भीम आर्मी: चंद्रशेखर की गिरफ्तारी से किसका कितना राजनीतिक नफा नुकसान?

सुशील मानव सुशील मानव
ग्राउंड रिपोर्ट Published On :


भीम आर्मी संस्थापक चंद्रशेखर आजाद द्वारा 20 दिसंबर को एनआरसी-सीएए के खिलाफ़ जामा मस्जिद से जंतर मंतर तक विरोध रैली निकालने की परमीशन देने से दिल्ली पुलिस ने इन्कार कर दिया और उन्हें किसी भी हालत में गिरफ्तार करने की योजना बनाकर रखी थी। बवाजूद इसके चंद्रशेखर आजाद जामा मस्जिद पहुंचे और उन्हें वहाँ से गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन वो किसी तरह बच निकले। हालांकि इसके अगले ही दिन यानि 21 दिसंबर को जामा मस्जिद से गिरफ्तार करके उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

चंद्रशेखर आजाद के जामा मस्जिद के अंदर एनआरसी सीएए के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन की तस्वीर विदेशी मीडिया तक की सुर्खिया बनी। पाकिस्तान के प्रमुख न्यूज अख़बार ‘द डॉन’ ने लिखा नए कानून के खिलाफ़ दलित ऑइकॉन दिल्ली की मस्जिद में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा और मौलाना मस्जिद पर ऊपर खड़ा होकर देख रहा।

आरएसएस-भाजपा के मुस्लिम-विरोधी हिंदू राजनीति के लिए सबसे बड़ा खतरा है चंद्रशेखर आजाद

मुस्लिम समुदाय से वोट देने का अधिकार छीनकर उन्हें अनागरिक बनाने के आरएसएस के एजेंडे को भाजपा सरकार एनआरसी-सीएए के जरिए देश में लागू करने पर अड़ी हुई है। छात्रों के मुखालफ़त से शुरु हुए इस एनआरसी सीएए विरोधी आंदोलन को पहले तो सरकार मीडिया और पुलिस ने दमन के सहारे खत्म करने की कोशिश की लेकिन दमन का उलटा असर हुआ और ये आंदोलन खत्म होने के बजाए और फैल गया। फिर इस संविधान बचाओ आंदोलन में एक एक करके सारी राजनीतिक विपक्षी पार्टिया जुड़ती चली गई। आलम ये हुआ कि नागरिकता संशोधन विधेयक के पक्ष में मतदान करने वाली जदयू ने बिहार में एनआरसी न करवाने की घोषणा कर दी।

भाजपा लगातार एनआरसी-सीएए का विरोध करने वालों को मुस्लिम और मुस्लिम परस्त दल साबित करने की कोशिश कर रही थी। उसके इस अभियान में मीडिया भी पूरे दम खम से लगी हुई थी। लेकिन एनआरसी-सीएए के खिलाफ़ चंद्रशेखर के सड़क पर उतरते ही माहौल पूरी तरह से बदलने लगा। बड़ी संख्या में दलित समुदाय के लोग इस आंदोलन से जुड़ने लगे। जामा मस्जिद में प्रदर्शनकारियों के बीच बाबा साहेब की तस्वीर लहराकर विरोध जताते चंद्र शेखर आजाद की तस्वीर तो इस आंदोलन की आइकॉनिक तस्वीर बन गई।

इसका भय आरएसएस-भाजपा को पहले से ही था कि चंद्रशेखर आजाद के एनआरसी-सीएए के विरोध में उतरने से एक समाजिक राजनीतिक दलित-मुस्लिम एक्य बन सकता है, और यदि दलित-मुस्लिम एक्य बनता है तो इससे आरएसएस-भाजपा के मुस्लिम-विरोधी हिंदू राजनीति को बड़ा नुकसान होता। दूसरा नुकसान ये होता कि भाजपा सरकार इस एनआरसी-सीएए विरोधी आंदोलन को अलग कपड़ा पहनने वालो का आंदोलन कहकर इसका दमन न कर पाती। इसीलिए भाजपा सरकार ने दिल्ली पुलिस की मदद से न सिर्फ़ चंद्रशेखर आजाद को गिरफ्तार करवाया बल्कि हिंसा भड़काने के ऐसे ऐसे चार्ज फ्रेम करवाए ताकि वो जल्दी रिहा न हो सकें।

मायावती की दलित राजनीतिक जमीन के लिए ख़तरा बनते चंद्रशेखर

20 दिसंबर शुक्रवार को चंद्रशेखर आजाद के पूर्व घोषित विरोध रैली में मद्देनज़र 20 दिसंबर को बसपा अध्यक्ष मायावती ने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील करते हुए कहा था कि,- पूरे देश में बवाल हुआ है। मैं अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील करती हूं कि इस समय व्याप्त इमरजेंसी जैसे हालात में सड़क पर न उतरें। हमने शुरु से ही इस कानून का विरोध किया है लेकिन हम दूसरी पाटियों की तरह हिंसा और सामाजिक संपत्ति को बर्बाद करने में विश्वास नहीं रखते हैं।

वहीं चंद्रशेखर आजाद के गिरफ्तारी के बाद मायावती कहा-“आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर पर बहुजन समाज पार्टी (BSP) प्रमुख मायावती ने हमला बोला है. मायावती ने एक ट्वीट में कहा, चंद्रशेखर उत्तर प्रदेश का रहने वाला है लेकिन नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के खिलाफ उत्तर प्रदेश की बजाय दिल्ली के जामा मस्जिद के विरोध प्रदर्शन में शामिल होता है और अपनी जबरन गिरफ्तारी करवाता है, क्योंकि यहां जल्दी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं।”

मायावती ने दूसरे ट्वीट में लिखा कि- “दलितों का आम मानना है कि भीम आर्मी का चंद्रशेखर, विरोधी पार्टियों के हाथों खेलकर खासकर बी.एस.पी. के मज़बूत राज्यों में षडयंत्र के तहत चुनाव के करीब वहां पार्टी के वोटों को प्रभावित करने वाले मुद्दे पर, प्रदर्शन आदि करके फिर जबरन जेल चला जाता है।”

बता दें कि नागरिकता संशोधन बिल राज्यसभा में पास होने के बाद चंद्रशेखर आजाद ने बसपा अध्यक्ष पर हमलावर होते हुए ट्वीट किया था- “बसपा के दो सांसद संविधान को बचाने की लड़ाई छोड़कर भाग गए और भाजपा की (नागरिकता (संशोधन) विधेयक में) मदद की। उन्होंने बीआर आंबेडकर, बसपा संस्थापक कांशीराम और बहुजन समाज (दलित समुदाय) के साथ छल किया है।”

बता दें कि राज्यसभा में नागरिकता संसोधन बिल के लिए हुए मतदान के वक्त बसपा के सांसद राजाराम और सांसद अशोक सिद्धार्थ गैर-मौजूद रहे थे।
यह भी बता दें कि बीते रोज़ भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद रावण ने अलग पार्टी बनाने का ऐलान करते हुए आरोप लगाया था कि मायावती ने सदन में संविधान विरोधी बिल का समर्थन किया है।

अगस्त 2019 में भी केन्द्र सरकार द्वारा कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने, और जम्मू कश्मीर लद्दाख को तीन भागों में बांटकर केन्द्र शासित राज्य बनाए जाने का बसपा ने समर्थन किया था।