बीते वर्ष जम्मू में कठुआ में आठ वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार और बाद में उसकी हत्या के बाद देश भर में जैसा माहौल बना था, ठीक उसी तरह का तनावपूर्ण माहौल इस बार अलीगढ़ की घटना के बाद पैदा किया गया है. कठुआ और अलीगढ़ के बीच जाने कितनी बच्चियां मारी गईं, कितनों का शील भंग हुआ लेकिन ऐसा माहौल नहीं बना. इसीलिए मैं कह रहा हूं कि यह माहौल बना नहीं, बनाया गया है जिसके पीछे एक खास किस्म की राजनीति काम कर रही है जो बलात्कारी का धर्म देखकर अपनी नैतिकता का पैमाना तय करती है. आइए, इस राजनीति को समझने के लिए थोड़ा विस्तार में चलते हैं.
10 जनवरी 2018: कठुआ ज़िले के रसाना गांव की आठ साल की बकरवाल लड़की अपने घोड़ों को चराने गई थी और वापस नहीं लौटी. इसको लेकर एक मामला दर्ज किया गया था जिसके बाद पुलिस और स्थानीय बकरवालों ने लड़की को खोजना शुरू कर दिया. 17 जनवरी को जंगल के इलाके में झाड़ियों से उसका शरीर मिला जिस पर गहरी चोटों के निशान थे. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि हत्या से पहले उसको नशीली दवाइयां दी गई थीं और उसका बलात्कार किया गया था. पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ़्तार किया और एक बड़ी बात ये सार्वजनिक हुई कि ये सिर्फ़ अपनी हवस को पूरा करने की एक आपराधिक घटना नहीं थी बल्कि एक रिटायर्ड राजस्व अधिकारी की सोची समझी साज़िश थी जो एक स्थानीय मंदिर का पुजारी भी था.
जम्मू और कश्मीर पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जांच के बाद आठ लोगों को साज़िश, अपहरण, बलात्कार और हत्या के मामले में गिरफ़्तार किया था. उस घटना को बीजेपी के कुछ नेताओं और साथ ही महबूबा मुफ़्ती सरकार के कुछ मंत्रियों ने सांप्रदायिक रंग दे दिया. 9 अप्रैल 2018 को जब क्राइम ब्रांच के अधिकारी कठुआ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में चार्जशीट दायर करने गए तब वकीलों के एक समूह ने उपद्रव किया और अधिकारियों को चार्जशीट दायर करने से रोका था. कठुआ के वकील इस अनुचित और अनैतिक काम की आलोचना करने की जगह जम्मू बार एसोसिएशन द्वारा 11 अप्रैल को बुलाए गए जम्मू बंद में शामिल हो गये. इतना ही नहीं, अपराधियों के बचाव में निकली रैली में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर की (भाजपा-पीडीपी) सरकार में शामिल रहे भाजपा के दो वन मंत्री चौधरी लाल सिंह और उद्योग मंत्री चंद्र प्रकाश शामिल हुए थे. बाद में दोनों मंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया था.
अब डेढ़ साल बाद अलीगढ़ में पिता द्वारा लिया गया 10 हजार रुपए के कर्ज़ को न चुका पाने के कारण ढाई साल की मासूम बच्ची को अगवा कर दरिंदगी से हत्या की घटना ने हमारे समाज को एक बार फिर से शर्मसार कर दिया है. विडंबना यह है कि इस बार भी कठुआ की ही तरह हमारा समाज बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराध के प्रति गंभीर और संवेदनशील होने के बजाय धार्मिक चश्मे से घटना को देख रहा है. अलीगढ़ में अपराधियों की अलहदा धार्मिक शिनाख्त होते ही खतरनाक साम्प्रदायिक खेल शुरू हो गया. भाजपा आईटी सेल इस घटना को हिन्दू बनाम मुसलमान का रंग देने मेंकोई कसर नहीं छोड़ी. धर्म के चश्मे से घटना को देखने वालों ने कभी उन्नाव के बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर- जो रेप का आरोपी है- उसे ट्रोल नहीं किया. जेल में बंद इसी विधायक से उन्नाव से सांसद साक्षी महाराज अभी जेल में मिलने और चुनावी कामयाबी के लिए शुक्रिया कहने गये थे.
ध्यान दीजिएगा कि यहां एक दल विशेष और विचारधारा विशेष के लिए बलात्कार ‘’चुनावी कामयाबी’’ का बायस है और कानून बनाने वाला जनप्रतिनिधि बलात्कारी का शुक्रगुज़ार है. देश में आज धार्मिक और जातिगत ध्रुवीकरण इस हद तक फैल गया है कि अपराधी की पहचान उसके धर्म और जाति से होने लगी है.
मंदसौर काण्ड याद है आपको?
जून 2018 में मध्य प्रदेश के मंदसौर में सात साल की बच्ची के साथ बलात्कार के बाद इरफान और आसिफ का केस लड़ने से वकीलों ने मना कर दिया था और जब अदालत ने दोनों को फांसी की सज़ा सुनाई, तब उनके शवों को दफ़नाने के लिए कब्रिस्तान में जमीन भी नहीं दी गई थी. निर्भया काण्ड जैसे दर्दनाक इस मामले में मंदसौर के किसी व्यक्ति या नेता ने दोषियों का साथ नहीं दिया न ही उनके बचाव में कोई तिरंगा यात्रा निकाली गई थी. निठारी कांड याद है आपको? पूरे देश को झकझोर देने वाले नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड में आरोपी मनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली किस धर्म से थे?
हमारे समाज को बच्चों के प्रति जितना संवेदनशील होना चाहिए था वह नहीं हुआ और परिणामस्वरूप हमारा समाज बच्चों और महिलाओं के लिए असुरक्षित होता चला गया. दिल्ली की निर्भया काण्ड के बाद कानून में जो बदलाव किये गये उसके बाद महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध में कमी की जगह इजाफ़ा हुआ है. उसी तरह मध्य प्रदेश में नाबालिग से बलात्कार पर फांसी की सजा का कानून बनने के बाद भी वहां लगातर बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं. इसका मतलब साफ़ है कि केवल कानून बना देने से अपराध कम नहीं होंगे. मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह रेप कांड में किस धर्म और जाति के लोग शामिल पाए गये हैं? इस मामले के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर की वीभत्स हंसी वाले चेहरे को याद कीजिये याद कीजिये. उसका धर्म और जाति क्या पाते हैं? इस आदमी ने कितनी बच्चियों की जिन्दगी बर्बाद की है? याद है? बिहार में किसकी सरकार है?
बीते 6 जून को गुजरात में 20 दिन की एक बच्ची को कुछ असामाजिक तत्वों ने लाठी से मार डाला. यहां बच्ची की जान जाने का दुःख प्रकट करें या पहले हत्यारों की पहचान उनके धर्म और जाति से कर समाज में नफ़रत का और उन्माद पैदा करें?
अलीगढ़ में ढाई साल की टि्वंकल शर्मा की बर्बर हत्या का आक्रोश अभी थमा नहीं है कि हमीरपुर में 10 साल की एक बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या का मामला सामने आया है. शनिवार की सुबह बच्ची का शव गांव से बाहर नग्न अवस्था में श्मशान में मिला है. मेरठ के खरखौदा भी भी रेप के विरोध करने पर 9 साल की एक बच्ची की हत्या की ख़बर है. धर्म और जाति के पुछल्ले से अपराधी की पहचान करने वालों ने यहां वितडा खड़ा क्यों नहीं किया? क्या हमारी नैतिकता धर्म और जाति से बंधी हुई है कि हमें अलीगढ़ और कठुआ पर तो दर्द होता है लेकिन हमीरपुर और मेरठ पर हम चुप मार जाते हैं?
बीते मई में राजस्थान के कई जगह से बच्चियों के बलात्कार की घटनाएं सामने आई थी. इनमें से अलवर के मामले में तो एक आरोपी की पीड़िता के परिजनों द्वारा की गई कथित पिटाई में मौत भी हो गई. पुलिस का कहना है कि अलवर के हसरौरा में तीन किशोरों ने गांव में अपने एक रिश्तेदार की शादी में आई बच्ची से कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया. घटना 14 मई की है. वहीं धौलपुर जिले के खुर्द गांव में आठ साल की एक बच्ची से दुष्कर्म की घटना सामने आई. चित्तौड़गढ़ जिले में एक 5 साल की बच्ची से बलात्कार की ख़बर आई थी. यहां किसी की भावना आहत नहीं हुई?
Anil Kayal, SP, Chittorgarh: A case has been registered in connection with rape with a 5-yr-old. Medical examination of the child has been done, her condition is stable. One suspect has been identified&further probe is underway. It is an unfortunate incident. (8.05.19) #Rajasthan pic.twitter.com/hBSlDeK6T1
— ANI (@ANI) May 9, 2019
भारत में 2001 से 2016 के बीच बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों में 500 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज़ की गई. सोलह साल में बच्चों के प्रति अपराध 10,814 से बढ़कर 1,06,958 हो गए. राजधानी दिल्ली में ही ये अपराध 2001 में 912 से बढ़कर 2016 में 8,178 हो गए. कर्नाटक में ऐसे दर्ज अपराधों की संख्या 72 से बढ़कर 4,455 (6088 प्रतिशत), ओडिशा में 68 से बढ़कर 3,286 (4732 प्रतिशत), तमिलनाडु में 61 से बढ़कर 2,856 (4582 प्रतिशत), महाराष्ट्र में 1,621 से बढ़कर 14,559, उत्तर प्रदेश में 3,709 से बढ़कर 16,079 (334 प्रतिशत) और मध्यप्रदेश में 1,425 से बढ़कर 13,746 (865 प्रतिशत) हो गए.
2001 से 2016 के बीच के सोलह वर्षों में भारत में बच्चों के बलात्कार और यौन अपराध के कुल 1,53,701 मामले दर्ज किए गए. जहां बच्चों से बलात्कार और गंभीर यौन उत्पीडन (पॉक्सो के तहत) सबसे ज़्यादा मामले दर्ज हुए हैं, उनमें मध्य प्रदेश (23,659-15%), उत्तर प्रदेश (22,171-14%), महाराष्ट्र (18,307-12%), छत्तीसगढ़ (9,076-6%) और दिल्ली (7,825-5%) शामिल हैं.
इतने मामलो ंपर तो पूरे समाज का खून खौल जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
भारत में यौन हिंसा से संबंधित क़ानून (पॉक्सो) 2012 में बनाया गया ताकि बाल यौन शोषण के मामलों से निपटा जा सके लेकिन इसके तहत पहला मामला दर्ज होने में दो साल लग गए. साल 2014 में नए क़ानून के तहत 8904 मामले दर्ज किए गए लेकिन उसके अलावा इसी साल नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने बच्चों के बलात्कार के 13,766 मामले; बच्ची पर उसका शीलभंग करने के इरादे से हमला करने के 11,335 मामले; यौन शोषण के 4,593 मामले; बच्ची को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला या शक्ति प्रयोग के 711 मामले; घूरने के 88 और पीछा करने के 1,091 मामले दर्ज किए.
नीचे इस ग्राफ़ को देखिये, आपके होश उड़ जायेंगे. यदि इंसानियत नाम का कोई धर्म इस समाज में बचा है तो शायद यह समाज इन आंकड़ों को देखकर हिंदू मुसलमान से ऊपर उठ सके और अपने बच्चों को बचाने के लिए हर घटना के बाद आवाज उठा सकेगा.
6-Crime against Children