पाकिस्तान के कब्ज़े वाले जम्मू और कश्मीर (पीओके) में भारतीय फौज द्वारा सितंबर 2016 में किए गए ”सर्जिकल हमले” के बाद आतंक-संबंधी मौतों में एक साल के भीतर 31 फीसदी का इजाफा हुआ था। यह आंकड़ा इंडियास्पेन्ड डॉट कॉम ने हमले की पहली बरसी पर सितंबर 2017 में जारी किया था, लेकिन पिछले पांच साल की अवधि में राज्य में हुई मौतों के ताज़ा आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं।
ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार जम्मू और कश्मीर में 2017 में आतंक से हुई मौतों की संख्या 2013 के मुकाबले तकरीबन दोगुना हो गई है। पिछले साल यहां कुल 358 मौतें हुई थीं जो 2013 में हुई कुल 181 मौतों से 98 फीसदी ज्यादा है। यह तस्वीर दिल्ली की संस्था इंस्टिट्यूट फॉर कनफ्लिक्ट मैनेजमेंट के साउथ एशियन टेररिज़्म पोर्टल से लिए गए डेटा के आधार पर इंडियास्पेन्ड के विश्लेषण से उभरी है।
ध्यान रहे कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की बहुमत वाली सरकार 2014 में आई। उससे पहले केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार थी। विडम्बना यह भी है कि खुद जम्मू और कश्मीर में 2014 से भाजपा और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की मिलीजुली सरकार है। बावजूद इसके 2013 (20) के मुकाबले 2017 (57) में मारे गए नागरिकों की संख्या करीब तीन गुना है। रिपोर्ट कहती है कि इसी अवधि में मारे गए आतंकवादियों की संख्या भी दोगुना हुई है- 2013 में 100 आतंकवादी मारे गए थे जबकि 2017 में 218 मारे गए।
रिपोर्ट कहती है कि ज्यादा आतंकियों के मारे जाने के बावजूद स्थिति यह बनी हुई है कि पिछले दिनों आतंकी सुजवान सैन्य शिविर पर हमला करने में कामयाब हो गए जिसमें छह सैन्यकर्मी, एक नागरिक और तीन आतंकवादी मारे गए।
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच साल में आतंकियों के हाथों कुल 324 सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई है। ध्यान देने वाली बात है कि यूपीए सरकार के आखिरी दिनों में 2013 में 61 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे लेकिन केंद्र में भाजपा के बहुमत वाली सरकार के तीन साल बीत जाने के बाद 2017 में मारे गए सुरक्षाकर्मियों की दर 36 फीसदी बढ़ कर 83 पर पहुंच गई।
इन आंकड़ों को समग्रता में देखें तो पता चलता है कि केंद्र में भाजपा की एकछत्र सरकार और जम्मू व कश्मीर में भाजपा की गठबंधन सरकार के दौर में राज्य में सुरक्षा की स्थिति और गंभीर हुई है।
एक अच्छी बात यह है कि 2016 के मुकाबले 2017 में मौतों के आंकड़ों में कुछ सुधार देखने में आया है। 2017 में मारे गए 83 सुरक्षाकर्मियों के मुकाबले 2016 में 88 मारे गए थे यानी साल भर में यह दर 6 फीसदी कम हुई है। आतंकियों के मारे जाने की दर इस अवधि में 32 फीसदी बढ़कर 165 से 218 पर पहुंच गई।
साभार indiaspend.com