प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय अर्थव्यवस्था को 50 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचाने की बुनियाद रख चुके हैं, लेकिन कॉफी कैफे डे के मालिक सिद्धार्थ की आत्महत्या और लाखों लोगों की छूटती नौकरियां अर्थव्यवस्था के पटरी पर से उतरने की कहानी बयां कर रहा है। सवाल है कि क्या यह ट्रेंड अर्थव्यवस्था में साइकलिक डाउनटर्न है, या उससे आगे कहीं किसी गहरे संकट की ओर जाने का इशारा कर रहा है।
अर्थव्यवस्था की मजबूती में अहम योगदान रखने वाले कोर सेक्टर का ग्रोथ जुलाई में 7.8 फीसदी से घटकर 0.2 फीसदी रह गया है। इसके साथ ही यह दिसंबर 2015 के बाद 50 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है। कोयला, क्रूड, नेचुरल गैस, रिफाइनरी प्रोडक्ट, फ़र्टिलाइज़र, स्टील, सीमेंट और बिजली सेक्टर भारी दवाब में है। देश के कुल औधोगिक उत्पादन में कोर सेक्टर का योगदान 40 फीसदी के आसपास है। जाहिर है हमारी अर्थव्यवस्था भारी संकट से गुजर रही है। कई इंडिकेटर मंदी की आहट की तरफ इशारा कर रहे हैं। गैर-ऑयल मरचेंडाइज सेक्टर का निर्यात लगातार घट रहा है। सूरत का कपड़ा उद्योग और ऑटोमोबाइल सेक्टर भी सदमे में है। इन दोनों सेक्टर से जुड़े कारोबारियों की हालत लगातार खराब हो रही है। कुछ लाख लोगों की नौकरी जा चुकी है। लाखों की जाने वाली है।
सैकड़ों शहरों में रोजगार मार्केट की हालत खस्ता है। छोटे बड़े कारोबारी आत्महत्या तक कर रहे हैं। अभी तक किसान ही मर रहे थे, अब कारोबारियों में भी यह ट्रेंड दिखने लगा है। कैफे कॉफी डे के मालिक सिद्धार्थ की आत्महत्या कॉरपोरेट कंपनियों और तेजी से उभरते कंज्यूमर सेक्टर के दवाब की भी कहानी बयां कर रहा है। हालांकि, सरकार के 50 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था के ख्वाब को पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी खारिज कर चुके हैं, तो बजाज जैसी कंपनियों के मालिक भी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं। आरबीआई के गवर्नर शक्ति कांत दास भी अर्थव्यवस्था के पटरी से उतर जाने की बात कहने लगे हैं। सरकारी हवाई दावों के बीच पूरे देश में सूखे के हालात हैं। बारिश अच्छी नहीं होने से कृषि सेक्टर पर भी भारी दवाब देखने को मिलेगा। कुछ राज्य बाढ़ की चपेट में हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बुनियाद हिल चुकी है। ऐसे में देश भर में मांग में कमी आएगी।
बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ रहा है। मतलब साफ है नया निवेश नहीं आ रहा है। न सिर्फ कंपनियां कर्ज चुकाने में चूक रही हैं, बल्कि होम लोन, कार लोन ऑर पर्सनल लोन जैसे स्मॉल टिकट साइज लोन की ईएमआई डिफॉल्ट होने की रफ्तार बढ़ने लगी है। इससे बैंकों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है। घरों की बिक्री कमजोर है यानी रियल एस्टेट सेक्टर की कमजोरी का नुकसान सीमेंट और स्टील के साथ साथ असंगठित रोजगार को भी हो रहा है। पहली बार भारत में मोटरसाइकिल उधोग संकट में है। बाइक की बिक्री लगातार घट रही है। मारुति सुजुकी ने अपना उत्पादन 50 फीसदी तक घटा दिया है। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में करीब 3.7 करोड़ लोगों को रोजगार मिल रहा है। इसका जीडीपी में 7 फीसदी योगदान है, लेकिन इस समय 5 लाख पैसेंजर कार और करीब 30 लाख दोपहिया वाहन बिक्री के इंतजार में है। उपरोक्त हालात से तय है कि न सिर्फ रोजगार मार्केट पर संकट रहेगा, और करोड़ों नौकरियां संकट में रहेंगी बल्कि डायरेक्ट और इनडाइरेक्ट टैक्स कॉलेक्शन में भारी कमी आ सकती है। अभी भले सरकार आंकड़ों की बाजीगरी से फील गुड कराते रहे, लेकिन मार्च 2020 आते आते देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से मंदी की गिरफ्त में आ सकती है।
गिरावट को इस तरह से भी समझें, देश के करीब 75 प्रमुख कारोबारी रूट पर माल की आवाजाही में 25-30 फीसदी तक कमी आ चुकी है और यह तब है जब माल भाड़ा में अलग-अलग जगहों पर 15 फीसदी तक कमी आई है। जाहिर है मांग और उत्पादन का संतुलन बिगड़ रहा है और इसकी वजह से माल की आवाजाही घट रही है। सरकार वित्तीय घाटा कम करने और वेतन मद के दवाब को कम करने के साथ साथ सरकारी निवेश में कमी लाने के लिए सरकार रेल से लेकर कई कंपनियों से नौकरियों को कम कर रही है और कुछ दर्जन कंपनियों को बेचने का भी मन बना चुकी है।
इससे भले ही सरकार कुछ समय के लिए वित्तीय घाटा कम कर दिखा सकेगी, लेकिन लंबी अवधि में सरकार की आमदनी पर भी असर दिखेगा। सरकार के वित्तीय दवाब को इस तरह से भी समझना चाहिए कि वह एलआईसी जैसी सबसे भरोसेमंद निगम को भी शेयर मार्केट में उतारना चाह रही है, ताकि हिस्सेदारी बेचकर कुछ हजार करोड़ का इंतज़ाम कर सके। वैसे निवेषकों के मोदी 2.0 सरकार में अब तक 12 लाख करोड़ रुपए स्वाहा हो चुके हैं। बहरहाल, अभी मंदी के प्रमुख चिन्ह बहुत नहीं दिख रहे हों, लेकिन एक बात बहुत स्पष्ट है कि मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को संभाल पाने की पुख्ता कोषिष की जगह ख्वाब दिखाने की अपनी आदतन कोशिश में ही लगी है।