ध कराया था। यह बीजापुर के तत्‍कालीन एसपी डीएल मनहर का टेप है जिसके बारे में वे अब भी कहते हैं कि यह फर्जी था और है। रुचिर गर्ग लिखते हैं, ”आज बहुत से पत्रकार इसे ताज़ा ऑडियो की तरह प्रस्‍तुत कर रहे हैं।”

रुचिर गर्ग लिखते हैं कि सवाल यह नहीं है कि टेप नया है या पुराना, असल सवाल बस्‍तर के पत्रकारों की सुरक्षा का है। यह बात बिलकुल ठीक जान पड़ती है, लेकिन जिस तरीके से बिना जांच पड़ताल के इस नए ऑडियो के बारे में सूचना को वायरल किया गया वह इस बात को दिखाता है कि संघर्ष के क्षेत्रों में सूचनाओं की सत्‍यता का पता लगाना कितना मुश्किल हो गया है।

बहरहाल, छत्‍तीसगढ़ के कुछ पत्रकार इस पुराने ऑडियो के बहाने अपनी सुरक्षा को लेकर एक बार फिर लामबंद हो रहे हैं। गौरतलब है कि राज्‍य के पत्रकारों ने लंबे संघर्ष के बाद पत्रकार सुरक्षा कानून का एक मसविदा राज्‍य सरकार को डेढ़ साल पहले सौंपा था। उस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जबकि महाराष्‍ट्र में ऐसा ही एक कानून अस्तित्‍व में आ चुका है।