बीजेपी को बस मुस्लिम नज़र आते हैं जबकि असम में लाखों हिंदू भी ‘घुसपैठिए’ हो गए !



 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रनेता श्याम कृष्ण इलहाबाद हाईकोर्ट में वक़ालत करते हैं। फ़ेसबुक पर गंभीर विमर्श करते हैं। टिप्पणियाँ धारदार होती हैं। लेकिन असम में नागरिकता को लेकर चल रहे बवाल को लेकर उन्होंने जो लिखा है, वह बताता है कि इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीतिक रोटियाँ सेकने की कोशिश कितनी भारी पड़ सकती है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, इसे जिस मज़बूती से हिंदू-मुस्लिम मसला बनाने में जुटे हैं, वह ज़मीनी सच्चाइयों से बिलकुल उलट है। देखते ही देखते ऐसे लाखों लोग बीजेपी के मंच से घुसपैठिये क़रार दिए जा रहे हैं जिनके परिवार को वहाँ रहते सदी बीतने को है।

इनमें मुस्लिम ही नहीं, हिंदू भी हैं। नीचे श्यामकृष्ण की दो टिप्पणियाँ हैं जिनसे पता चलता है कि वहाँ हो क्या रहा है। रजिस्टर में भाइयों का नाम है लेकिन बहुएँ विदेशी हो गई हैं…

 

 

श्याम कृष्ण ये भी याद दिलाते हैं कि कैसे असम में आंदोलन सिर्फ़ बांग्लादेशी घुसपैठियों के ख़िलाफ़ नहीं, बिहारियों और मारवाड़ियों के ख़िलाफ़ भी था। उन्हें भगाने के लिए भी ज़ुल्म ढाए गए..

 

 

इस पूरे मसले पर आज इंडियन एक्सप्रेस में आज एक महत्वपूर्ण स्टोरी छपी है। युवा पत्रकार दिलीप ख़ान ने इसका बिंदुवार अनुवाद किया है। इसे पढ़ें और समझे कि असम में चल क्या रह है—

 

NRC और नागरिकता

 

1. इंडियन एक्सप्रेस ने आज पहले पन्ने पर स्टोरी की है कि कैसे एक ही परिवार के एक भाई का नाम सूची में है और दो ग़ायब हैं. मेरे साथ काम करने वाली एक दोस्त के साथ भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ है. भाई का नाम है, उसका ग़ायब है.

  1. पूर्व विधायक तक का नाम सूची में नहीं है. इनमें कितने हिंदू हैं कितने मुसलमान इसकी गिनती नहीं हुई है. अनुमान है कि हिंदुओं की संख्या लाखों में है.
  2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई ज़बरिया कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. बीजेपी जिस तरह बिहेव कर रही है उससे लग रहा है कि पूरे मामले को असम बनाम अवैध ‘मुस्लिम घुसपैठिया’ बनाने में वो जुटी है.
  3. कैलाश विजयवर्गीय ने फट से कह दिया कि पश्चिम बंगाल में भी ऐसा होना चाहिए. उसे शायद असम अकॉर्ड का पता नहीं है.
  4. NRC की प्रक्रिया शुरू करने में सरकार को दशक भर लग गए. जिनका नाम छूटा है उनको महीना भर मिल रहा है.
  5. दूसरे ड्राफ्ट के बाद असम में 40 लाख लोग बच गए, लेकिन 2016 में राज्यसभा में सरकार ने “इनपुट के आधार पर” ये बताया था कि असम में 50 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं. भाषणों में तो बीजेपी वाले झूठ बोलते ही रहते हैं, संसद में भी ‘इनपुट’ के आधार पर डेटा देने लगे हैं.
  6. मोदी सरकार ने इस बीच नागरिकता संशोधन विधेयक लाकर बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता देने का एक रास्ता खोज निकाला. टारगेट मुस्लिम हैं. इसलिए जैसे-तैसे पूरी चाहत है कि मुद्दा हिंदू बनाम मुस्लिम बन जाए.
  7. इसी NDA सरकार के दौरान भारत-बांग्लादेश के बीच लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट हुआ. लागू भी हो गया. उसमें ज़मीन की अदलाबदली हुई. जो ज़मीन भारत के हिस्से में आई, वहां रहने वाले हज़ारों लोग अब भारत के नागरिक बन गए. लेकिन अमित शाह असम वाले मुद्दे को ‘सुरक्षा’ का मुद्दा बनाकर पेश कर रहे हैं.
  8. डी वोटर (डाउटफुल वोटर) असम का एक चर्चित टर्म है. ‘इनपुट’ का मानना है कि इनकी संख्या ढाई लाख है.
  9. चालीस लाख में ज़्यादातर लोगों के नाम 2018 के अंत तक सूची में आ जाएंगे, ये बीजेपी भी जानती है. 2019 के लिए बंगाल और पूर्वोत्तर में उसे डिसकोर्स का एक बड़ा मुद्दा मिल गया.
  10. हिम्मत है तो इन 40 लाख को अमित शाह अवैध घोषित करवा दें.
  11. जो कांग्रेसी अभी पिलपिला रहे हैं उन्हें गीली बेंत से पीटना चाहिए। सब उन्हीं का बोया है. NRC, आधार. सब. सत्ताधारी पार्टी अपनी सुविधा से भुना रही है.