अमन कुमार / टीकमगढ़
आत्महत्या और पलायन मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ की पहचान बन चुके हैं। स्थिति सुधारने में शासन-प्रशासन नाकाम रहा है। चुनावों के मौसम में वादे और दावे यहां भी थोक के भाव किये जा रहे हैं, जिनका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है। रोटी, कपड़े और मकान की जद्दोजहद में उलझे मतदाता के लिए राफेल और व्यापमं के कोई मायने नहीं हैं। उसे ज़मीनी स्तर पर काम चाहिए।
टीकमगढ़ सदर सीट पर मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। भाजपा ने अपने पूर्व विधायक के.के. श्रीवास्तव का टिकट काटकर राकेश गिरी गोस्वामी को उम्मीदवार बनाया है। वहीं कांग्रेस ने यादवेंद्र सिंह को। वर्तमान विधायक केके श्रीवास्तव पार्टी पर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए इसके लिए सीधे पार्टी आलाकमान को दोषी ठहरा रहे हैं।
टीकमगढ़ के आम मतदाता का कहना है कि टिकट चाहे जिसको मिले, आखिर हैं तो सब वही। पान की गुमटी पर बैठे आरिफ़ कहते हैं- ‘विधायक रहते हुए श्रीवास्तव जी ने कोई काम नहीं किया और न ही राकेश गिरी ने पालिका अध्यक्ष रहते कुछ किया। बल्कि पालिका की दुकानों को लीज पर लगाने या सफाई कर्मियों के ठेके और पालिका के तमाम कामों में उनका कमीशन पहले जाता है, काम बाद में होता है।’ आरिफ़ की इस बात का समर्थन राकेश जैन भी करते हैं। वहीं दिनेश चौबे का कहना है- ‘परिवारवाद को कोसनी वाली भाजपा को राकेश गिरी के परिवार का परिवारवाद नहीं दिखता। उनकी पत्नी पालिका अध्यक्ष हैं, बहन कामिनी गिरी जिला पंचायत अध्यक्ष, माँ जयकुंवर गिरि मंडी समिति की सदस्य और भाई महेश सहकारी बैंक के पूर्व डायरेक्टर हैं।’
राकेश गिरी को केके श्रीवास्तव की नाराजगी से कोई नुकसान तो नहीं? टिकट कटने के मसले पर श्रीवास्तव से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हुए।
वहीं कांग्रेस प्रत्याशी यादवेंद्र सिंह को साफ-सुथरी छवि का माना जाता है, जिनकी समाज में अच्छी पकड़ समझी जाती है। जातीय समीकरण के हिसाब से टीकमगढ़ सीट पर जैन, यादव और मुस्लिम की आबादी सबसे ज्यादा है। भाजपा और कांग्रेस ही केवल दो मुख्य पार्टियां है। ऐसे में मुस्लिम वोट निर्णायक होगा।
जतारा
वर्तमान में कांग्रेस के दिनेश अहिरवार यहां से विधायक हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस ने यह सीट गठबंधन के लिए छोड़कर अपने विधायक का टिकट काट दिया है। इससे भाजपा के यहीं से पूर्व विधायक और मंत्री हरिशंकर खटीक की जीत आसान हो गई है।
सतगुंवा के रमेश खटीक बताते हैं- ‘हरिशंकर हमारी बिरादरी के हैं, इससे हमारा वोट तो हरिशंकर को ही जाएगा।’ सतगुंवा के ही चरन यादव कहते हैं- ‘वे हमारी बिरादरी के तो नहीं हैं, लेकिन उन्होंने काम अपने कार्यकाल में ठीक-ठाक किया है, तो वोट उन्हीं को देंगे।’ यहीं वे एक बात और जोड़ते हैं कि पिछ्ली बार बदलाव के नाम पर कांग्रेस के दिनेश अहिरवार को जिताया था, उन्होंने कुछ काम नहीं किया। बैरवार के जग्गन कुशवाहा ‘कोऊ नृप होए, हमें का हानि’ वाले अंदाज में कहते हैं कि चाहे दिनेश जीतें या हरिशंकर, हमें रोटी तो दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहर देते हैं।
जतारा सीट में जातीय समीकरण के हिसाब से देखा जाए, तो कुशवाहा, यादव और मुसलमान सबसे ज्यादा हैं। उसके बाद यहां जैन अच्छी खासी संख्या में हैं। कपड़े की छोटी-सी दुकान चलाने वाले पप्पू जैन कहते हैं कि वोट तो कांग्रेस को देने का सोच रहे थे, लेकिन क्या करें कांग्रेस ने किसी को टिकट ही नहीं दिया।
कांग्रेस के दिनेश का टिकट कटने का सबसे बड़ा कारण पार्टी से बगावत करना रहा। 2013 का चुनाव जीतने के एक साल के भीतर बाद वे भाजपा में आ गए थे जिसका खामियाजा टिकट काटकर चुकाना पड़ा। फिलहाल दिनेश निर्दलीय उम्मीदवार हैं।
निवाड़ी
निवाड़ी टीकमगढ़ की हाइप्रोफाइल सीट है। इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के दिग्विजय सिंह नर्मदा यात्रा के बाद अपनी एकता यात्रा की शुरुआत ओरछा के रामराजा मंदिर से करते हैं। टीकमगढ़ में मुकाबला त्रिकोणीय है। भाजपा और कांग्रेस के अलावा यहां सपा मजबूत है। 2008 के चुनाव में यहां से सपा की मीरा दीपक यादव विधायक चुनी गई थीं, जो मध्य प्रदेश में सपा की इकलौती जीती हुई उम्मीदवार हैं। सपा ने इस बार भी मीरा यादव पर दांव लगाया है। मीरा यादव के पति दीपनारायाण यादव उत्तर प्रदेश के झांसी जिले की गरौठा विधानसभा से सपा के विधायक चुने जाते रहे हैं। दीपनारायण अपने धनबल और बाहुबल के लिए विख्यात रहे हैं, जिसका प्रदर्शन उनकी पत्नी के निवाड़ी से नामांकन के दिन दिखा, जब वे पर्चा दाखिल करने के लिए लगभग 500 गाड़ियों का काफिला लेकर गईं।
भाजपा ने यहां के वर्तमान विधायक अनिल जैन को ही अपना उम्मीदवार बनाया है। अनिल जैन की सबसे बड़ी उपलब्धि निवाड़ी को जिला बनवाना रहा है, जिसकी मांग पिछले तीन दशकों से उठती रही थी। इसके अलावा जैन की कोई खास उपलब्धि नहीं है, जिसकी बदौलत वे अपनी और पार्टी की नैया पार लगा सकें। कांग्रेस ने कैप्टन सुरेन्द्र सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है, जिन्हें क्षेत्र में साफ-सुथरी छवि का माना जाता है, जो पिछ्ले कई सालों से अपनी जमीन तैयार करने में लगे हैं।
निवाड़ी के रूप सिंह कहते हैं- ‘निवाड़ी को जिला बनाने की मांग पिछ्ले तीस सालों से होती रही है, लेकिन बना अब है। इसमें पूरा हाथ अनिल जैन का है। इसके लिए उनका समर्थन एक बार और बनता है।’ वहीं जनक अहिरवार कहते हैं- ‘ठीक है, निवाड़ी जिला बन गया, लेकिन जिले भर से क्या करेंगे, जब तक बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं?’ पेशे से किसान जनक बताते हैं- ‘चार सालों के सूखे ने कमर तोड़ कर रख दी है, खाने के लाले पड़े हैं। जिला बनने से दो जून के खाने पर असर नहीं होने वाला।’
खरगापुर
यहां मुकाबला दिलचस्प है, यहां कांग्रेस ने चंदारानी गौर को प्रत्याशी बनाया है, तो भाजपा ने राहुल लोधी को। जहां चंदा रानी यहां के राजपरिवार से हैं, वहीं राहुल लोधी उमा भारती के रिश्तेदार बताए जाते हैं। राहुल क्षेत्र में सक्रिय तो हैं, लेकिन लोग उन पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। इसका प्रमुख कारण उनका बाहरी होना है। वहीं चंदा रानी स्थानीय हैं और वर्तमान में विधायक भी हैं, जिसका उन्हें लाभ मिल रहा है।
भाजपा चुनाव कार्यालय के बाहर भाजपा का झंडा लिए बैठे रामकिशोर मुस्कराते हुए कहते हैं कि इस बार बंडल बनेगा। किसका पूछने पर कहते हैं कि 11 दिसम्बर का इंतजार करिये।