कठुआ मामले की रिपोर्टिंग में मीडिया घरानों की हद दर्जे की लापरवाही, पहचान जाहिर करने पर अदालत ने लगाया 10 लाख का जुर्माना



कठुआ रेप और हत्या मामले में मीडिया द्वारा जितनी संवेदनशीलता का परिचय दिया गया उतना ही एक घोर लापरवाही का मामला सामने आया है। आईपीसी के धारा 228ए में दर्ज है कि यौन हिंसा से पीड़ित किसी भी व्यक्ति की पहचान जाहिर करना कानूनी अपराध है। कठुआ रेप और हत्या मामले में मीडिया ने इस तथ्य को ध्यान में न रखते हुए रिपोर्टिंग जिसमें पीडिता का नाम और उसकी पहचान जाहिर होती रही।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले को संज्ञान में लेते हुए मीडिया घरानों से इस पर जवाब तलब किया था। मामले की सुनवाई करते हुए यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण कानून (पोक्सो) की धारा 23 मीडिया के लिए यौन अपराधों के पीड़ित बच्चों से संबंधित नाम, पता, तस्वीर, पारिवारिक ब्यौरा, स्कूल संबंधी जानकारी, पड़ोस का ब्यौरे से जुड़े मामलों की रिपोर्ट को लेकर नियम कायदों से संबंधित है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 228 (ए) ऐसे अपराधों में पीड़ितों की पहचान जाहिर करने से संबंधित है।

सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने प्रत्येक मीडिया घराने पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया तथा निर्देश दिया कि मुआवजा राशि उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के पास हफ्ते भर के भीतर जमा की जाए और राशि जम्मू कश्मीर विधिक सेवा प्राधिकरण के खाते में भेजी जाए जिसे राज्य की पीड़ित मुआवजा योजना के लिए इस्तेमाल में लाया जाए। पीठ ने निर्देश दिया कि यौन अपराधों के पीड़ितों की निजता और पीड़ितों की पहचान जाहिर करने के दंड से संबंधित कानून के बारे में व्यापक और निरंतर प्रचार किया जाए।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले के संबंध में 13 मीडिया घरानों को नोटिस जारी किया था जिसमें से 9 मीडिया समूह अदालत में हाजिर रहे। मीडिया घरानों की तरफ से पेश हुए वकीलों ने अदालत को बताया कि पहचान जारी करने जैसी गलती कानून की जानकारी न होने और पीडिता की मृत्यू हो जाने के कारण ऐसी गलती हुई।

मीडिया द्वारा की गई इस भारी चूक के लिए पीसीआई ने 16 अप्रैल को जारी एक रिलीज में कहा, ‘पीसीआई अध्यक्ष ने आपराधिक मामलों में शामिल और यौन अपराधों में उत्पीड़ित बच्चों की पहचान का खुलासा करने की मीडिया की प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता जताई है। पीसीआई द्वारा मामले का संज्ञान तब लिया गया जब अदालत ने नोटिस जारी किया।

कठुआ मामले में मीडिया के हर माध्यम ने पीडिता की पहचान जाहिर की। जबकि 2012 में हुए रेप केश के बाद अदालत द्वारा स्पष्ट रूप से पीडिता की पहचान जाहिर करने पर रोक लगा थी। अब सवाल यह उठता है कि अखबारों टीवी के संपादकों को इतना भी ज्ञान नहीं कि किस मामले को कैसे रिपोर्ट करना है? या फिर सबसे पहले और सबसे तेज के चक्कर में मिलने वाली टीआरपी के लालच को ध्यान में रखते हुए मामले की गंभीरता को ध्यान सब कुछ चलते रहने दिया?