बटला हाउस की दीवारें कुछ कह रही हैं…



‘दीवारों के भी कान होते हैं’- इस प्रचलित मुहावरे से इतर एक सच्चाई यह है कि दीवारों के जुबान भी होती है। दीवारों पर लिखी इबारत समय की सच्चाई को अभिव्यक्त करती है। दिल्‍ली के मुस्लिम बहुल इलाके बटला हाउस के आसपास की दीवारों पर आजकल एक नारा लिखा दिख रहा है- ‘हिन्द मेरा भी घर है’। दिल्ली जैसे विशाल महानगर में बटला हाउस एक दड़बाई रिहाइश है जिसे एक एनकाउंटर के चक्‍कर में पूरा देश कुछ साल पहले जान चुका है।

यहां की दीवारों पर इस इबारत का होना सामान्‍य बात नहीं है। यह एक ‘क्‍लेम’ है, दावा है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के मन में उपजी असुरक्षा की भावना की गवाही यह इबारत देती है।

यह भावना एक या दो दिन में किसी समुदाय के भीतर नहीं उपजती है। इसमें खासा लम्बा वक्त लगता है। दुनिया की समकालीन राजनीति का केंद्रीय नैरेटिव आज से अठारह साल पहले अमेरिका में जुड़वा इमारतों पर हुए आतंकी हमले के बाद अचानक पलटा था। तब अमेरिका ने घोषणा की थी कि जो उसके साथ नहीं है, वह उसका दुश्‍मन है। इस ऐतिहासिक हादसे के बाद बहुत दिन नहीं बीते जब गुजरात में 2002 की फरवरी में गोधरा की घटना हुई और उसके बाद महीने भर तक मुसलमानों मरते-खपते रहे। समकालीन भू-राजनीति में जो जगह अमेरिकी हमले की है, भारतीय राजनीति में वही जगह 2002 की है। इन दोनों न मिलकर ग्‍लोबल और लोकल नैरेटिव गढ़ा, जो आज की तारीख में जवान हो चुका है।

इस नैरेटिव की तह में मौजूद घटनाओं से पैदा हुए चेहरे आज हमारी राष्‍ट्रीय राजनीति के नायक बन चुके हैं। अल्‍पसंख्‍यकों में असुरक्षा का जो बीजारोपण एनडीए के पहले कार्यकाल में हुआ था, वह 2014 में फलदार पेड़ बन गया और 2019 के जनादेश के बाद इसके फल पक चुके हैं। इंडियास्पेंड के आंकड़े के मुताबिक 2010 से 2017 के बीच मॉब लिंचिंग यानी भीड़ के हमले में मारे जाने वाले लोगों की संख्‍या 28 रही, जिनमें 24 मुसलमान थे। इनमें 97 फीसद घटनाएं 2014 के बाद हुई है।

इन आंकड़ों को देखिए, मारे जाने वालों की पहचान एक दिखेगी। क्या पहलू खान के परिवार वालों ने कभी सोचा होगा पहलू को उनकी पहचान के आधार पर मार दिया जाएगा? देश को बनाने में, तिनका-तिनका जोड़ने में पहलू खान के पुरखों का भी उतना ही योगदान है जितना कि किसी अक्षय, अमित या अर्जुन के पुरखों का। आज उनके योगदान को सिरे से खारिज कर दिया गया है। एक समुदाय को दीवार से सटा दिया गया है। ऐसे ही वक्‍त में लोग चीखते हैं, चिल्लाते हैं, अपना हक मांगते हैं। बटला हाउस की दीवारों पर लिखे शब्द चीख-चीख कर कह रहे हैं कि हमें अपने घर में दोयम दर्जे का बनकर नहीं रहना है।

अभी बीते लोकसभा चुनाव में विकास के मुद्दे को बीजेपी ने ताक पर रख दिया और हिंदू राष्ट्रवाद के नाम पर चुनाव लड़ा। बीजेपी के राष्ट्रवाद का सीधा अर्थ बहुसंख्यकवाद है। चूंकि बहुसंख्‍यक हिंदू हैं, लिहाजा मौजूदा राष्ट्रवाद का मतलब बहुसंख्‍यक हिन्दू राज है। इसका प्रमाण पिछले पांच साल के दौरान हुई घटनाओं में देखा जा चुका है। इसी बहुसंख्यकवाद का डर आज दीवारों पर लिखी इबारतों में शाया है।

अभी मीडिया में एक वीडियो आया था। उस वीडियो में कुछ उत्साही युवा अयोध्या मे डीजे बजा कर नाच रहे हैं। नारे लगा रहे हैं, ‘’जब कटवे काटे जाएंगे, तब राम राम चिल्लाएंगे।“ जरा सोचिए, आपके मोबाइल स्क्रीन पर यह वीडियो चल रहा हो और वीडियो में जिनको काटे जाने की बात की जा रही उनमें आप आते हों। ऐसे में क्या आपके मन में देश में पराया किये जाने का भाव नहीं बैठेगा? फिर आप क्या करेंगे, किसको सुनाएंगे अपना डर, जब कोई सुनने वाला ही नहीं होगा? आप इसी तरह किसी दीवार को चुनेंगे। दीवार सुनेगी तो नहीं लेकिन आपकी चीख-पुकार को खुद से बांध लेगी, ताकि दूसरे देख और सुन सकें। बटला हाउस के आसपास की दीवारें आजकल यही काम कर रही हैं। दीवारें कुछ कह रही हैं। अफ़सोस कि सुनने वाला कोई नहीं है। देखने वाला कोई नहीं है।

इस डर का इतिहास अमेरिका के 9/11 से भी कोई एक दशक पुराना है, जब भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में भेजे जा चुके वरिष्‍ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन के दौरान रथयात्रा निकाली थी। उस वक्‍त दीवारों पर लिखा होता था, “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं”। व‍ह गर्व अब दीवारों से निकलकर सत्‍ता में साकार हो चुका है तो दीवारों ने भी अपनी जुबान बदल ली है। दीवारों के जुबान होती है, बस देखने की सलाहियत होनी चाहिए कि दीवार से सटा हुआ कौन है। ‘हिन्द मेरा भी घर है’ इस देश के मुसलमानों की केंद्रीय अभिव्यक्ति है, जिन्‍हें दीवार तक धकेला जा चुका है। यह डर और विवशता का मिश्रित आर्तनाद है। कभी बटला हाउस जाएं तो अगल-बगल ज़रूर देखें। दीवारों से एक पहचान झांक रही है।