कृषि बिलों के ख़िलाफ़ 21 सितंबर को गांवों में फूँका जायेगा मोदी सरकार का पुतला

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अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने मोदी सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र के लिए लाए गए तीन विधेयकों के ख़िलाफ़ अपने आंदोलन को और व्यापक कर दिया है। एआईकेएससीसी ने 21 सितंबर को सभी गांवों में मोदी सरकार के पुतले फूंकने का ऐलान किया है। इसके साथ ही 25 सितम्बर को देश व्यापी विरोध प्रदर्शन और पंजाब, हरियाणा जैसे कई राज्यों में बंद का ऐलान किया है।

एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने प्रधानमंत्री के बयानों की आलोचना करते हुए कहा कि वह किसानों को दिये गये उनकी आमदनी सुरक्षित करने के अपने वादोें तथा भारतीय किसानों के श्रम की खुली लूट करने के लिये विदेशी कम्पनियों व कार्पोरेट को दिये जाने वाले निमंत्रण से देश का ध्यान भटका रहे है। वे किसानों के गुस्से को विपक्षी दलों से जोड़कर चालबाजी कर रहे हैं, जबकि उन्हें किसानों व खेत मजदूरों के हित के साथ स्वयं द्वारा किये जा रहे विश्वासघात और राजनैतिक तिकड़म पर सफाई पेश करनी चाहिए। बहस विपक्ष बनाम सरकार नहीं है बल्कि किसान बनाम सरकारी नीति है। किसानों के कर्ज बढ़ रहे हैं, वे जमीन से बेदखल हो रहे हैं और आत्महत्या करने पर मजबूर हैं जबकि शासक निश्चिंत बैठे हैं।

एआईकेएससीसी ने किसानों की मांग के आधार पर ”कर्जा मुक्ति, पूरा दाम“ तब से उठानी शुरू की है, जब से मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे मंदसौर के किसानों पर गोल चलवा कर 6 किसानों की हत्या कर दी।

एमएसपी, सरकारी खरीद व राशन:

जब प्रधानमंत्री उचित समर्थन मूल्य व “पहले की तरह” सरकारी खरीद जारी रखने की बात कह रहे हैं तो वह किसानों की आंख में धूल झोंक रहे हैं। “पहले” केवल 23 फसलों का समर्थन मूल्य घोषित होता था, वह कभी भी उचित नहीं था और खरीद का लाभ मात्र 6 फीसदी किसानों को मिलता था, जैसा कि सरकार के शान्ता कुमार आयोग ने खुद कहा। उसने खाद्य निगम व नाफेड द्वारा खरीददारी व भंडारण को रोकने तथा राशन में अनाज की अपूर्ति बंद करने की संस्तुति की। एआईकेएससीसी सभी फसलों के समर्थन मूल्य को सी2$50 फीसदी तथा सरकारी खरीद के लिए लड़ रही है।

सुरक्षा कवच:

प्रधानमंत्री को न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा सभी फसलों की सरकारी खरीद का कानून पारित करना चाहिए। जबकि वे मंडियों के बाहर कॉरपोरेट व विदेशी कम्पनियों द्वारा खरीद तथा ठेका खेती की अनुमति का कानून पारित कर रहे हैं। उनकी सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट रही है और इस पर पर्दा डालने के लिए प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि ये खाद्यान्न कॉरपोरेट किसानों को विकल्प देकर उनका ‘सुरक्षा कवच’ बनेंगे। सरकारी खरीद समाप्त होने से किसानों के विकल्प समाप्त हो जाएंगे।

राशन बनाम खुले बाजार में बिक्री:

भारतीय कॉरपोरेट के बड़े संगठन फिक्की व सीआईआई लम्बे समय से अनाज की सरकारी खरीद रोकने तथा इसके बाजार को खोलने की मांग करते रहे हैं। विश्व व्यापार संगठन राशन की दुकाने बंद करने को कहता रहा है। यह कानून अनाज, तिलहन, दलहन व सब्जियों को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी से हटाते हैं और अब इनकी बिक्री व दाम पर सरकारी नियंत्रण समाप्त हो जाएगा। जनता का भोजन अब आवश्यक नहीं होगा और खाद्यान्न श्रृंखला, अधिरचना तथा कृषि बाजारों पर कारपोरेट का कब्जा होगा। 75 करोड़ राशन के लाभार्थी कारपोरेट से खाना खरीदने के लिए मजबूर होंगे, जिनके बाजार की ताकत बढ़ जाएगी।

‘बेचने की आजादी’:

दुनिया भर में किसानों की कम्पनियों से रक्षा सरकारें करती हैं। कटाई के बाद फसल को तुरंत बिकना होता है वरना वे नष्ट होगी तथा उसका मूल्य गिरेगा। वह करीब की मंडियों में ही बिकती है और दूर ले जाने में भारी खर्च पड़ता है। ‘कहीं भी बेचने की आजादी’ और अच्छा दाम प्राप्त कर पाना धोखा देने के अलावा कुछ नहीं है। जो कारपोरेट बाजार पर नियंत्रण कर किसानों को निचोड़ते हैं, उन पर नियंत्रण सरकारी रेट व सरकारी खरीद से ही किया जा सकता है।

‘अन्नदाताओं’ को कारपोरेट से अनुबंधों द्वारा बांधा जा रहा है:

यह कानून ठेका खेती शुरु कराएंगे, जिसमें कॉरपोरेट छोटे किसानों की जमीनें एकत्र कराकर उन्हें ठेके में बांध लेंगे, उन्हें मंहगी लागत के सामान खरीदने तथा अपनी फसल पूर्व निर्धारित दाम पर बेचने के लिए मजबूर करेंगे। ठेके किसानों को बांध लेते हैं और मुनाफाजनक खुले बाजार में फसल बेचने से रोक देते हैं। यह सरकार द्वारा प्रचारित एक और झूठ दिखाता है। उत्पादन करने वाला किसान फसल के दाम गिरने या फसल नष्ट होने से होने वाले घाटे से लदा रहेगा, उस पर कर्ज बढ़ेगा, जबकि मुनाफा कम्पनी कमाएगी।

सस्ते आयात:

ऐसी आशंका है कि लागत पर नियंत्रण करके कम्पनियां मनचाही फसलों की पैदावार कराएंगी और सरकारी नियंत्रण न होने से आयात करने व निर्यात करने के लिए मुक्त होंगी। इससे गेहूं, चावल, तिलहन, दलहन, सोया, दूध व दुग्ध उत्पादों से बाजार पट जाएगा और भारतीय किसानों की आत्मनिर्भरता और घट जाएगी, वे खेती से बेदखल हो जाएंगे।

आत्मनिर्भरता:

कोई भी देश विदेशी लुटेरों को खाने पर नियंत्रण देकर विकसित नहीं हो सका है। लेकिन मोदी सरकार यही कर रही है।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ‘कर्जा मुक्ति, पूरा दाम’ प्राप्त करने के लिए दृढ़तापूर्वक किसान संघर्ष संचालित करने पर प्रतिबद्ध है। वह उपरोक्त वर्णित संघर्ष की तैयारी कर रही है।

एआईकेएससीसी सभी किसानों, खेत मजदूरों, आदिवासियों, मछुआरों, ग्रामीण व्यापारियों, जनवादी ताकतों, ट्रेड यूनियन पार्टियों को कंधे से कंधा मिलाने के लिए अपील करती है। यह आन्दोलन नए बिजली बिल 2020, जो किसानों व कमजोर तबकों के लिए बिजली की तमाम रियायती दरें समाप्त करता है के विरुद्ध तथा डीजल-पेट्रोल के दाम घटाने के लिए भी प्रतिबंध है।


एआईकेएमएस के महासचिव व एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप के सदस्य डॉ आशीष मित्तल द्वारा जारी