गिरीश मालवीय
मोदीजी ने अपने विश्वस्त उद्योगपति अडानी को PPP के नाम पर छह के छह एयरपोर्ट 50 साल के लिए सौप दिए। कमाल की बात यह है कि अडानी की कम्पनी का पहले से इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है, तब भी उसे इस बोली में भाग लेने की अनुमति दी गयी। इससे पहले मूल रूप से एयरपोर्ट संचालन में सिर्फ दो कंपनी जीएमआर ग्रुप और जीवीके ग्रुप ही कार्यरत था।
बीते साल नवंबर में केंद्र सरकार ने एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया संचालित छह हवाईअड्डों के पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) आधार पर प्रबंधन के लिए एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी जिसका प्रबंधन अभी तक एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया कर रही थी। उसके कर्मचारियों ने इस सरकारी कदम का कड़ा विरोध किया। एयरपोर्ट अथॉरिटी कर्मचारी संघ ने इसके विरुद्ध भूख हड़ताल करने का फैसला भी किया था, लेकिन उनकी सुनता कौन है?
लखनऊ, जयपुर, अहमदाबाद, मेंगलुरु और त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट देश के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में हैं। 50 साल तक इन 6 एयरपोर्ट को अडानी ग्रुप अपग्रेड और ऑपरेट करेगा। इन एयरपोर्ट प्रोजेक्ट के साथ ही अडानी ग्रुप का एविएशन इंडस्ट्री में प्रवेश हो गया है।
लेकिन बात इन 6 एयरपोर्ट की ही नही है। इसके साथ ही अडानी ग्रुप ने मुंबई एयरपोर्ट में दो दक्षिण अफ्रीकी कंपनियों की 23.5 पर्सेंट हिस्सेदारी खरीदने की पेशकश की है। अडानी ग्रुप, मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (मायल) में एयरपोर्ट्स कंपनी साउथ अफ्रीका (एसीएसए) और बिडवेस्ट के शेयर खरीदना चाहता है। मायल भी PPP मॉडल पर बना ज्वाइंट वेंचर है।
दरअसल जिस पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत भारत के छह हवाई अड्डों को विकसित करने की बात की जा रही है, वह मॉडल ही इसलिए अपनाया जाता ताकि पूंजीपति आसानी के साथ निजी लाभार्जन कर सकें। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप एक ऐसा करार है, जिसके द्वारा किसी जन सेवा या बुनियादी ढांचे के विकास के लिए धन की व्यवस्था की जाती हैं, दिल्ली मेट्रो की एयरपोर्ट लाइन का अनुभव यह दिखाता है कि किस तरह पीपीपी का अनुभव विफल सिद्ध हो सकता है।
पर यह तो सिर्फ शुरुआत है। देश में अगले 10 से 15 साल में 100 नए एयरपोर्ट बनाने की योजना है। नागरिक उड्डयन मंत्री बताते हैं इनमें 4.20 लाख करोड़ रुपए लागत आएगी और यह सभी एयरपोर्ट पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के जरिए ही तैयार किया जाएँगे यानी खेल बहुत बड़ा है।
PPP मॉडल को जिस तरह का साफ सुथरा मॉडल बताया जाता है वह अंदर से उतना ही भ्रष्टाचार से भरा हुआ मॉडल है । जिस मुंबई एयरपोर्ट (मायल) में अडानी हिस्सेदारी खरीदने की बात कर रहे हैं उसके बारे में कैग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि जोखिम को उचित ढंग से निजी पक्ष को हस्तांतरित नहीं किया गया, जिससे परियोजना की लागत दोगुनी हो गई। इसके अंतर की भरपाई को विकास शुल्क के जरिए यात्रियों से वसूला जा रहा है।
परियोजना की लागत 5,826 करोड़ रुपये के दोगुने से भी अधिक बढ़कर 12,380 करोड रुपये पहुंच गई, लेकिन इससे अनुबंध हासिल करने वाली कंपनी के सामने कोई वित्तीय खतरा उत्पन्न नहीं हुआ क्योंकि पैसे की कमी यात्रियों पर विकास शुल्क बढ़ा कर पूरी कर ली जा रही है। जबकि इस परियोजना के परिचालन, प्रबंध एवं विकास समझौते में इसका प्रावधान नहीं था।
यही हाल दिल्ली एयरपोर्ट का भी है। पीपीपी के तहत चलाए जा रहे दिल्ली एयरपोर्ट को चलाने वाली कंपनी डायल में जीएमआर इंफ्रास्ट्रक्चर की हिस्सेदारी 54 प्रतिशत है। सीएजी का कहना है कि नियमों को ताक पर रखकर समझौते के विपरीत डायल को प्रोजेक्ट कीमत के रूप में डेवलपमेंट फीस का इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई। यही नहीं, जब कभी भी डायल ने घाटा होने का मुद्दा उठाया तो उड्डयन मंत्रालय और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने हमेशा सरकार के हितों की अनदेखी करते हुए जीएमआर को ही फायदा पहुंचाने के प्रावधान किए।
संसद में पेश की गई सीएजी की एयरपोर्ट घोटाले की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली एयरपोर्ट जमीन आवंटन से 1.65 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। जीएमआर ने मनमाने तरीके से डेवलपमेंट फीस वसूल कर अतिरिक्त 3,400 करोड़ रुपये की रकम हासिल की है। सरकार ने दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट (डायल) को संचालित करने वाली कंपनी जीएमआर को 190 एकड़ जमीन सिर्फ 6 करोड़ रुपये में दी। डायल को दी गई जमीन से 1,65,557 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया जा सकता था। डायल को डेवलपमेंट फीस के तहत 3,415 करोड़ रुपये की वसूली को मंजूरी दी गई।
आप जानते हैं विमानान मंत्रालय ने इसका जवाब देते हुए क्या कहा था, उन्होंने कहा कि दिल्ली एयरपोर्ट से संबंधित सभी मामलों पर फैसले ईजीओएम और कैबिनेट की ओर से लिए गए हैं। सीएजी की इन रिपोर्टों से पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप प्रोजेक्ट्स पर बुरा असर होने के आसार हैं। इसके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की तेज प्रगति में ऐसी रिपोर्ट रोड़ा बन सकती हैं।
आज फिर उसी PPP मॉडल को आगे बढ़ाया जा रहा है। अडानी को, जिसे कोई अनुभव इस क्षेत्र में नही है, उसे यह काम दिलवाया जा रहा है, जनता को न्यूज़ के नाम पर फेंक न्यूज़ परोस दी जा रही है। कोई इन सौदों के पीछे की सच्चाई बताना देश को जरूरी नही समझता। यह दौर भयावह दौर है।
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार और आर्थिक मामलों के जानकार हैं।