मीडिया द्वारा मचाया गया झूठमूठ का शोर देश के लिए और नागरिक के लिए भी कितना घातक हो सकता है , इसे हमने पिछले कुछ हफ्तों में अच्छी तरह देखा है .लेकिन मीडिया की चालाक चुप्पी भी उतनी ही विनाशकारी हो सकती है . इस पर हमारा ध्यान कम जाता है .
असल में , मीडिया की बेईमानी के ये दो तरीके हैं . सचाई का गला घोटने और झूठ को सच बना देने के कारोबार के लिए इन दोनों तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है . लोकतंत्र का स्तम्भ समझे जाने वाले मीडिया को फासीवाद के गुम्बद में बदल देने केलिए दोनों तरीकों का बखूबी इस्तेमाल किया जाता है .
क्या आपने आज कुछ अखबारों में छपी इस खबर पर ध्यान दिया कि विशेष अदालत ने सीबीआई द्वारा फ्रीज़ किए गये एंडेवर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के बैंक खातों को चालू करने के आदेश दे दिए हैं ? ध्यान देते भी कैसे ? यह खबर इन्डियन एक्सप्रेस और हिंदू जैसे अखबारों को छोडकर न कहीं छपी , न किसी चैनल पर दिखाई गई .
आप सब को राजेंद्र कुमार की याद होगी . अरविन्द केजरीवाल के प्रधान सचिव , जिन के दफ्तर पर सीबीआई ने छापा डाला था . केजरीवाल ने इसे अपने ऊपर किया गया अनैतिक राजनैतिक हमला माना था. बिना किसी आधार और सबूत के प्रधानमंत्री के इशारे पर मुख्यमंत्री के दफ्तर पर डाला गया सीबीआई का छापा . उन्होंने यह भी कहा था कि यह छापा असलियत में उन फाइलों को तलाशने की ख़ातिर मारा गया , जिनमें अरुण जेटली के कार्यकाल में डीडीसीए में हुए व्यापक घोटालों के कागज मौजूद थे . डीडीसीए घोटालों के आरोप की ताईद कीर्ति आज़ाद जैसे भाजपा नेताओं ने भी की . इसके बाद चली बयानबाजी का जवाब देते हुए अरुण जेटली ने केजरीवाल समेत छह आप नेताओं के खिलाफ़ मानहानि का मुकदमा किया . इस मामले में कल ही अदालत द्वारा सभी को जमानत भी मिल गई.
आपने दिसम्बर महीने में हफ्तों तक राजेन्द्र कुमार के ऑफिस पर सीबीआई के छापों की कहानी सभी चैनलों पर सुनी थी. खबरों और बहसों में राजेन्द्र कुमार को बार बार केजरीवाल का ‘भ्रष्ट अधिकारी’ बताया जाता रहा था . उनकी तस्वीरें दिखाई जाती रही थीं . लेकिन आज जब उस केस के प्रसंग में सीबीआई को बार बार कोर्ट की फटकार सुननी पड़ रही है , तब यह खबर आप तक नहीं पहुँच रही . चैनलों पर सन्नाटा छाया हुआ है .
जरा सोचिए , एक कर्मठ ,ईमानदार और दक्ष अधिकारी की खिलाफ़ सीबीआई कार्रवाई करती है . आरोप है कि राजनीतिक दबाव में करती है . लेकिन सरकार-भक्त चैनल तत्काल इसे परम सत्य मान भी लेते हैं , और इसी रूप में देश भर में प्रचारित भी करते हैं.एक निष्कलंक और समर्पित नागरिक की सरेआम चरित्र-हत्या की जाती है . खबरें चलती हैं , बहसें होती हैं , फीचर तैयार किए जाते हैं . और उस व्यक्ति के सम्मान को फांसी दे दी जाती है , जो अपना बचाव तक करने की स्थिति में नहीं है .
और जब ऐसे तथ्य सामने आते हैं, जिनसे इस चरित्र हनन का झूठ उजागर और साबित होता है , तब उसे छुपा लिया जाता है . खबर बड़ी खामोशी से निगल ली जाती है . इस तरह एक सच्चा इंसान करोडो देशवासियों के मन में भ्रष्ट और अपराधी बना रहता है .और इस भीषण अन्याय और अदृश्य किन्तु असीम हिंसा के कसूरवार हंसते , मुस्कुराते , चीखते -चिल्लाते , मूंछों पर ताव देते नए शिकार की तलाश में निगल जाते हैं .
सीबीआई के मुताबिक़ एंडेवर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड राजेन्द्र कुमार की वह मनपसन्द कम्पनी है , जिसे लाभ पहुंचाने के लिए उन्होंने गलत तरीके से कुछ ठेके दिलवाए थे . जज अजय कुमार जैन ने फैसले में कहा कि तीन महीने बाद भी सीबीआई ऐसा कोई आधार नहीं पेश कर सकी है , जिससे ठेकों के आवंटन और क्रियान्वयन में किसी गड़बड़ी की आशंका हो . इतना ही न. हीं , जज ने यह भी कहा कि सीबीआई ने आज तक ऐसा कोई बयान भी दाखिल नहीं किया कि ठेकों के लिए कम्पनी की ओर से किसी को रिश्वत दी गई .सीबीआई ने उलटे यह कहा कि खुद कम्पनी को कुछ अनुचित कमीशन दिलवाया गया , लेकिन स्पष्ट नहीं बताया कि कितना. यह तक नहीं बताया कि वह कमीशन किस लिहाज से बेहतर है .
यह कोर्ट द्वारा सीबीआई को दिया गया बड़ा झटका है . इससे राजेन्द्र कुमार के खिलाफ़ सीबीआई के छापे की पूरी कहानी ही झोल से भरी हुई लगने लगती है .
इस मामले में कोर्ट ने सीबीआई एक बार नहीं , बार -बार फटकार लगाई है . इसके पहले कोर्ट ऐसे ही आरोप झेल रही एक और कम्पनी लक्ष्मी इंटरप्राइजेज़ के फ्रीज़ किए गए खाते भी खुलवा चुकी है . कोर्ट ने सीबीआई को छापे में जब्त किए गये कागज़ात लौटाने के आदेश भी दिए थे . इस केस में आधारभूत कमजोरी , तथ्यों और सबूतों की कमी आदि के चलते कोर्ट की नाराजगी इस हद तक रही उस ने सीबीआई का मज़ाक उड़ाते हुए यह तक कहा कि सीबीआई के पास ऐसी कोई ‘दिव्य शक्ति’ नहीं है , जो उसे किसी सम्मानित नागरिक के साथ ऐसा अपमानजनक खेल खेलने की इजाजत देता हो . पहले यह भी कहाथा कि साफ़ दिखाई दे रहा है कि सीबीआई बगैर किसी तैयारी के, बेहद जल्दबाजी में , इस केस में कूद पड़ी है .
लेकिन हर मिनट न्यूज़ ब्रेक करने वाले और बहसों में पेशेवर बहसियों की नाक काटने वाले चैनल ऐसी न्यूज़ चुपचाप निगल जाते हैं , जिनसे उनके द्वारा फैलाए गए किसी झूठ की कलई खुलती हो !
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापक और हिंदी के प्रतिष्ठित युवा आलोचक हैं।)