कॉरपोरेट मीडिया इस ख़बर की गंभीरता से आपको कभी रूबरू नहीं कराएगा। मीडिया विजिल पर ध्यान से पढ़िए यह दिल दहला देने वाली ख़बर कि भारत एक पूँजीपति से हार गया है। जीतने वाले का नाम है मुकेश अंबानी जिसके साथ खड़े रहने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सगर्व घोषणा करते हैं। गिरीश मालवीय की क़लम से पढ़िए कि ‘याराना पूँजीवाद’ पर फ़िदा सरकारें कैसे देश की लूट में मददगार होती हैं -संपादक
अंतराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल में रिलायंस द्वारा डाली गयी 30 हजार करोड़ की डकैती का मुकदमा, ‘हम’ हार गए हैं। हम यानी भारत के लोग। दरअसल वहाँ पर मोदी सरकार की नही भारत की जनता की हार हुई है और एक पूंजीपति की जीत हुई है और वो भी एक ऐसे केस में जो साफ साफ चोरी और सीनाजोरी का मामला था।
सच कहें तो चोरी का नही डकैती का मामला था……..
आंध्र के कृष्णा-गोदावरी बेसिन में ओएनजीसी के गैस भंडार में सेंध लगाकर रिलायंस द्वारा 30 हजार करोड़ रू की प्राकृतिक गैस चुराने के मामले मे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पैनल का फ़ैसला आ गया है।
इस पैनल ने जो रिलायंस ओर मोदी सरकार की ‘सहमति से चुना’ गया था, उसने ओएनजीसी की शिकायत को रद्द कर रिलायंस पर लगाया गया 10 हजार करोड़ का जुर्माना रद्द कर दिया जो 2016 में जस्टिस ए.पी.शाह आयोग द्वारा रिलायंस को दंडित करने की सिफ़ारिश के चलते सरकार को लगाना पड़ा था।
यही नहीं, ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि अब सरकार को ही हर्ज़ाने के तौर पर लगभग 50 करोड़ रू रिलायंस को देने होंगे।
अब यह पूरा मामला शुरू से समझिए-
आंध्र प्रदेश की दो प्रमुख नदियों कृष्णा और गोदावरी के डेल्टा क्षेत्र में स्थित कृष्णा-गोदावरी (केजी) बेसिन कच्चे तेल और गैस की खान माना जाता है।
1997-98 में सरकार न्यू एक्सप्लोरेशन और लाइसेंस पॉलिसी (नेल्प) लेकर आई। इस पॉलिसी का मुख्य मकसद तेल खदान क्षेत्र में लीज के आधार पर सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों को एक समान अवसर देना था। इस पॉलिसी से रिलायंस का प्रवेश तेल और गैस के अथाह भंडार वाले इस क्षेत्र में हो गया। रिलायंस ने उन तेल क्षेत्रों में अपना अधिकार बनाना शुरू किया, जहाँ सरकार का अपना ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन ( ONGC) पहले से खुदाई कर रही था।
धीरे धीरे रिलायंस ने कहना शुरू किया कि उसे इस क्षेत्र में करोड़ों घनमीटर प्रतिदिन उत्पादन करने वाले कुएँ मिल गए हैं। इन खबरों से रिलायंस के शेयर आसमान पर जा पुहंचे। 2008 में रिलायंस ने तेल और अप्रैल 2009 में गैस का उत्पादन शुरू किया। लेकिन हकीकत यह थी कि रिलायंस को अपनी घोषणाओं के विपरीत बेहद कम तेल और गैस इन क्षेत्रों से प्राप्त हो रहा था जबकि पास के क्षेत्र में स्थित ONGC अपने कुओं से भरपूर मात्रा में तेल गैस का उत्पादन कर रहा था।
2011 में केजी बेसिन में रिलायंस इंडस्ट्रीज की परियोजना से गैस उत्पादन में गिरावट आई और सरकार ने रिलायंस को गैर-प्राथमिक क्षेत्रों को गैस की आपूर्ति बंद करने का आदेश दिया। लेकिन रिलायंस ने इस्पात उत्पादन करने वाले समूहों को साथ लेकर सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया। पेट्रोलियम मंत्रालय और रिलायंस में यह विवाद गहराता चला गया। पेट्रोलियम मंत्रालय का कहना था कि रिलायंस को कैग द्वारा ऑडिट कराना होगा लेकिन रिलायंस इसके लिए तैयार नही हुआ। उसने इस क्षेत्र में अपने वादे के मुताबिक अरबों करोड़ का निवेश करने से इनकार कर दिया।
रिलायंस कंपनी ने यह शर्त भी रखी कि लेखा परीक्षा उसके परिसर में होनी चाहिए और इस रिपोर्ट को पीएससी के तहत पेट्रोलियम मंत्रालय को सौंपी जाए, संसद को नहीं। UPA सरकार में भी मुकेश अम्बानी की रिलायंस इतनी पॉवरफुल थी कि कहा जाता था कि मुकेश अम्बानी की मर्जी से पेट्रोलियम मंत्री हटाये और बहाल किये जाते थे।
इस बीच 2013 में रिलायंस और ओएनजीसी के बीच गैस चोरी को लेकर विवाद की थोड़ी–थोड़ी भनक मिलना शुरू हो गयी थी।
अब इस लेख का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा आपके सामने आना वाला है और वो है इस केस की टाइमिंग !
आपको याद होगा कि मई 2014 में भारत मे लोकसभा के चुनाव हुए थे। 16 मई को यह फैसला आने वाला था कि सत्ता किसके हाथ लगने वाली है। उसके ठीक एक दिन पहले ओएनजीसी ने 15 मई, 2014 को दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया जिसमें यह आरोप लगाया कि रिलायंस इंडस्ट्रीज ने उसके गैस ब्लॉक से हजारों करोड़ रुपये कीमत की गैस चुराई है।
ओएनजीसी का कहना था कि रिलायंस ने जानबूझकर दोनों ब्लॉकों की सीमा के बिलकुल करीब से गैस निकाली, जिसके चलते ओएनजीसी के ब्लॉक की गैस आरआईएल के ब्लॉक में आ गई।
ओएनजीसी के चेयरमैन डी.के.सर्राफ ने 20 मई 2014 को अपने बयान में कहा कि ओएनजीसी ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के खिलाफ जो मुकदमा दायर किया है, उसका मकसद अपने व्यावसायिक हितों की सुरक्षा करना है क्योंकि रिलायंस की चोरी के चलते उसे लगभग 30,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
लेकिन चिड़िया खेत चुग चुकी थी और रिलायंस के सैंया अब कोतवाल बन चुके थे!
23 मई, 2014 को एक बयान में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कहा कि ‘हम के.जी. बेसिन से कथित तौर पर गैस की ‘चोरी’ के दावे का खण्डन करते हैं। सम्भवत: यह इस वजह से हुआ कि ओएनजीसी के ही कुछ तत्त्वों ने नये चेयरमैन और प्रबन्ध निदेशक सर्राफ को गुमराह किया जिससे वे इन ब्लॉकों का विकास न कर पाने की अपनी विफलता को छुपा सकें।’
लेकिन एक बात आप याद रखिए। 15 मई 2014 को ONGC ने जो केस दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल किया था वह केस एक ऐतिहासिक केस था। ओएनजीसी ने रिलायंस पर तो चोरी का आरोप लगाया ही था, उसने सरकार को भी आड़े हाथों लिया था। ओएनजीसी का कहना था कि डीजीएच और पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा निगरानी नहीं किये जाने के कारण ही रिलायंस ने यह चोरी की। यानी कि तीसरा पक्ष मतलब ONGC कह रहा था कि पहले पक्ष यानी रिलायंस ओर दूसरे पक्ष यानी सरकार ने मिलकर इस डकैती को अंजाम दिया !
लेकिन पूँजीपतियों के साथ खुल कर खड़े होने वाले मोदी जी की सरकार ने ONGC को 9 दिन के अंदर ही उसकी औक़ात याद दिला दी। सरकार ने 23 मई को रिलायंस, ओएनजीसी और पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारियों की एक बैठक करवायी और सबने मिलकर इस मामले के अध्ययन के लिए एक समिति बनाने का निर्णय लिया जिसमे रिलायंस ओर सरकारी प्रतिनिधि शामिल थे।
समिति ने मामले की जाँच का ठेका दुनिया की जानीमानी सलाहकार कम्पनी डिगॉलियर एण्ड मैकनॉटन (डीएण्डएम) को दिया।
D & M ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ओएनजीसी के ब्लॉक से आरआईएल के ब्लॉक में 11,000 करोड़ रुपये की गैस गई है। दूसरे, उसने यह सलाह भी दे डाली कि इन ब्लॉकों में बची गैस को रिलायंस से ही निकलवा ली जाए जो यह काम करने में माहिर है।
इस रिपोर्ट पर निर्णय देने के लिए मोदी सरकार ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए.पी. शाह समिति का गठन किया। समिति का काम इस मामले में हुई भूलचूक देखना और ओएनजीसी के मुआवजे के बारे में सिफरिश करना था।
शाह समिति ने इस मामले स्पष्ट रूप से कहा कि मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज को, ओएनजीसी के क्षेत्र से गैस अपने ब्लाक में बह या खिसक कर आई गैस के दोहन के लिए सरकार को 1.55 अरब डॉलर भुगतान करना चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस अनुचित तरीके से फायदे की स्थिति में रही है। सरकार ने सिफ़ारिश के आधार पर जुर्माना लगा दिया।
लेकिन अंबानी वो हैं जो भारत के प्रधानमंत्री की पीठ पर हाथ रखकर फोटो खिंचवा सकते हैं। और प्रधानमंत्री वो हैं जो अंबानी के साथ खड़े दिखना अपना धर्म समझते हैं। दोनों एक दूसरे की शक्ति हैं। इसी का नतीजा था कि अंबानी ने यह फ़ैसला मानने से इंकार कर दिया। उसने अंतरराष्ट्रीय पंचाट में अपील का फ़ैसला किया जिसे मोदी सरकार ने स्वीकार कर लिया। इसी पंचाट ने फैसला दिया है कि रिलायंस की कोई ग़लती नहीं। उल्टा सरकार रिलायंस को जुर्माना दे।
यही हाल रहा तो देश की जनता सदा के लिए ‘मोदी मित्र अंबानी’ से महंगी गैस खरीदने के दुश्चक्र में फँस जाएगी।
यह लेख लिखते हुए बार-बार मोदी जी के कहे अमृतवचन कान में गूँज रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कथित रूप से हजारो करोड़ की विकास व निवेश परियोजनाओं की नींव रखते हुए उन्होंने कहा था कि ‘अगर नेक नीयत हो तो उद्योगपतियों के साथ खड़े होने में दाग नहीं लगता’
काश कोई उनसे कह पाता- दाग तो छोड़िए,आपकी ‘नेक नीयती’ सरे बाजार बिना कपड़ों के नज़र आ रही है मोदी जी!
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।