नवरात्र में सनी लियोनी के साथ झूम रहा है बाज़ार ! गरबा का अर्थ कौन बताए !



गिरीश मालवीय

इस लेख से बहुसंख्यक लोगो की भावनाएं आहत हो सकती है अपनी रिस्क पर पढ़ें !

क्या आप ‘झकोलिया खेलते है ? क्या आप टिप्पनी खेलते है ? क्या भवई खेलते हैं ?
आप कहंगे कि ये क्या है ?
चलिए जाने दीजिए ! ये बताइये कि आप गरबा खेलते हैं आप डांडिया खेलते हैं ?
आप कहेंगे कि, हां भाई ये तो हम खेलते हैं।

तो मित्रो, जैसे ये दो गुजरात के लोकनृत्य है वैसे ही ऊपर वाले तीन भी गुजरात के लोकनृत्य है

आप शायद थोड़ा गुस्सा हो जाएंगे आप कहेंगे कि भाई ये हमारी संस्कृति है हमारी परंपरा है !
अच्छा क्या आपके मा बाप ने कभी गरबा खेला था या दादा दादी , या नाना नानी ने कभी खेला था ? उन्होंने तो देखा भी नही होगा !
इसलिए इसे आपकी संस्कृति परम्परा से मत जोड़िये, ये गुजरातियों की संस्कृति जरूर हो सकती है !

नवरात्रि पर एक विशेष दिन बंगाल में धुनुची नृत्य होता है पंजाब में जगराता होता है। हिमाचल में नवरात्र में लोग रिश्तेदारों के साथ मिलकर पूजा करते हैं आंधप्रदेश में बटुकम्मा पान्डुगा मनाया जाता है ओर भी प्रदेशो अलग अलग परम्परा है।

अब जरा गरबा क्या होता है, यह समझ लीजिए। गरबा गुजरात मे खेला जाता है गरबा के शाब्दिक अर्थ पर गौर करें तो यह गर्भ-दीप से बना है। नवरात्रि के पहले दिन छिद्रों से लैस एक मिट्टी के घड़े को स्थापित किया जाता है जिसके अंदर दीपक प्रज्वलित किया जाता है और साथ ही चांदी का एक सिक्का रखा जाता है। इस दीपक को दीपगर्भ कहा जाता है।

दीप गर्भ के स्थापित होने के बाद महिलाएं और युवतियां रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर मां शक्ति के समक्ष सर्पिल आकार में नृत्य कर उन्हें प्रसन्न करती हैं। गर्भ दीप स्त्री की सृजनशक्ति का प्रतीक है और गरबा इसी दीप गर्भ का अपभ्रंश रूप है, इसमे सिर्फ ताली बजाकर तेज रूपी मां अंबा की आराधना की जाती है गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।

याद रखिये सिर्फ महिलाएं और युवतियां ही गरबा करती हैं

इस लेख से बहुसंख्यक लोगो की भावनाएं आहत हो सकती है अपनी रिस्क पर पढ़े
क्या आप ‘झकोलिया खेलते है ? क्या आप टिप्पनी खेलते है ? क्या भवई खेलते हैं ?
आप कहंगे कि ये क्या है ?
चलिए जाने दीजिए ! ये बताइये कि आप गरबा खेलते हैं आप डांडिया खेलते हैं ?
आप कहेंगे कि, हां भाई ये तो हम खेलते हैं
तो मित्रो, जैसे ये दो गुजरात के लोकनृत्य है वैसे ही ऊपर वाले तीन भी गुजरात के लोकनृत्य है

 

आप शायद थोड़ा गुस्सा हो जाएंगे आप कहेंगे कि भाई ये हमारी संस्कृति है हमारी परंपरा है
अच्छा क्या आपके मा बाप ने कभी गरबा खेला था या दादा दादी , या नाना नानी ने कभी खेला था ? उन्होंने तो देखा भी नही होगा
इसलिए इसे आपकी संस्कृति परम्परा से मत जोड़िये ये गुजरातियों की संस्कृति जरूर हो सकती है
नवरात्रि पर एक विशेष दिन बंगाल में धुनुची नृत्य होता है पंजाब में जगराता होता है। हिमाचल में नवरात्र में लोग रिश्तेदारों के साथ मिलकर पूजा करते हैं आंधप्रदेश में बटुकम्मा पान्डुगा मनाया जाता है ओर भी प्रदेशो अलग अलग परम्परा है

अब जरा गरबा क्या होता है यह समझ लीजिए गरबा गुजरात मे खेला जाता है गरबा के शाब्दिक अर्थ पर गौर करें तो यह गर्भ-दीप से बना है। नवरात्रि के पहले दिन छिद्रों से लैस एक मिट्टी के घड़े को स्थापित किया जाता है जिसके अंदर दीपक प्रज्वलित किया जाता है और साथ ही चांदी का एक सिक्का रखा जाता है। इस दीपक को दीपगर्भ कहा जाता है।

दीप गर्भ के स्थापित होने के बाद महिलाएं और युवतियां रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर मां शक्ति के समक्ष सर्पिल आकार में नृत्य कर उन्हें प्रसन्न करती हैं। गर्भ दीप स्त्री की सृजनशक्ति का प्रतीक है और गरबा इसी दीप गर्भ का अपभ्रंश रूप है, इसमे सिर्फ ताली बजाकर तेज रूपी मां अंबा की आराधना की जाती है गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।

याद रखिये सिर्फ महिलाएं और युवतियां ही गरबा करती हैं !

अब जरा डांडिया क्या है वो समझ लेते हैं। डांडिया शब्द गलत है, सही शब्द है ‘डांडिया रास’, यह एक नृत्य नाटिका जैसा नृत्य है !
डांडिया रास की उत्पत्ति मां दुर्गा और महिषासुर, पराक्रमी राक्षस राजा के बीच एक नकली लड़ाई के मंचन से शुरू हुई। इसीलिए इसका उपनाम तलवार नृत्य भी है। इस नृत्य के दौरान युवतियां संगीत की धुन पर नृत्य के रूप में दुर्गा और राक्षस की लड़ाई पेश करती है। इसे मूलतः छोटी लाठियों की सहायता से खेला जाता है इस नृत्य में वह लाठियां दुर्गा की तलवार का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन दोनों नृत्य में सिर्फ देवी आदि शक्ति और कृष्ण की रासलीला से संबंधित गीत गाए जाते है ।

ये है गरबा ओर डांडिया रास की असली परम्परा। क्या इतनी शुद्धता का पालन हर गली मोहल्ले या बड़े बड़े इवेन्ट वाले पंडालों में होता हैं ? नही होता न, इसलिए धर्म संस्कृति की दुहाई मत दीजिए !

जिस तरह के आयोजन आज गरबा ओर डांडिया के नाम पर किये जाते हैं उनमें इन धार्मिक भावनाओं की अनदेखी की जाती है ।  किस तरह का फ्री स्टाइल डांस गरबा ओर डांडिया रास के नाम पर किया जाता है लिखने की जरूरत नही है।

दरअसल हुआ यह है कि आज के समय में संयुक्त परिवारों की जगह एकाकी परिवारों ने ले ली है। गरबा, डांडिया और ऐसे नृत्य हैं जिसमें सामूहिकता का भाव है। उन्हें ऐसे नृत्य आयोजन में भागीदार बनना सामूहिकता के अप्रतिम आनंद की अनुभूति कराता है।

और इसी सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव को पूंजीवादियों और आधुनिक बाजार की शक्तियों ने भुनाया है, ओर राजनीतिक दलों ने भी।
गली मोहल्लों के छोटे पंडालों ओर बड़े बड़े मैदानों के इवेंट भी हर तरह के छोटे बड़े टुटपुँजिये नेता भइया दादा कर अपनी दुकानदारी चमकाते नजर आते हैं।

अब नवरात्रि त्योहार नही रह गया है अब यह एक इवेंट हो गया है, पैसे और तड़क-भड़क का प्रदर्शन।  हर क़दम पर बाज़ार। चारों तरफ़ विज्ञापन। एक कंडोम कंपनी सनी लियोनी की तस्वीर के साथ चली आई है, बताने कि ‘खेलो मगर प्यार से !’

कृपया इस बाज़ार में धर्म और अध्यात्म को खोजने की कोशिश ना करें। इस भीड़ में वे खो चुके हैं।

बहरहाल , नवरात्रि की आप सभी को बधाई

 



लेखक इंदौर (मध्यप्रदेश )से हैं , ओर सोशल मीडिया में सम-सामयिक विषयों पर अपनी क़लम चलाते रहते हैं ।