मोदी सरकार की ओर से आज आंदोलनकारी किसानों को लिखित प्रस्ताव दिया गया जिसे किसानों ने ठुकरा दिया। केंद्र सरकार की ओर से दिये गये प्रस्ताव में कुछ संशोधनों की बात थी जबकि किसान तीनो नये कृषि कानून रद्द किये जाने से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं।
आज सुबह मोदी कैबिनेट की बैठक हुई जिसमें परिस्थितियों पर विचार किया गया है। बाद में कृषि मंत्रालय ने किसानों को लिखित प्रस्ताव भेजा। यह प्रस्ताव सरकार के अधिकारियों ने किसानों को सिंघु बॉर्डर पर सौंपा। इस प्रस्ताव में सरकार ने कृषि कानूनों की पृष्ठभूमि और भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा था कि कानून में संशोधन कर मंडियों के रजिस्ट्रेशन का नियम बनाया जा सकता है।इसके अलावा सरकार एमएसपी की वर्तमान खरीद व्यवस्था पर लिखित आश्वासन देने के लिए सहमत हुई है। किसानों ने नए कृषि कानूनों में किसान के पास सिविल न्यायालय जाने का विकल्प न होने पर आपत्ति जताई थी, जिसके जवाब में प्रस्ताव दिया गया कि कानून में संशोधन कर किसानों को सिविल न्यायलय में जाने का विकल्प भी दिया जा सकता है। इसी के साथ सरकार की ओर से बिजली संशोधन बिल न लाने की बात कही गयी।
किसान संघर्ष कमेटी की ओर से प्रस्ताव के बारे में कहा गया था कि ‘तीनों कृषि कानून वापस होने चाहिए, यही हमारी माँग है। अगर प्रस्ताव में केवल संशोधन की बात की गई है तो हम इसे नकार देंगे।’
बाद में हुआ भी यही। किसानो ने प्रस्ताव मानने से एक स्वर में इंकार कर दिया है। उनका कहना है कि हर हाल में क़ानून वापस लिये जाने चाहिए। किसानों ने आंदोलन तेज़ करने की चेतावनी दी है। इस समय लाखों किसान दिल्ली बार्डर पर जमा हैं और तमाम राज्यों से उनके जत्थे बढ़े चले आ रहे हैं। हालात को देखते हुए सुरक्षा इंतज़ाम कड़े कर दिये गये हैं। हर तरफ़ छावनी जैसा दृश्य है। सरकार की कोशिश है किसान किसी सूरत में दिल्ली में प्रवेश न करें। किसानों ने शांतिपूर्ण आंदोलन का दावा किया है, लेकिन प्रशासनिक हठधर्मी से यह वादा कब तक बरक़रार रहता है, कहना मुश्किल है।
इससे पहले कल भारत बंद के बाद आनन-फानन में गृहमंत्री अमित शाह ने किसान नेताओं के साथ बैठक की थी, पर चार घंटे तक चली बैठक में वे किसानों को कदम पीछे खींचने को मना नहीं सके। इसके बाद आज की तय छठें दौर की वार्ता रद्द करके लिखित प्रस्ताव देने की बात कही गयी थी।