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अभिषेक श्रीवास्तव / शिव दास
बनारस हिंदू युनिवर्स्रिटी में समाजशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर मनोज कुमार वर्मा की छात्रों द्वारा परिसर में सरेआम पिटाई, उसके बाद छात्राओं द्वारा 28 जनवरी को करवाई गई एफआइआर और वर्मा की ओर से उसी शाम विभागाध्यक्ष अरविंद कुमार जोशी और एक छात्र अनंत नारायण मिश्रा के खिलाफ करवाई गई क्रॉस एफआइआर के बाद इस मामले की परतें खुलकर सामने आने लगी हैं। जो मामला अब तक ‘अश्लील’ टिप्पणी के साथ छात्राओं की कथित तस्वीर फेसबुक पर पोस्ट करने के आरोप तक सीमित था, वह अब विभागाध्यक्ष जोशी के मुंह खोलने के साथ और व्यापक हो गया है। जोशी ने मीडियाविजिल से लंबी बातचीत में वर्मा पर कुछ गंभीर आरोप लगाए हैं और उनके ‘मनोविज्ञान’ पर सवाल खड़ा किया है। गौरतलब है कि जोशी खुद वर्मा के गुरु रह चुके हैं।
शुक्रवार को विभाग के छात्र-छात्राओं ने एक ओर सिंहद्वार तक विरोध प्रदर्शन में मार्च निकालते हुए वर्मा की बरखास्तगी की मांग उठायी तो दूसरी ओर वर्मा ने थाने में विभागाध्यक्ष और एक छात्र अनंत नारायण मिश्रा के खिलाफ अतिरिक्त साक्ष्य जमा कराने का आवेदन दे डाला। फिलहाल गेंद पुलिस के पाले में है और जांच जारी है, लेकिन मीडियाविजिल को मिली कुछ सूचनाओं से पता चलता है कि वर्मा की छात्रों द्वारा पिटाई कोई अचानक घटी घटना नहीं है बल्कि इसकी पृष्ठभूमि काफी पहले से तैयार हो रही थी।
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मीडियाविजिल ने इस घटना के संबंध में वर्मा और जोशी दोनों से बात की। मनोज कुमार वर्मा के खिलाफ अब तक दो मोटे साक्ष्य हैं- एक उनके फेसबुक पर कथित रूप से अपलोड की गयी किसी लड़की की तस्वीर का स्क्रीनशॉट है जिसके ऊपर कैप्शन लिखा है, ’’जी ललचाये रहा न जाये’’। यह तस्वीर कोई डेढ़ साल पहले की है, जिसके स्क्रीनशॉट में लड़की का चेहरा ब्लर है। दूसरी तस्वीर हफ्ते भर पहले की है जिसमें विभागाध्यक्ष जोशी एक छात्रा के साथ खड़े दिखायी देते हैं। बताया जा रहा है कि यह तस्वीर किसी शैक्षणिक दौरे की है। आरोप है कि वर्मा ने इस तस्वीर को कहीं फेसबुक से उड़ा कर उसके ऊपर जोशी को सम्मानजनक संबोधन देते हुए छात्रा के साथ ‘’जलक्रीड़ा’’ करते लिखा है। सारा तात्कालिक आक्रोश इसी तस्वीर पर है। ये दोनों तस्वीरें फिलहाल वर्मा की टाइमलाइन से नदारद हैं लेकिन छात्राओं की तरफ से करवायी गई एफआइआर में साक्ष्य के बतौर इनका स्क्रीनशॉट संलग्न है।
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वर्मा ने मीडियाविजिल से बात करते हुए पहली तस्वीर के बारे में बताया कि वह जिफ (giff) फॉर्मेट में विज्ञापन करती एक मॉडल की तस्वीर है, किसी छात्रा की नहीं है। वर्मा कहते हैं कि उस जिफ तस्वीर में मॉडल चिप्स खा रही है और उक्त प्रोडक्ट की पंचलाइन है ‘’जी ललचाये रहा न जाये’’ जिसे उन्होंने लिख दिया था। उन्होंने कहा, ‘’इन लोगो को मेरे खिलाफ कुछ मिल नहीं रहा है तो उस विज्ञापन को लेकर ये लोग इशू बना रहे हैं।‘’
दूसरी तस्वीर के बारे में वे साफ कहते हैं कि यह शैक्षणिक दौरे की ही तस्वीर है। वे कहते हैं, ‘’हमारे जोशी सर बाहर जाते रहते हैं और हमेशा हर किसी के कैरेक्टर पर, खासकर हमारे कैरेक्टर पर अफवाह फैलाते रहे हैं। इसीलिए मैंने केवल क्रिटिसाइज करने के लिए कि अकेडमिक टूर पर आप ऐसी फोटो लगा रहे हैं, लाइव कर रहे हैं, इसी संदर्भ में मैंने लिख दिया। बाद में आपत्ति होने पर मैंने हटा भी लिया।‘’ वे कहते हैं कि ‘’इस घटना का प्रोग्राम पहले से था, एक मौका इस तरह से इन लोगों को मिल गया अचानक।‘’
New-Doc-2019-02-01-15.39.40मीडियाविजिल ने वर्मा से पूछा कि एक शोध छात्रा की ओर से पिछले साल एक शोध सुपरवाइजर और खुद वर्मा के खिलाफ शिकायत भेजी गई थी, उसकी सच्चाई क्या है। इस बारे में उनका कहना था कि यह पत्र गोपनीय था और यदि इसे छात्रों को लीक किया गया है तो इससे साफ़ है कि छात्र और विभागाध्यक्ष आपस में मिले हुए हैं।
मीडियाविजिल ने विभागाध्यक्ष अरविंद कुमार जोशी से तफ़सील से इस घटना पर बात की। वे वर्मा के खिलाफ बुरी तरह भड़के हुए थे। उन्होंने बताया कि वर्मा खुद उनके छात्र रहे हैं और उनके खिलाफ बहुत सारी शिकायतें हैं। वे कहते हैं, ‘’कई बार इनको समझाया हमने, जैसे ये एब्सेंट रहेंगे और हम क्रॉस करेंगे तो अटेंडेंस रजिस्टर में वाइटनर लगा देगा। दो दिन पहले फिर लगाया है वाइटनर। कहीं कुछ भी लिख देगा। धमकी दे देगा। क्लास में आएगा, नहीं आएगा। अजीब एरोगेंट है। हम ही ने कनफर्म किया है इनका नौकरी। जब तक नौकरी नहीं था, तब तक रोज़ चेला थे। इनको बिगाड़ने में एक दो टीचर का हाथ है। चूंकि ये एसटी हैं तो इसी से बचना चाहते हैं, सोचते हैं डरवा देंगे। हमसे क्या लेना देना, हम तो सबसे सीनियरमोस्ट आदमी हैं, ये सबसे जूनियरमोस्ट हैं।‘’
जोशी ने वर्मा पर कुछ गंभीर निजी आरोप लगाए। उन्होंने बताया कि जब वे विभागाध्यक्ष होने के नाते क्लास के बाहर निरीक्षण करते हैं तो कक्षा ले रहे वर्मा छात्रों से कहते हैं ‘’देखो कुत्ता बाहर टहल रहा है।‘’ जोशी दावा करते हैं कि छात्राओं ने उन्हें इसका ऑडियो दिया है जिसमें वर्मा उनके लिए ‘’कुत्ता’’ का प्रयोग कर रहे हैं। वे कहते हैं, ‘’तब भी मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा।‘’
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यह पूछने पर कि क्या इसके पीछे कोई दूसरी ताकत काम कर रही है, किसी का हाथ है वर्मा के ऊपर, जोशी कहते हैं कि पावर जैसा कोई मामला नहीं है। वे छात्राओं द्वारा वर्मा की शिकायत का हवाला देते हुए उसी तस्वीर का जिक्र करते हुए नाराज़ हो जाते हैं जिसे वर्मा ने विज्ञापन बताया है। वे कहते हैं कि वर्मा वॉट्सएप पर लड़कियों को मैसेज भेजता है, फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजता है। वर्मा को ‘’मनोवैज्ञानिक समस्या’’ से ग्रस्त बताते हुए जोशी इसके पीछे की वजह बताते हैं कि उनकी शादी अब तक नहीं हुई। वे कहते हैं, ‘’वे पूछते रहते हैं लड़कों से कि तुम्हारी कितनी बहनें हैं, ब्याह हुआ है या नहीं, हमसे शादी करा दो। ब्राह्मण और क्षत्रिय लड़कियों पर ये ज्यादा जोर देते हैं। कम से कम बीसों लड़कियों से किए हैं, हम आपको नंबर दे देंगे आप डायरेक्ट बात कर के जान सकते हैं, आपको आश्चर्य हो जाएगा। अब हम हेड हैं, रोज कोई लड़की आकर कहे ये सब तो हम तो अपना फर्ज निभाएंगे।‘’
जोशी कहते हैं, ‘’टीचर हो, टीचर की तरह रहो। टॉप टेन में इंडिया में है हमारा सोशल वर्क, कितनी मुश्किल से मैं बचा रहा हूं लेकिन से हर बार बिगाड़ने की कोशिश करते हैं। तुम हर बार धमका रहे हो कि हम मूलनिवासी हैं, सब रिकॉर्ड में है मेरे पास। बताइए, अब हमारा नाम लगा रहा है।‘’
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मीडियाविजिल ने मनोज कुमार वर्मा के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाने के बाबत सवाल पूछा तो जोशी ने कहा, ‘’जाते रहे हैं लेकिन कुछ नहीं हैं। हम लोग भी आज के आदमी नहीं हैं। अड़तीस साल से पढ़ा रहा हूं। जितने आरएसएस के नेता हैं सब हमारे ही चेले थे न… हम मनोज सिन्हा और महेंद्र पांडे के बैच के हैं। मैं तो सिद्धांतवादी हूं। दुरुपयोग करना चाहें तो कौन नहीं कर सकता है। इनको आरएसएस से निकाल देंगे। कोई इनको समर्थन नहीं दिया है। आज हमारे पढ़ाए जज हैं एससी, सब हमें फोन कर रहे हैं। मेरे खिलाफ खड़े केवल वे टीचर हैं जो हेड नहीं बन पाए।‘’
मनोज कुमार वर्मा को असिस्टेंट प्रोफेसर बनाने में अपनी भूमिका के बारे में जोशी विस्तार से बताते हैं, ‘’टेम्पो चलवाता था… रामनगर से लंका टेम्पो चलवाता था। हम ही उसको प्रेरित किए कि देखो एससी एसटी हो, पढ़ते लिखते रहो, तुम्हारा हो जाएगा। बाद में सर्टिफिकेट भी बनवाया। ये एससी है चंदौली का, तो एसटी वाला बनवाया सोनभद्र से 2009 में। 2009 से पहले एससी था, लेकिन कोई बात नहीं। बीएचयू में हो गया उसका। पहले रोज़ पैर छूना, मेरे साथ चौबीसों घंटा रहना, सब था। बाद में भी हमसे झगड़ा कर लिया तब भी एनएसएस के कैंप में हमें मुख्य अतिथि बनवाया। बताइए, हम इतना इसका मदद किए, ये हर जगह बवाल किया। हम अच्छी बात समझांएगे कि शराब मत पीयो, ये मत करो, तो हम ही को उलटे समझाएगा।‘’
मीडियाविजिल से कोई पंद्रह मिनट की बातचीत में जोशी लगातार वर्मा का चरित्र चित्रण करते रहे लेकिन अंत में उन्होंने वर्मा् पर यह आरोप लगाया कि वे मीडिया में बयान दे रहे हैं जो विश्वविद्यालय के नियमों के खिलाफ है, ‘’हमने विश्वविद्यालय को लिखा कि ये मीडिया में स्टेटमेंट कैसे दे रहा है। हम चाहें तो मानहानि का मुकदमा कर सकते हैं। ये बयान दे रहे हैं कि हम लोग टूर पर अकेले जाते हैं। हमेशा टूर पर तीन लोग जाते हैं। पीपीसी भेजती है। तुम कौन हो? जिसकी विश्वसनीयता होगी, जो चरित्रवान होगा, वही न जाएगा।‘’
New-Doc-2019-02-01-16.00.55जोशी अंत में कहते हैं, ‘’हम लोग जीवन में इतना सम्मान प्राप्त किए, अब अंत में बदनामी हो रही है। मन तो करता है कि नौकरी छोड़ दूं। हम लोग स्वाभिमान वाले आदमी हैं। हमको सब नेता जानते हैं, चाहे अमित शाह के साथ रहने वाला मेनन हो, विनय सहस्रबुद्धे जी हों, सुनील देवघर हों, अनिल बंसल जी हों, मनोज तिवारी से पूछ लीजिए, सब मेरा नाम बताएंगे। अभी देखिए साधुओं ने हमको शंकराचार्य परिषद का संयोजक बना दिया। वहां पर आयोजन करना है हमें, हमको इसके चक्कर में टालना पडा। हम लोग लाखों करोड़ों के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, ये सब को कुछ नहीं करना है… बस…।‘’
आगे की कार्रवाई पर जोशी कहते हैं, ‘’हम तो कुछ नहीं करने वाले हैं। हमने तो पहले ही लिखकर छोटा सा दे दिया था कि ये फेसबुक पर फोटो डाले हैं और हमने आशंका व्यक्त की थी कि लड़के नाराज़ हैं। झगड़ा हो सकता है, और झगड़ा हुआ है। बाकी हम ये सब करते नहीं है। कौन ये सब झगड़े में पड़े।‘’
एक ही विश्वविद्यालय के एक ही विभाग में एक ही राजनीतिक संगठन आरएसएस से संबद्ध इस गुरु-शिष्य युग्म के टकराव से आगे यह मामला प्रशासनिक नजरिये से भी दिलचस्प जान पड़ता है। दोनों ही पक्षों की ओर से कराई गई एफआइआर के दर्ज किए जाने के समय को ध्यान से देखा जाए तो पता चलता है कि वर्मा पर हमले के बाद पहली एफआइआर हमलावरों की तरफ से ही दर्ज की गई।
वर्मा बताते हैं कि हमले के बाद करीब दो-ढाई घंटे तक उन्हें बैठाए रखा गया और मीटिंग हुई जिसके चलते एफआइआर में देरी हो गई। जाहिर है, पहली एफआइआर जब छात्रों की है तो वर्मा की क्रॉस एफआइआर अपने आप कानूनी रूप से कमज़ोर पड़ जाती है। शायद इसीलिए वर्मा ने बाद में अतिरिक्त साक्ष्य वाले अपने आवेदन में मामले पर वजन डालते हुए लिखा है कि उनकी ‘मॉब लिंचिंग’ की कोशिश की गई थी।
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कायदे से किसी घटना में तात्कालिक पीडि़त की एफफआइआर पहले दर्ज की जाती है लेकिन इस मामले में उलट हुआ है, जो पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े करता है। मीडियाविजिल से बातचीत में अरविंद जोशी एक जगह बताते हैं कि कैसे पुलिस ने वर्मा से कुछ सवाल पूछे तो वर्मा उनके जवाब नहीं दे पाए। सवाल उठता है कि पुलिस के वर्मा से जवाब तलब का विवरण कैसे बाहर निकला।
यह मामला फिलहाल इतनी जल्दी थमने वाला नहीं है। जोशी के मुताबिक उनके पास समझौता करने का दबाव डालने के लिए फोन आ रहे हैं लेकिन उनका कहना है कि उनहोंने सब कुछ लिखा-पढ़ी में किया है और उनका कोई निजी लेना-देना इस मामले से नहीं है। दूसरी ओर वर्मा का कहना है कि जिन तस्वीरों के लेकर आरोप लगाया जा रहा है उनकी जांच होगी तो सच्चाई अपने आप सामने आ जाएगी।
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