“नहीं मिल रहा रेडियो को रेवेन्यू, जरूरत पड़ी तो आल इंडिया रेडियो को बेच देंगे- शहरयार”
उपरोक्त उद्गार फैय्याज शहरयार के हैं। ये मन की बात उन्होंने तब कही जब यूनियन के सदस्य सीईओ प्रसार भारती से मुलाकात का इंतजार कर रहे थे, तभी फय्याज शहरयार ने प्रसार भारती के गेट पर इस अनौपचारिक मुलाकात में यह बात कही। शहरयार आजकल आकाशवाणी के महानिदेशक हैं।
देश में ऑल इंडिया रेडिओ की पहचान इसमें कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाली आवाजों के कारण ही है यह कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी। अमीन सयानी से लेकर यूनुस खान, देवकीनंदन त्रिपाठी और कमल शर्मा, ममता सिंह, शहनाज अख्तरी, शेफाली कपूर, अमरकांत दुबे जैसी कई आवाजें आज भी श्रोताओं के दिलों पर राज करती हैं।
देश भर में आकाशवाणी के कुछ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय केन्द्रों के अलावा सैकड़ों स्थानीय केंद्र भी हैं जिनसे जुड़े करोड़ों श्रोता रोज ही मनोरंजन के साथ जानकारियां प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन इन केन्द्रों में अपनी मधुर वाणी में कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले नियमित और कैजुअल उदघोषकों की पृष्ठभूमि दर्द भरी ही रही है। जंहां नियमित उदघोषक वर्ग पदोन्नति और वेतन विसंगति से जूझ रहा है वहीं कैजुअल उद्घोषकों के नियमितीकरण की मांग के बाद, उच्च अधिकारी उद्घोषक कैडर ही खत्म कर देना चाहते हैं।
प्रसार भारती बोर्ड बनने के बाद से ही आकाशवाणी आर्थिक संकट से जूझ रहा है। कार्यक्रमों की संरचना, निर्धारण और प्रस्तुति में कार्यक्रम अधिकारियों की लकीर के फकीर वाली सोच इसके लिए जिम्मेदार रही है जिनके चलते ऑल इण्डिया रेडियो अन्य निजी एफ़एम चैनलों से मुकाबला नहीं कर पा रहा है।
आकाशवाणी के प्रसारण के गिरते स्तर का ठीकरा भी माइक पर बोलने वाले उन उद्घोषकों पर फोड़ने का प्रयास हो रहा है जिन्हें हर प्रसारण में प्रयुक्त शब्द और अदायगी भी AIR कोड और अधिकारी की पसंद के दायरे में बंध कर अपनी आवाज में पिरोने होते हैं।
जंहा निजी एफएम चैनलों में उद्घोषक अपनी काबिलियत और आइडिया का उपयोग करते हुए मशहूर आरजे बन जाता है, वहीं आकाशवाणी और दूरदर्शन के उद्घोषक विवशता भरे प्रसारण में प्रस्तुतकर्ता के तौर पर अधिकारियों के नाम पढने में ही लगे रहते हैं।
आकाशवाणी का राजस्व बढाने की सोच अच्छी है लेकिन इसके नहीं बढ़ पाने के कारणों को निष्पक्षता से तलाशने की जरुरत है। आकाशवाणी के विज्ञापन विभाग में सैंकड़ों कर्मियों की नियुक्ति की गई है। इसके बावजूद आकाशवाणी के महानिदेशक फय्याज शहरयार पुराने उद्घोषकों यानी अनुभवी और तराशी हुई आवाजों को जिम्मेदार मानते हैं। उनके अनुसार अनुभवी अनाउन्सर्स की आवाजें समय के साथ खराब हो गई हैं, पुरानी आवाजों को सुन-सुन कर कान पक गए हैं। अगर नई आवाजें आएंगी तब रेडियो की कमाई बढ़ेगी। जबकि उद्घोषक आवाज़ का कलाकार है और कलाकार तथा उसका हुनर समय और अभ्यास के साथ निखरता जाता है। लताजी, किशोरजी, रफ़ी साहब और अमीन सयानी, मनोहर महाजन जैसी आवाजों को आज भी श्रोता सुनना चाहते हैं।
शायद शहरयारजी का ध्यान इस गिरते स्तर के लिए उन अधिकारियों की ओर नहीं गया जो कार्यक्रमों के उचित विषय तलाशकर उचित संरचना, निर्माण नहीं कर पा रहे हैं। साथ ही इसके लिए निदेशालय से निर्देश जारी करते उन अधिकारियों की कार्यशैली पर भी ध्यान नहीं गया जिन्हें सरकार द्वारा रिटायर करने के बाद भी मोटी तनख्वाह पर पुनः पदस्थ कर दिया गया है। जाहिर है अगर कार्यक्रम की नीतियां अच्छी बनेंगी तो अंतिम छोर पर प्रसारित भी बेहतर होंगी।
लिहाजा अंतिम छोर पर प्रसारक उद्घोषक बदलने के बजाय रिटायर्ड सोच वाले नीति निर्धारक बदलने की दरकार अधिक है।
“मै देश नहीं बिकने दूंगा” कहने वाले प्रधानमंत्री मोदी जी के कार्यकाल में ही देश की सुरीली धड़कन आकाशवाणी को बेचने की बात सचमुच पीड़ादायक और विचारणीय है।
देश के समस्त आकाशवाणी केन्द्रों में मौजूद 20 से 25 साल के अनुभवी अनाउन्सर्स को रीस्क्रिनिंग के नाम पर बाहर किये जाने वाले आदेश को निरस्त करने की मांग लेकर 25 अक्टूबर 2017 को ऑल इण्डिया रेडिओ कैजुअल अनाउन्सर एंड कम्पियर्स यूनियन के पदाधिकारियों से अनौपचारिक चर्चा के दौरान महानिदेशक एफ शहरयार ने यह भी कहा कि “सीनियर होना ही आपका माईनस पॉइंट है” जबकि साठ साल अपनी पूरी नौकरी कर रिटायर हो चुके 75 प्रतिशत अधिकारी कर्मचारी धुर सीनियर होते हुए आकाशवाणी के विभिन्न पदों पर पुनः पदस्थ हैं। सीनियर होना इनके लिए प्लस पॉइंट है।
इस अनौपचारिक चर्चा के दौरान जब कैजुअल अनाउन्सर्स की समस्याओं पर महानिदेशक शहरयार से औपचारिक बैठक के लिए कहा गया तब उनका जवाब था, ”मैं रेडिओ जॉकी अनाउन्सर्स से बात नहीं करता।”
ज्ञात हो कैजुअल अनाउन्सर कम्पियर्स के नियमितीकरण का मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है जिसके अंतिम फैसले तक स्टेटस को बरकार रखने का आदेश सितम्बर 2016 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जारी कर रखा है। इसके बाद भी नियमितिकरण के पात्र इन कैजुअल अनाउन्सर्स और कम्पीयर की स्थिति से छेड़छाड़ करते हुए उन्हें बाहर करने तथा उनके स्थान पर नए लोगों की भर्ती के इरादे से आकाशवाणी महानिदेशालय ने 21 फ़रवरी तथा 18 अप्रैल 2017 को आदेश जारी कर दिया जिसका विरोध करते हुए नियमितिकरण के पात्र इन कैजुअल अनाउन्सर्स और कम्पीयर्स ने देश के विभिन्न 15 से अधिक न्यायालयों की शरण ली। विभिन्न कैट और उच्च न्यायालयों ने सितम्बर 2016 को सुप्रीमकोर्ट से जारी यथास्थिति को प्रभावी रखते हुए स्टेटस को का आदेश जारी किया। वहीं मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने आकाशवाणी महानिदेशालय से 21 फ़रवरी तथा 18 अप्रेल 2017 को जारी आदेश पर स्थगन आदेश दे दिया। बावजूद इसके कई केन्द्रों ने रीस्क्रिनिंग और नई भर्ती की परीक्षाएं आयोजित कीं।
तमाम अदालती आदेशों को धत्ता बताते हुए आकाशवाणी महानिदेशालय ने 23 अक्टूबर 2017 को पुनः रेडियो नेटवर्क आदेश जारी कर सभी केन्द्रों को रीस्क्रिनिंग तथा नई भर्ती परीक्षाएं एक महीने में सम्पन्न करने को कहा है जो कि सीधे-सीधे न्यायालय के आदेश की अवमानना है।
ऑल इण्डिया रेडिओ कैजुअल अनाउन्सर एंड कम्पीयर्स युनियन के पदाधिकारियों के अनुरोध पर प्रसार भारती सीईओ द्वारा औपचारिक चर्चा हेतु 25 अक्टूबर की तिथि निर्धारित की गई थी किन्तु मिलने पंहुचे पदाधिकारियों से मुलाक़ात टालते रहे।
कैजुअल अनाउन्सर्स कम्पियर्स की ट्रेड युनियन एयरकाकू के पदाधिकारियों ने बताया कि कुछ ही दिनों में देश भर के श्रोताओं को जोड़कर ”ऑल इण्डिया रेडियो नहीं बिकने देंगे” नामक अभियान चलाया जाएगा।
साथ ही आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों में ”महिला कर्मियों के साथ हो रहे यौन उत्पीडन व अत्याचार” के खिलाफ देश भर में महिला जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा।
आल इंडिया रेडियों केजुअल अनाउंसर एंड कंपेयर यूनियन (रजि.) की और से जारी संयुक्त वक्तव्य