![](https://mediavigil.com/wp-content/uploads/2018/04/nationalherald2F2018-022F1891a359-0e2b-44da-ac32-1ff23124d7072Fyogi-govt-to-withdraw-cases-against-bjp-leaders-accused-in-muzaffarnagar-riots.jpg)
जितेन्द्र कुमार
आज मतलब 26 अप्रैल 2018 का इंडियन एक्सप्रेस अखबार खोलिए। उसकी दो खबरों पर ध्यान दीजिए। एक खबर तो मुख्य पेज पर ही है जबकि दूसरी खबर पेज 16 पर है। एक खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट उर्फ आदित्यनाथ योगी ने अपनी तरह के पांच सहयोगियों को कई अपराधिक मामलों से बरी करने करने का फैसला किया है!
अखबार के मुताबिक 31 अगस्त 2013 को हुई महापंचायत में बिजनौर से बीजेपी सांसद कुंवर भारतेन्द्र सिंह और मुजफ्फरपुर के सांसद संजीव बालियान समेत साध्वी प्राची और बीजेपी के ही तीन विधायक उमेश मलिक, संगीत सोम और सुरेश राणा के उपर से घृणा फैलाने वाले आरोप को वापस लेने के लिए कार्यवाही शुरू कर दी गई है। ज्ञात हो कि यह वही महापंचायत थी जिसने शहनवाज, सचिन और गौरव की हत्या के बाद वहां तनाव फैलाने में दावानल की तरह काम किया था। उसी महापंचायत का असर था कि शामली के इर्द-गर्द हिंसा भड़की थी और 60 से ज्यादा लोग इस हिंसा के शिकार हुए थे। साथ ही पचास हजार से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा था।
दूसरा मामला अमेरिका का है। इस खबर में भारतीय मूल के ख्यात अमेरिकी कैंसर वैज्ञानिक इंदर वर्मा- जो जीन थेरपी और कैंसर की दुनिया के सबसे बड़े नामों में शुमार है, को संस्थान ने प्रशासनिक और वैज्ञानिक रिसर्च का काम करने से रोक दिया है क्योंकि उनके ऊपर आरोप है (गौर कीजिए आरोप है, साबित नहीं हुआ है) कि उनके ‘अनुचित आचरण’ के कारण कुछ महिलाओं को अपने करियर में बढ़ने में परेशानी हुई है। इंदर वर्मा कैलिफोर्निया के प्रतिष्ठित साल्क इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकिल स्टडीज में वैज्ञानिक हैं। वर्मा पर लगे इस आरोप के बाद संस्थान ने सैन डियोगो स्थित द रोज ग्रुप नामक इंटरनेशनल इंप्लॉयमेंट लॉ एंव कंसलटेंसी फर्म को हायर किया है कि वह इस घटना की जांच कर बताए कि इंदर वर्मा के ऊपर लगाए गए आरोप सही हैं या गलत!
अब हम दोनों घटनाओं पर गौर करें। एक घटना में प्रत्यक्ष प्रमाण है कि इन ‘प्रतिष्ठित नेताओं’ के चलते समाज में न सिर्फ वैमनस्यता फैली, बल्कि भारी हिंसा भड़की जिसके चलते दर्जनों लोगों की मौत हुई। यह हिंसा कई महीनों तक जारी रही जिसमें पचास हजार से अधिक लोगों को शरणार्थी शिविर में रहना पड़ा। आर्थिक क्षति भी काफी ज्यादा हुई, लेकिन सरकार अपराधियों पर से मामले खत्म करने जा रही है! फिर इसका मतलब यह निकाला जाय कि शामली में न सांप्रदायिक दंगे भड़के और न ही हिंसा हुई? फिर इतनी मौत के लिए जिम्मेदार कौन है?
जिस तरह हम घृणा और हिंसा का समर्थन करने लगे हैं, हम अब यह कहने की स्थिति में भी नहीं रह गए हैं कि हम अपने-आप के खिलाफ इतना क्यों हो गए हैं। इसका मतलब तो यही हुआ कि अगर अखिलेश और मायावती की सरकार आ जाए और वे भी इसी तरह हिंसा फैलाने वालों को छूट देने लगें तो वह भी सही माना जाएगा! क्या हम धीरे-धीरे हिंसा के चक्र में नहीं फंस रहे हैं? क्या हम यह मानने से इंकार नहीं कर दे रहे हैं कि अगर कुछ लोगों को मोदी-योगी के राज में हो रहे हर गलत काम सही लगते हैं तो अखिलेश-मायावती के कार्यकाल में किए गए गलत काम भी कुछ लोगों को बिल्कुल सही लगेंगे। आज का गलत निर्णय अगर आम जनों पर भारी पड रहा है तो बाद में वही गलत काम मायावती-अखिलेश के लोगों को मजेदार लगेगा क्योंकि वह काम उनकी अपनी सरकार या लोग करवा रहे हैं। और खुदा न खास्ता अगर कभी आप या आपके परिवार सचमुच इस तरह की मुसीबत में फंस जाएं तो आप न्याय की अपेक्षा किसी से करने की स्थिति में रह पाएंगे?
इतना तक तो ठीक है, लेकिन जो न इधर हैं न उधर के, उनके बारे में हम क्या सोचते हैं या फिर इधर-उधर के लोग क्या कर रहे हैं?
क्या हमें सिर्फ अमेरिका पसंद आएगा? अमेरिकी मॉडल पसंद नहीं आएगा? अमेरिका में ऊंच-नीच का भेद भले ही हो लेकिन कानून की नजर में सब बराबर हैं। और हमारे यहां, हमारे यहां न कानून की नजर में हम बराबर हैं और न ही समाज की नजर में कोई बराबर है! अन्यथा यह कैसे हो सकता था कि दंगाइयों को सरकार डंके की चोट पर बरी कर रही है और समाज का एक तबका इसका पुरजोर समर्थन करता है। दूसरा वर्ग चुप्पी लगाए हुए है और तीसरा लेकिन बहुत ही छोटा सा वर्ग इस फैसले से हैरान, हताश और दुखी है! हालांकि आशा भी उसी समुदाय से है, जो सबसे कमजोर है, लेकिन विरोध कर रहा है, लड़ रहा है!
आप लोग सोते रहें! सोनेवालों के लिए- ‘भारत माता की जय!’
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और मीडियाविजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य हैं