भारतीय जनता पार्टी के नेता और पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद शनिवार दोपहर उनका निधन हो गया। दिल्ली युनिवर्सिटी में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की छात्र राजनीति से करियर शुरू करने वाले जेटली ने भारत की सियासत में लंबा सफ़र तय किया और आम तौर पर विवादों से परे रहे।
इसके बावजूद 2013 में एक ऐसा मसला था जिसके चलते कुछ समय के लिए वे विवादों में आते-आते रह गए थे। इस संबंध में वे अपनी पार्टी बीजेपी के ऊपर एक वाजिब सवाल छोड़ गए हैं जिसे आधार के खिलाफ लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण ने ट्विटर पर उठाया है।
Why has BJP removed Arun Jaitley's article from its website that talked about threats in the era of UID/Aadhaar Number. https://t.co/MhDg14DVrT
His prophetic article is remains available at https://t.co/Rw6Vwk7kaG— gk (@krishna1715) August 24, 2019
पूरा मामला समझने के लिए 2013 में हुई घटना को याद करना ज़रूरी है।
बात 2013 की है जब दिल्ली पुलिस जेटली के मोबाइल फोन की जासूसी कर रही थी। इस बारे में कई खबरें भी छपी थीं। उन्होंने एक लेख लिखकर इसके बारे में पूरी जानकारी दी थी कि कैसे दिल्ली पुलिस के अधिकारी उनसे इस सिलसिले में दो बार मिले। इस लेख में उन्होंने निजता के अधिकार की रक्षा करने के संबंध में कुछ बातें कही थीं और खासकर सांसदों व पत्रकारों के फोन कॉल रिकॉर्ड पर पुलिस की निगरानी पर सवाल उठाये थे।
फोन कॉल रिकॉर्ड की जासूसी पर बात करते हुए लेख के अंत में उन्होंने आधार प्रणाली पर कुछ सवाल उठाये थे और अपने मन का डर साझा किया था। उन्होंने लिखा था:
”यह घटना एक और वाजिब डर पैदा करती है। आज हम आधार संख्या के नये दौर में प्रवेश कर रहे हैं। सरकार ने कई गतिविधियों के लिए आधार संख्या होने को अनिवार्य बना दिया है- विवाह के पंजीकरण से लेकर ज़मीन-जायदाद के कागज़ात तक। जो लोग दूसरे के मामलों में ताकझांक करते हैं, क्या वे अब इस प्रणाली के सहारे दूसरे के बैंक खातों और अन्य ज़रूरी विवरणों का पता भी लगा सकेंगे? यदि कभी ऐसा मुमकिन हुआ तो इसके नतीजे बहुत भयंकर होंगे।”
अरुण जेटली का यह लेख आज भी एनडीटीवी की वेबसाइट पर पढ़ा जा सकता है। इस लेख को भारतीय जनता पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडिल से 18 अप्रैल, 2013 को ट्वीट किया था और लिंक बीजेपी की वेबसाइट का लगाया था। इसका मतलब कि लेख जहां छपा था (17 अप्रैल को एनडीटीवी की वेबसाइट पर), वहां से उसे उठाकर भारतीय जनता पार्टी की वेबसाइट पर लगाया गया।
Article : Shri Arun Jaitley on "My Call Detail Records and A Citizen’s Right to Privacy".
Read complete article at http://t.co/HBBFpiCvq8.
— BJP (@BJP4India) April 18, 2013
आज बीजेपी के किए ट्वीट में दिए लिंक पर जाएं तो बेशक बीजेपी की आधिकारिक वेबसाइट ही खुलती है लेकिन 404 Error दिखाता है, लेख वहां से नदारद है। ट्वीट बेशक आज भी मौजूद है। यह लेख एनडीटीवी की वेबसाइट पर जस का तस है।
इससे साफ़ समझ आता है कि नरेंद्र मोदी की सरकार बनने से ठीक पहले तक अरुण जेटली को खुद आधार प्रणाली पर संदेह था और वे इस बात से चिंतित थे कि आधार के दौर में लोगों की निजता को खतरा पैदा हो सकता है। चूंकि फोन जासूसी की घटना उनके साथ हुई थी इसलिए यह डर निजी अनुभव पर आधारित था।
इस घटना के अगले साल ही मोदी सरकार आयी और जेटली वित्तमंत्री बन गए। प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार जब आधार के समर्थन में बयान दिया, उससे ठीक चार दिन पहले आधार अथॉरिटी के चेयरमैन नंदन निलेकणि ने मोदी और जेटली से मुलाकात की थी और उनहें आधार प्रणाली को जारी रखने के लिए राज़ी किया था। यह बैठक 1 जुलाई 2014 को हुई थी। इसके चार दिन बाद 5 जुलाई को मोदी ने आधार के तहत यथाशीघ्र 100 करोड़ के पंजीकरण लक्ष्य की बात करते हुए यह साफ़ कर दिया कि नयी सरकार को आधार से कोई दिक्कत नहीं है। यह भाजपा और नरेंद्र मोदी का सत्ता में आते ही शुरुआती यू-टर्न था।
इसी यू-टर्न का नतीजा रहा कि आधार के खतरों और निजता की रक्षा पर साल भर पहले लिखा जेटली का लेख भाजपा की वेबसाइट से हटा लिया गया और किसी को कानोकान खबर तक नहीं हुई। जाहिर है, जेटली भी अब निजता को आधार से संभावित खतरे पर निलेकणि से मुतमईन हो गए थे। इसकी झलक हमें दो साल बाद राज्यसभा में आधार पर हुई बहस में देखने को मिली।
मार्च 2016 में बजट सत्र के आखिरी दिन आधार बिल पर राज्यसभा में सीपीएम के सीताराम येचुरी के साथ हुई बहस में जेटली ने पूरा यू-टर्न करते हुए कहा था, ”निजता का अधिकार निरपेक्ष नहीं है। सुप्रीम कोर्ट निजता के मसले को देख रहा है। कानूनी प्रक्रिया से इसे प्रतिबंधित किया जा सकता है।”
निजता और आधार के मुद्दे पर अप्रैल 2013 में लिखे लेख से मार्च 2016 में पूरी तरह उलट जाना जाहिर है सत्ता में नहीं होने और सत्ता में होने का फ़र्क दिखलाता है। एनडीटीवी की वेबसाइट पर आज भी मौजूद उनका लेख इसकी तसदीक करता है।