सत्येंद्र सार्थक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा के साथ बार-बार अपील की थी कि इस दौरान किसी को नौकरी से न निकाला जाये लेकिन लगता है कि यह सिर्फ दिखावा था,वरना देश की राजधानी में ही अनगिनत मज़दूरों को नौकरी से निकाल दिया गया है, और सरकार चूँ भी नहीं कर रही है। श्रम मंत्रालाय ने भी इस आशय की एडवायज़री 20 मार्च को जारी की थी, लेकिन यह बेअसर रही। सवाल यह भी कि एडवायज़री क्यों, आदेश क्यों नहीं।
उधर, दिल्ली की केजरीवाल सरकार रोजाना आठ लाख लोगों को खाना खिलाने का दावा कर रहे हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं लगता। एक तो खाना उसे ही मिलता है जो लाइन में हो और दूसरा जो मिलता है, उससे पेट नहीं भरता। ज़ाहिर है, मज़दूर परिवारों के सामने भुखमरी का संकट खड़ा हो गया है।
वजीरपुर की एक बर्तन बनाने वाली फैक्ट्री के 22 मजदूर बेरोजगार हो गए हैं. विजय गिरि भी इसी फैक्ट्री में काम करते थे. वो स्टील की पत्तियों को तेजाब से धुलने का काम करते थे. सुबह या शाम जिस शिफ्ट में भी मुनीम बुलाए 12 घंटे काम करना पड़ता था. इस काम के एवज में प्रति महीने 7000 रुपये मिलते थे. लेकिन अब वो बेरोजगार हो चुके हैं. 42 साल के विजय करते हैं कि 1 अप्रैल को फैक्ट्री मालिक ने हिसाब देते हुए कहा कि “मैं बैठा कर वेतन देने की हालत में नहीं हूं”.
इस तस्वीर में बीजेपी के चुनाव चिन्ह और ‘दिल्ली लाएगी परिवर्तन’ नारे वाली सफेद रंग की टी शर्ट पहने शख्स विजय गिरि हैं. दिल्ली में तो जो हुआ सो हुआ, लेकिन लॉकडाउन ने विजय की दुनिया जरूर बदल दी है.
विजय का वेतन सरकार द्वारा निर्धारित की गई न्यूनतम मजदूरी के मुकाबले आधा भी नहीं था. लॉकडाउन के दौरान हो रही समस्याओं का जिक्र करते हुए वह बताते हैं कि “घर में अनाज सहित खाने-पीने की जरूरी वस्तुएं खत्म होने के कगार पर हैं. हम खाने के लिए सामाजिक संगठनों और सरकार पर निर्भर हैं. सरकार की तरफ से लाइन में लगने वालों को ही खाना बांटा जाता है. पूरे परिवार के लिए लाइन में लगना संभव नहीं, जो मिलता है वह एक आदमी के लिए भी कम पड़ जाता है. ऐसे में खाने की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है”.
विजय की सरकार से केवल एक मांग है कि समय से केवल खाना मिलता रहे. जब उनसे पूछा गया कि लॉकडाउन की अवधि बढ़ने से उन्हें क्या समस्या होगी? वह उदास होकर बताते हैं कि “खाने का प्रबंध नहीं हुआ तो, भूखा मरना पड़ेगा”.
वजीरपुर में ही पॉवर प्रेस मशीन पर पीस लगाने का काम करने वाली गीता देवी का भी यही हाल है. 12 घंटे काम के एवज में इन्हें महीने में 7,500 रुपये मिलते हैं. वह बताती हैं कि “फैक्ट्री में पैसा लेने की कई बार कोशिश की पर नहीं मिला. गुरूवार को फोन किया तो जवाब मिला कि 20 अप्रैल को पैसे मिलेंगे.”
गीता देवी का कहना है कि “हमारा दो महीने का वेतन पहले से ही बकाया था. लॉकडाउन के कारण 21 मार्च से मेरा और पति दोनों का काम बंद हो गया है. घर में राशन खत्म हो चुका है. पिछली रात भी घर में चुल्हा तब जल सका जब एक सामाजिक कार्यकर्ता ने राशन पहुंचाया. मालिक से पैसा मांगने गई तो उसने ब्याज पर उधार लेने को कहा, वह भी कोशिश की लेकिन नहीं मिला.” गीता देवी ने वाक्य पूरा भी नहीं किया था कि बुजुर्ग इन्द्रजीत बोल पड़े कि “इस समय कौन किसको उधार देने वाला है जिसके पास पैसे हैं वह अपने परिवार के लिए इंतजाम करेगा या ब्याज पर देगा”?
यदि लॉकडाउन बढ़ा तो शायद ही पैसे मिलें. गीता देवी के परिवार में 8 सदस्य हैं जिनमें 5 बच्चे और एक मानसिक रूप से विकलांग देवर है. परिवार ने किराए पर दो कमरे लिए हैं जिसके लिए उन्हें 3,700 रुपये का भुगतान करना पड़ता है. मालिक किस्तों पर किराया लेने के लिए तैयार हो गया है, जिससे परिवार को थोड़ी राहत है. वजीरपुर के मछली बाजार में गीता का कमरा है. उन्होंने बताया “सरकार की ओर से यहां पर खाना नहीं बांटा गया है. समझ नहीं आ रहा है कि लॉकडाउन तक हम क्या खायेंगे”?
वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में विजय गिरि और गीता देवी के परिवारों पर ही लॉकडाउन का दुष्प्रभाव पड़ा हो ऐसा नहीं है. हजारों परिवारों को इन्हीं हालातों का सामना करना पड़ रहा है. यहां पर रहने वाले मजदूरों के 7 से 10 हजार रुपये के वेतन पर इनका परिवार भी आश्रित होता है.
झुग्गियों के औसतन 6 बाई 8 के कमरे में 3 से 4 मजदूर रहते हैं. लॉकडाउन लागू होने के बाद फैक्ट्रियां बंद होने से उनकी नौकरी चली गई हैं. कमरे का घुटन भरा माहौल अंदर रहने नहीं देता और पुलिस बाहर नहीं रहने देती.
लॉकडाउन के कारण 22 मार्च से फैक्ट्रियों और कारखानों में उत्पादन नहीं हो रहे हैं. मार्च महीने का वेतन मजदूरों का पहले से ही बकाया है. वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में प्रबंधन ने साफ कर दिया है कि बिना काम के वेतन नहीं मिलेगा.
प्रेस चलाने वाले 50 वर्षीय अफरोज बताते हैं “प्रबंधन ने कहा है जितने दिनों तक काम करोगे उतना ही पेमेंट मिलेगा.” वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में 30 मार्च से 1 अप्रैल के बीच बड़े पैमाने पर मजदूरों को हिसाब देकर घर बैठने को कह दिया गया है. इस दौरान उन्हें 21 मार्च तक का ही भुगतान किया गया है. जब दिल्ली में यह हालात हैं तो दूसरे राज्यों के हालात का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.
24 मार्च को प्रधानमंत्री द्वारा तीन सप्ताह के लिए लॉकडाउन की घोषणा के बाद बड़े पैमाने पर उत्तर प्रदेश व बिहार सहित विभिन्न राज्यों के मजदूर पैदल ही अपने घरों के लिए निकल पड़े थे. जिससे लॉकडाउन को लेकर सरकार के तैयारियों पर सवाल खड़े होने लगे थे.
गृह मंत्रालय ने जारी आदेश में कहा था कि “सभी नियोक्ता चाहे वह उद्योग में हों या दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में, लॉकडाउन की जिस अविध में उनके प्रतिष्ठानक बंद रहेंगे, अपने श्रमिकों के वेतन का भुगतान उनके कार्य स्थल पर, नियत तिथि पर, बिना किसी कटौती के करेंगे.” लेकिन महज अपील तक ही यह सीमित रह गया, पूरे देश में इसे लागू करने के ठोस इंतजाम नहीं किए गये. नतीजा 21 दिनों तक के पहले लॉकडाउन में 195 लोगों की मौत हुई जबकि इसी दौरान कोरोना वायरस के संक्रमण से 331 लोगों की मौत हुई थी. कोई ताज्जुब नहीं यदि आने वाले दिनों में लॉकडाउन से होने वाली मौतों की संख्या अधिक हो जाए.
स्टैन्डर्स वर्कर्स एक्शन नेटवर्क के द्वारा किए गए सर्वे में सामने आया है कि 89 प्रतिशत प्रवासी मजदूरों को लॉकडाउन के दौरान नियोक्ताओं ने भुगतान नहीं दिया. 96 प्रतिशत को सरकार की ओर से किसी तरह का राशन और 70 प्रतिशत को पका हुआ खाना नहीं मिला. 11,159 मजदूरों पर किए गए इस सर्वे के अनुसार 50 प्रतिशत के पास केवल एक दिन का ही राशन था. जबकि 78 प्रतिशत मजदूरों के पास केबल 300 रुपये ही बचे हुए थे.
दिल्ली इस्पात उद्योग मजदूर यूनियन के भास्कर बताते हैं कि “वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में 1,300 उत्पादन इकाईयां हैं जिनमें से 1,000 केवल स्टील से संबंधित हैं. पूरे क्षेत्र में 75,000 मजदूर काम करते हैं, जिनमें 80 प्रतिशत प्रवासी हैं. लॉकडाउन लागू होने के बाद बड़ी संख्या में मजदूरों को काम से निकाला गया है. कुछ को पैसा मिला जबकि कुछ अभी भी फैक्ट्रियों के चक्कर काट रहे हैं.”
14 अप्रैल को देश को संबोधित करते समय भी प्रधानमंत्री ने दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को राहत देने के लिए कोई घोषणा नहीं की. जबकि उनके गृह राज्य सहित पूरे देश से मजदूरों को होने वाली समस्याओं की खबरें आ चुकी थीं. मजदूरों के पास काम नहीं है. राशन के लिए भटकना पड़ रहा है. उन्हें घर भी नहीं जाने दिया जा रहा. प्रधानमंत्री ने नागरिकों को जिम्मेदारियों का अहसास तो कराया लेकिन सरकार की तैयारियों के बारे में जानकारी नहीं दी. इसीलिए भूख से परेशान लोग बड़े पैमाने पर लॉकडाउन का उल्लंघन कर सड़कों पर उतर आ रहे हैं.
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।