11 साल से जेल में बंद आरोपी पर आरोप तय नहीं! सुप्रीम कोर्ट नाराज़, पूछा – देरी क्यों?

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सुप्रीम कोर्ट ने 11 साल से जेल में बंद एक आरोपी पर आरोप तय न होने के कारण नाराज़गी ज़ाहिर की है। वर्ष 1993 में राजधानी एक्सप्रेस और अन्य ट्रेनों में सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में एक आरोपी को आरोप तय किए बिना 11 साल जेल में रखे जाने से सुप्रीम कोर्ट नाराज़ हुआ और कहा कि आरोपी को या तो दोषी ठहराया जाए या बरी कर दिया जाए। कोर्ट ने सवाल किया की आखिर इसमें इतनी देरी क्यों हो रही है?

सुप्रीम कोर्ट ने मांगी रिपोर्ट..

सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित मुकदमे के अधिकार को रेखांकित करते हुए, अजमेर में स्थित विशेष आतंकी एवं विध्वंसक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम अदालत (टाडा अदालत) के जज से रिपोर्ट मांगी कि आरोपी हमीरुद्दीन के खिलाफ आरोप तय क्यों नहीं किए गए है?

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने विशेष न्यायाधीश (निर्दिष्ट अदालत, अजमेर, राजस्थान) को आदेश की प्रमाणित प्रति (certified copy) प्राप्त होने की तारीख से दो सप्ताह के भीतर रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया है। इसी के साथ कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट में यह स्पष्ट होना चाहिए कि अब तक आरोप क्यों नहीं तय हुए?

पीठ ने रिपोर्ट जल्द प्रस्तुत करने के क्रम में रजिस्ट्रार (न्यायिक) को आदेश की एक प्रति (Copy) सीधे न्यायाधीश को और एक प्रति राजस्थान उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) के माध्यम से भेजने को कहा है।

 

अनिश्चितकालीन हिरासत अनुच्छेद 21 के तहत अधिकारों का उल्लंघन..

दरअसल, हमीर ने अपनी याचिका में 27 मार्च, 2019 को टाडा अदालत द्वारा जमानत अर्जी खारिज करने को चुनौती दी है। मामले की सुनवाई के दौरान हमीरुद्दीन की ओर से पेश हुए वकील शोएब आलम ने कहा कि याचिकाकर्ता 2010 से हिरासत में है, लेकिन आरोप तय नहीं किए गए हैं और मुकदमा अभी तक शुरू नहीं हुआ है। शोएब आलम ने आगे दलील देते हुए कहा कि आरोपी की अनिश्चितकालीन नज़रबंदी अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति के अधिकारों का घोर उल्लंघन है।

उन्होंने कहा की विशेष टाडा अदालत को याचिकाकर्ता को जमानत देनी चाहिए थी क्योंकि निकट भविष्य में मुकदमा खत्म होने की कोई संभावना नहीं है। राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता विशाल मेघवाल ने स्वीकार किया कि अभी तक आरोपियों के खिलाफ आरोप तय नहीं हुए हैं। साथ ही यह भी कहा कि वह लगभग 15 सालों तक फरार था।

दोषी ठहराइए या फिर बरी कर दीजिए: SC

पीठ ने पूछा कि जब वह 2010 से हिरासत में है तो अब तक आरोप क्यों नहीं तय किए गए? आरोपी त्वरित सुनवाई का हकदार है। उसे दोषी ठहराइए या फिर बरी कर दीजिए, हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन कम से कम मुकदमा तो कीजिए। बिना मुकदमे के उसे अनिश्चित काल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है।

इस पर वकील मेघवाल ने तर्क दिया कि आरोप तय करने में देरी का मुख्य कारण सह-आरोपियों में से एक अब्दुल करीम टुंडा गाजियाबाद जेल में बंद है। पीठ ने कहा कि या तो आप मुकदमे को अलग कर दें या फिर मुकदमे को उसके मामले से जोड़ दें लेकिन कम से कम सुनवाई तो शुरू करें। जिसपर आरोपी के वकील आलम ने बताया कि राज्य ने अपने जवाबी हलफनामे में टुंडा मामले का जिक्र नहीं किया है।

पूरा मामला..

अभियोजन पक्ष (Prosecutors) के अनुसार, 5-6 दिसंबर, 1993 को बॉम्बे-नई दिल्ली, नई दिल्ली-हावड़ा, और हावड़ा-नई दिल्ली राजधानी ट्रेनों और सूरत-बड़ौदा फ्लाइंग क्वीन एक्सप्रेस और एपी एक्सप्रेस में बम विस्फोट हुए। इन धमाकों में दो यात्रियों की मौत हो गई और 22 घायल हो गए। इस संबंध में कोटा, वलसाड, कानपुर, इलाहाबाद और मलकज-गिरी में मामले दर्ज किए गए थे। बाद में इन मामलों को सीबीआई को स्थानांतरित (transferred) कर दिया गया और जयपुर, अहमदाबाद, लखनऊ और हैदराबाद में टाडा के तहत पुन: मुकदमे दर्ज किए गए।

जांच में पाया गया कि बम विस्फोट एक ही साज़िश का नतीजा था और इसलिए सभी मामलों को एक साथ मिला दिया गया। सीबीआई ने 25 अगस्त 1994 को गिरफ्तार किए गए 13 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। नौ आरोपी फरार थे। हमीरुद्दीन फरार आरोपियों में शामिल था। उसे दो फरवरी 2010 को उत्तर प्रदेश पुलिस और लखनऊ विशेष कार्यबल ने गिरफ्तार किया था। 8 मार्च 2010 को उसे अजमेर के टाडा कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।


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