केंद्र सरकार ने राज्यों को जीएसटी (माल एवं सेवा कर) का हिस्सा देने में हाथ खड़े कर दिये हैं। बहाना कोरोना का बनाया गया है। इससे फंड के लिए परेशान राज्यों को अपने कर्मचारियों को वेतन और पेंशन देना भी मुश्किल हो जाएगा। राज्यों से बाजार से उधार लेकर काम चलाने को कहा गया है, पर राज्यों का कहना है कि केंद्र सरकार ने जीएसटी का हिस्सा देने के अलावा कलेक्शन में आयी कमी की पाँच साल तक भरपायी का भी वादा किया था जिससे वो पीछे नहीं हट सकती।
गुरुवार को हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में केंद्र सरकार ने जीएसटी राजस्व में कमी की भरपाई के लिये राज्यों को बाजार से उधार जुटाने का विकल्प दिया। चालू वित्त वर्ष में जीएसटी राजस्व प्राप्ति में 2.35 लाख करोड़ रुपये की कमी का अनुमान है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अर्थव्यवस्था असाधारण प्राकृतिक आपदा का सामना कर रही है। इसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में गिरावट आ सकती है। उन्होंने कहा कि कोरोना ईश्वरीय प्रकोप है और इससे हालात और बिगड़ सकते हैं।
ज़ाहिर है, केंद्र इस कठिन मौके पर अपना पल्ला झाल रहा है। चालू वित्त वर्ष में क्षतिपूर्ति के रूप में राज्यों को 3 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। केंद्र सरकार कोरोना का रोना रो रही है, लेकिन हक़ीक़त ये है कि कोरोना के हमले के पहले ही अर्थव्यवस्था संकट में फँस चुकी थी। जीएसटी कलेक्शन में साल भर पहले से ही गिरावट आने लगी थी। इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के मुताबिक भारत में करीब तीन साल पहले से ही आर्थिक मंदी है जिसकी वजह से जीएसटी कलेक्शन घटा है। लेकिन सरकार इसे नहीं मान रही है। पिछले साल अप्रैल जून की तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 5.2 फीसदी थी जो जुलाई सितंबर में गिरकर 4.4 फीसदी पहुंच गयी। अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में य घटकर 4.1 फीसदी पहुंच गयी जो जनवरी-मार्च में घटकर 3.1 फीसदी हो गयी। असर जीएसटी राजस्व में कमी के तौर पर दिखा। पिछले साल अगस्त में कुल जीएसटी राजस्व में 2.7 फीसदी और सितंबर में 5.3 फीसदी की कमी आई थी।
केंद्र सरकार ने पिछले साल सितंबर में गोवा में हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में कहा था कि जो भी नुकसान होगा उसकी क्षतिपूर्ति केंद्र करेगा। लेकिन इस कठिन वक्त में वह अपने वादे से मुकर रही है। राज्य सरकारें संकट में हैं। विपक्ष की राज्य सरकारों ने इस मुद्दे पर केंद्र पर तीखा हमला बोला है और वे सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकती हैं।
सवाल है कि अब राज्यों के सामने क्या विकल्प है। उनके पास टैक्स वसूली के बहुत सीमित अधिकार रह गये हैं। जीएसटी लागू करने के दौर में भी ये सवाल उठा था कि इससे संघीय ढांचे में केंद्र का दबदबा बढ़ जायेगा और अब ये हक़ीक़त बन गया है। दिक्कत ये है कि इससे राज्य अपने कर्मचारियों को वेतन और पेंशन भी नहीं दे पायेगा जिसका असर सीधे उनके जीवन-यापन पर पड़ेगा। राज्यों से कहा जा रहा है कि वे बाज़ार से उधार लें, लेकिन केंद्र खुद उधार लेकर राज्यों को क्यों भरपायी नहीं कर रही है जबकि जीएसटी के साथ कमी की भरपायी का उसका वादा आज भी गूँज रहा है।