सहारनपुर के दलित आंदोलनकारियों को ‘अपराधी’ बनाने की साज़िश- रिहाई मंच



सहारनपुर कांड के एक महीना पूरा होने पर रिहाई मंच ने दौरा कर जारी की जांच रिपोर्ट 

 

       भाजपा के साथ मिलकर पुलिस दलितों को घोषित कर रही है मास्टरमाइंड

पुलिस और भगवा गुंडों के गठजोड़ से दलितों पर किया गया हमला

दलित आंदोलनकारियों की आपराधिक छवि बनवा रही है भाजपा

 

सहारनुपर/लखनऊ 6 जून 2017। सहारनपुर में जातिगत व सांप्रदायिक हिंसा क्षेत्रों में रिहाई मंच ने सात दिवसीय दौरा करते हुए शब्बीरपुर घटना के एक माह पर रिपोर्ट जारी की। जांच समूह में शेड्यूल कास्ट कम्यूनिटी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण प्रसाद, रिहाई मंच नेता शाहनवाज आलम, सेंटर फॉर पीस स्टडी से सलीम बेग, लेखक व स्तंभकार शरद जायसवाल, पटना हाई कोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक आनंद, इलाहाबाद हाई कोर्ट के अधिवक्ता संतोष सिंह, रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव और सहारनपुर से सामाजिक कार्यकर्ता अरशद कुरैशी शामिल रहे।

जांच समूह को जातिगत हिंसा के बारे में शब्बीरपुर के 55 वर्षीय मामराज और 45 वर्षीय रोहतास ने बताया कि 5 अपै्रल 2017 को गांव के ही रविदास मंदिर के प्रांगण में बाबा साहब की मूर्ती जब दलित समुदाय ने लगानी चाही तो उस पर ठाकुर जाति के लोगों ने विरोध कर दिया। ठाकुरों ने स्थानीय भाजपा विधायक के माध्यम से थाने फोन कर इसके बारे में थानेदार से बात की जिसके बाद पुलिस ने आकर काम रुकवा दिया। हम लोगों ने कहा कि जब समाज का प्रांगण है तो ऐसे में अनुमति की क्या जरूरत है, लेकिन वे नहीं मानें। फिर उसके बाद हम लोगों ने अनुमति के लिए प्रार्थनापत्र दिया जिसका ठाकुर जाति के लोगों ने विरोध कर दिया। पर गांव के कुछ ठाकुर जाति के लोगों ने हमारा समर्थन भी किया जिनमें श्याम सिंह, मनबीर, गुड्डू आदि हैं। इसके बाद मूर्ति लग गई और इसी के मद्देनजर 14 अप्रैल को बाबा साहब की जंयती को लेकर हुए कार्यक्रम में पुलिस बल मौजूद था। 5 मई को हमारे गांव से भी लोग शोभायात्रा निकालकर सिमलाने जाने वाले थे। शिवकुमार प्रधान जी को मालूम चला कि वे लोग कह रहे हैं कि चमारों की शोभायात्रा तो निकलने नहीं दी जाएगी। इस बात की सूचना प्रधान जी ने थाने को दी थी ताकि कोई झगड़ा न हो जाए । जिसपर एसडीएम साहब ने एसओ बड़गांव साहब को भेजा। 5 मई को उनकी डीजे की तैयारी हो गई जब उनको एसओ साहब ने समझाया कि कि बिना परमीशन के जुलूस नहीं निकाल सकते तो भी वे नहीं माने। उस समय तक गांव के ही लड़के थे। फिर भी वे राजपूताना जिन्दाबाद, डा0 अम्बेडकर मुर्दाबाद का नारा लगाते हुए निकल लिए। फिर वे सिमलाना में जहां महाराणा प्रताप की जयंती मनाने के लिए एकजुट थे, वहां से और महेशपुर से हजारों की संख्या में भगवा गमछे बांधे, हाथों में तलवारें, लाठी डंडों के साथ दलितों की बस्ती पर हमला कर दिए। उन्होंने रविदास जी की मूर्ती तोड़ी और उस पर पेशाब किया। उस वक्त गेहूं की फसल खड़ी थी तो लोग कटाई पर गए थे इसलिए गांव में आदमी नहीं थे। ठाकुर जाति के इस हमले में 66 से अधिक दलितों के घरों को तहस-नहस कर दिया गया। 12-13 को गंभीर चोटें आईं और 300 मीटर के एरिया में जो खूनी-तांडव हुआ उसमें बच्चों, महिलाओं और यहां तक की जानवरों तक पर हमले किए गए।

जांच समूह सहारनपुर में स्थित संत रविदास छात्रावास भी गया और छात्रों से मुलाकात की और जानना चाहा कि वहां मीटिंग को लेकर जो विवाद हुआ वो क्या था? वहां जाने पर मालूम हुआ कि 9 की बैठक को लेकर पुलिस ने 8 की रात से ही डेरा डाल दिया था।

20 अप्रैल को सड़क धूधली में हुए बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की शोभायात्रा को लेकर दलित-मुस्लिम तनाव को लेकर जांच समूह सड़क दूधली भी पहुंचा। जांच समूह से महताब अली ने कहा कि यहां शोभायात्रा को लेकर तनाव बनाने की कोशिश बाहरी तत्व करते हैं। जबकि अंबेडकर शोभायात्रा को लेकर जब हस्ताक्षर अभियान चलाया गया तो उसके पक्ष में मेरे पिता अब्दुल रहमान साहब पहले हस्ताक्षर करने वाले शख्स थे। पर प्रशासन ने संवेदनशील क्षेत्र मानते हुए अनुमति नहीं दीं। उन्होंने बताया कि दरअसल जुलूस को मुस्लिम बस्ती से निकालने की बात है जबकि उसका रास्ता दूसरा था। अबकी बार 13 अप्रैल को दलित भाइयों ने जनकपुरी थाने में लिखित दिया कि 14 अप्रैल को वे गांव में ही स्थित अंबेडकर भवन में भण्डारा करेंगे। पर 20 अप्रैल की सुबह 9 बजे के आस-पास बीजेपी के लोग एकत्र हुए और वहीं से सड़क दूधली के लिए शोभा यात्रा का जुलूस निकाल दिए। इसकी हम लोगों को कोई सूचना नहीं थी। यह बाद में पता चला इस जुलूस में बीजेपी सांसद राघव लखन पाल भी शामिल रहे। एक ट्राली पर शोभायात्रा निकालते हुए डीजे बजाते हुए पीछे राघव लखन पाल की गाड़ी थी वो गली में घुस गए। सबसे आगे पुलिस चल रही थी। ट्राली में ईट-पत्थर भरा हुआ था और वे जय श्री राम और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे। इसके बाद अली कम्युनिकेशन के पास जैसे पहुंचे पुलिस ने उन्हें रोका और यहीं से विवाद शुरु हुआ और राघव लखन पाल की मौजूदगी में मुस्लिम समुदाय की दुकानों में तोड़-फोड़ हुई। और इसके बाद जो उन लोगों ने एसपी और पुलिस के साथ किया वो सब जग जाहिर है।

जांच समूह जब सड़क धूधली की दलित बस्ती में गया तो वहां उसी दिन कुछ गिरफ्तारियों की वजह से लोग डरे-सहमे थे। उन लोगों ने आगे तो बात-चीत से मना किया फिर कहा कि आप हमारा नाम नहीं छापें तो हम बताएंगे क्यों कि मीडिया में नाम आने के बाद अज्ञातों में पुलिस नाम दिखाकर उठा ले जा रही है। जबकि 20 अपै्रल को शोभा यात्रा निकालने वाले बाहरी थे, उन पर कोई कार्रवाई नहीं उल्टे हम पर कार्रवाई और गिरफ्तारी करके हम लोगों को परेशान किया जा रहा है।

 

निष्कर्ष :

जांच समूह ने 7 दिनों तक हिंसा ग्रस्त गावों के अलावां अन्य जगहों पर भी विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात की जिसकी फाइंडिग इस तरह है-

1- सड़क दूधली में 13 अप्रैल को जब परमीशन नहीं मिली तो 15 अप्रैल को फिर कोशिश हुई। यह सब प्रयास विश्व हिंदू परिषद और अशोक भारती द्वारा हुए। जबकि सड़क दूधली में 13 अप्रैल को ही दलितों ने अंबेडकर भवन में 14 अप्रैल को भण्डारे का कार्यक्रम करने की बात कही थी।

2- जिस तरह से सड़क दूधली में भाजपा सांसद राघव लखन पाल व उनके भाई राहुल लखनपाल, महानगर अध्यक्ष अमित गनरेजा, राहुल झाम, जितेन्द्र सचदेवा, सुमित जसूजा और अशोक भारती ने भाजपा समर्थकों के साथ तांडव किया व उसके बाद एसपी लव कुमार के आवास पर हमला किया जिसमें उनके परिवार को छुपकर शरण लेनी पड़ी, वह साफ करता है कि सरकार के संरक्षण में यह सब हो रहा था।

3- यह सब एक सुनियोजित ड्रामे की तरह रचा गया था जिसमें बीजेपी सांसद राघव लखनपाल ने अपने भाई को मेयर के चुनाव से पहले लाइम लाइट में लाने के लिए इस बात के लिए पुलिस को तैयार किया कि वह अपने समर्थकों के साथ मुस्लिम बस्ती में थोड़ी दूर जाकर थोड़ा हाथा पाई होकर खत्म कर देंगे। इसीलिए इस एका-एक निकले जुलूस में मीडिया कर्मी भारी संख्या में मौजूद थे। ऐसा करके राघव लखन पाल सहारनपुर निकाय में जुड़ने की संभावना वाले दलितों के गांवों को एड्रेस करना चाहते थे। ऐसा उन्होंने 2014 में उपचुनावों के वक्त भी शहर में सिख-मुस्लिम विवाद को कराकर किया था।

4- सड़क दूधली में मुस्लिम इलाके से विरोध में पत्थर बाजी और प्रशासन के पंगु होने की स्थिति में एसपी कार्यलय पर हमला करवाकर भाजपा नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाया।

5- यहां यह भी सवाल है कि बाबा साहब की शोभायात्रा में जय श्री राम, भारत माता की जय और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाने का क्या औचित्य है।

6- सड़क दूधली के स्थानीय दलितों पर एफआईआर लेकिन बाहरी भाजपाई, बंजरगदल, हिंदू युवा वाहिनी के लोगों को खुली छूट साफ करती है कि पुलिस ऐसा करके मुस्लिम-दलितों के बीच तनाव पैदा कर रही है। जबकि 20 अपै्रल की शोभा यात्रा को गांव के दलितों का कोई समर्थन नहीं था और न वे इसमें शामिल थे।

7- आज जो प्रशासन भीम आर्मी को लेकर बहुत चिंतित है, आखिर छुटमलपुर से लेकर पूरे जिले में दलितों के खिलाफ हो रही हिंसा के वक्त वह इतनी चिंतित क्यों नही थी जिससे कि भीम आर्मी की जरुरत पड़ी।

8- इंसाफ के सवाल पर भीम आर्मी का बनना और उसके बाद उसका दमन बताता है कि प्रशासन सवर्ण सामंती तत्वों के मनमाफिक काम कर रहा है। इस एक महीने के दौरान जिन दलित संगठनों या व्यक्तियों ने दलितों के सवाल पर चिंता व्यक्त की वह पुलिस के घेरे में हैं जबकि पूरे जिले में जय राजपूताना के बोर्ड लगे हैं उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

9- जिस तरह से 5 मई की घटना के लिए मास्टर माइंड शब्बीरपुर के प्रधान शिव कुमार को बताया जा रहा है जबकि महाराणा प्रताप का जुलूस निकालने और हजारों की संख्या में तलवारें लेकर दलितों को मारने-काटने वालों का संरक्षण किया जा रहा है उससे साफ है कि सरकार ठाकुर जाति के लोगों के साथ ही है।

10- मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के आरोपी व केन्द्रीय राज्य मंत्री संजीव बालियान का सहारनपुर आकर यह कहना कि साजिश करने और कराने वाले अब तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं हैं बल्कि वह खुलेआम घूम रहे हैं, और दूसरे दिन 5 अप्रैल को भीम आर्मी के चन्द्रशेखर, अध्यक्ष विनय रतन, जिलाध्यक्ष कमल वालिया और मंजीत के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करते हुए सहारनपुर रेंज के आईजी एस इमैनुअल द्वारा 12-12 हजार रुपए इनाम घोषित करना साफ करता है कि शासन प्रशासन के निशाने पर सिर्फ दलित हैं।

11- केन्द्रीय राज्य मंत्री संजीव बालियान अगर सहारनपुर के लेकर इतने चिंतित हैं तो आखिर क्यों नहीं वो इस घटना के मुख्य षडयंत्रकर्ता भाजपा सांसद राघव लखन पाल, भाजपा विधायक को गिरफ्तार करवाते। उल्टे भाजपा सांसद राघव लखन पाल और भाजपा के नेता जिन्होंने 20 अप्रैल से सहारनपुर को हिंसा की आग में झोक दिया है, प्रशासन के साथ मिटिंग कर रहे हैं। जिससे साफ है कि पुलिस जिन्हें मास्टर माइंड कह रही हैं दरअसल उन्हें भाजपा नेता ही मास्टर माइंड बता रहे हैं।

12- 5 मई को शब्बीरपुर की घटना के बाद जिस तरह से ठाकुर जाति के मृतक एक व्यक्ति को मुआवजा दिया गया जबकि वह व्यक्ति खुद हिंसा करने के लिए गया था और रविदास मंदिर में भी तोड़-फोड़ की वहीं दलित महिलाओं-बच्चों को कोई मुआवजा नहीं दिया जाना साफ करता है कि हिंसा करने वालों को मुआवजा देकर और पीड़ितों को इग्नोर कर सरकार मनुवादी तत्वों को खुला संरक्षण दे रही है।

13- भीम आर्मी के नाम पर मुजफ्फरनगर में रामपुर तिराहे के निकट बझेड़ी पशु पैठ मैदान में बहुजन धम्म सम्मेलन व उसको लेकर शुक्रताल में चंदा एकत्र करने पर रोक और वहीं सहारनपुर जातीय-सांप्रदायिक हिंसा के षडयंत्रकर्ता संगठन आरएसएस को हिंदू समाज को संगठित करने के नाम पर दिल्ली रोड स्थित सरस्वती विहार स्कूल में कैंप चलाने की इजाजत देना साफ करता है कि आगामी समय में सहारपुर को ये मुनवादी संगठन फिर हिंसा में झोकने की तैयारी कर रहे हैं जिसमें प्रशासन इनके साथ है।

14- भीम आर्मी को लेकर खुफिया इनपुट देने वाली एलआईयू, आईबी सरीखे संगठनों के इनपुट मीडिया में लाकर दलितों के खिलाफ नफरत बढ़ाने वाले खुफिया विभाग के संगठनों ने 20 अप्रैल से भाजपा सांसद राघव लखन पाल, भाजपा, आरएसएस, बजरंगदल, हिंदू युवा वाहिनी, राजपूतना सेनाओं और महाराणा प्रताप के नाम पर खुलेआम तलवारें लेकर हिंसा करने वालों को लेकर क्या इनपुट दिया। और अगर दिया तो वह क्यों नहीं मीडिया में आया।

15- सहारनपुर में लगातार धार्मिक स्थलों पर आराजक तत्वों द्वारा की जा रही अराजकता साफ कर रही है कि सांप्रदायिक-जातीय तत्व लगातार सक्रिय हैं।

16- सहारनपुर में इंटरनेट को तो दस दिन तक बाधित किया गया पर स्थानीय मीडिया जिसने लगातार अफवाहों को गर्म किया उस पर क्या कार्रवाई होगी।

17- 5 मई की घटना के बाद कार्रवाई के लिए प्रशासन पर दबाव व चन्द्रशेखर समेत अन्य दलित नेताओं के साथ वार्ता के साथ ही शब्बीरपुर की घटना व इंसाफ न होने पर विरोध करने वालों पर लाठी चार्ज कर पूरे शांतिपूर्ण आंदोलन को अराजक बनाने की कोशिश प्रशासन ने की, जिससे शब्बीरपुर के इंसाफ का सवाल दब जाए।

18- जब शब्बीरपुर जल रहा था तो फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को न जाने देने वाले ठाकुर जाति के लोगों को क्यों नहीं मास्टर माइंड मानता प्रशासन।

19- दलितों के विभिन्न गावों की घेराबंदी और ठाकुरों के गांवो में कोई फोर्स नहीं जबकि अब तक दलितों ने सिफ इंसाफ के लिए प्रोटेस्ट किया वहीं ठाकुर जाति के लोगों ने हजारों की संख्या में तलवारें लेकर हमला किया।

20- 23 मई को बसपा प्रमुख मायावती के आने के बाद लगातार चन्द्रपुर में विभिन्न लोगों पर ठाकुर जाति के लोगों ने दिन दहाड़े तलवारें लेकर हमले किए जिसमें एक व्यक्ति की मौत भी हुुई। दलितों के आंदोलन को नक्सल से जोड़ा गया पर ठाकुर जाति के हमलों को पुलिस ने दरकिनार करने की कोशिश की।

21- 2014 के उपचुनाव के वक्त सहारनपुर में सांपद्रायिक हिंसा को कश्मीर से जोड़ना व मई 2017 की जातिगत हिंसा को नक्सल से जोड़ना साफ करता है कि यह यहां के पुलिस के एक टेªंड हैं सवालों को भटकाने का।

22- जांच दल ने पाया कि सहरानपुर के क्षेत्र में पिछले पांच वर्षें में महाराणा प्रताप जयंती पर शोभा यात्रा निकालने का ट्रेड विकसित हुआ है। और इसमें ठाकुर जाति के लिए अपनी अस्मिता, मान-सम्मान से जोड़ते हुए और स्थानीय तनावों से जोड़ते हुए इसका सांप्रदायिक रूप विकसित कर हमलावर होते हैं जो अबकी बार शब्बीरपुर में जातिगत हिंसा के रुप में परिणत हो गया।

23- गाय को मां बताकर पूरे देश में हिंसा करने वालों ने शब्बीरपुर में जानवरों पर भी हमले किए और गाय तक को जख्मी किया जो इनकी गौ माता की राजनीति को बेनकाब करता है कि दलित महिलाएं को तो ये मां नहीं समझते वहीं गाय को भी नहीं।

24- 18 अपै्रल को दलित संगठनों ने प्रशासन को यह अवगत करा दिया था कि बाबा साहब की जयंती पर अब कोई कार्यक्रम उनके नहीं होने हैं तो ऐसे में 20 अपै्रल की सड़क दूधली की शोभा यात्रा भाजपा की राजनीति की रणनीति का हिस्सा था जिसने पूरे क्षेत्र को हिंसा की आग में झोंक दिया।

25- आंदोलनकारी दलित नेताओं पर इनाम रखकर पूरे मामले और आंदोलन को क्रिमिनलाइज किया जा रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो 20 अप्रैल को हुई घटना के बाद जिन भाजपा के लोगों ने एसएसपी के घर पर हमला किया उस पर पुलिस ने क्या किया ?

द्वारा जारी-

शाहनवाज आलम

प्रवक्ता रिहाई मंच

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