लोकसभा उपचुनाव – रामपुर सीट पर आज़म ने आख़िर आसिम को क्यों चुना?

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
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समाजवादी पार्टी में अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराज़ चल रहे, हाल ही में ज़मानत पर जेल से 2 साल बाद बाहर आए सपा में इस समय मुलायम सिंह के बाद सबसे सीनियर नेता आज़म ख़ान ने अपने इस फ़ैसले से सबको चौंका दिया। लोकसभा उपचुनावों में रामपुर की सीट पर प्रत्याशी का फ़ैसला, समाजवादी पार्टी या यूं कहें कि अखिलेश यादव ने आज़म ख़ान पर छोड़कर, उनको मनाने की कोशिश की थी। माना जा रहा था कि आज़म ख़ान इस सीट पर अपनी पत्नी तंज़ीन फ़ातिमा को चुनाव लड़वाएंगे क्योंकि ये सीट आज़म ख़ान के इस्तीफ़े से ही खाली हुई थी। लेकिन जब आज़म ख़ान, रामपुर में सपा के ज़िला मुख्यालय दारुल अवाम पहुंचे और प्रत्याशी के नाम का एलान किया तो सभी हैरान हो गए। कारण ये था कि आज़म ख़ान ने अपनी पत्नी की जगह, रामपुर से सपा के नगर अध्यक्ष आसिम रज़ा के नाम का उम्मीदवार के तौर पर एलान कर दिया।

क्यों अहम था ये एलान?

दरअसल आज़म ख़ान की अखिलेश यादव से नाराज़गी कोई छुपी बात नहीं रह गई है। समाजवादी पार्टी में आज़म ख़ान की वरिष्ठता के नाते जो हैसियत होनी चाहिए, वो लगातार ये जताते रहे हैं कि उनको वो जगह नहीं मिली। साथ ही जेल में रहने और अदालती लड़ाई के दौरान भी उन्होंने और उनके परिवार ने ये ज़ाहिर किया है कि उनको समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से वो साथ नहीं मिला, जो उनको मिलना चाहिए था। उनको मनाने के लिए पहले सपा ने उनको ज़मानत दिलाने वाले कपिल सिबल को राज्यसभा के लिए समर्थन दिया तो फिर हाल ही में अखिलेश यादव उनसे मिलने पहुंचे। रामपुर सपा की परंपरागत सीट रही है लेकिन आज़म ख़ान के साथ के बिना, ये सीट जीती नहीं जा सकती है। यही नहीं, इस सीट से आज़म ख़ान ही जीतकर, लोकसभा पहुंचे थे लेकिन विधायक बनने के बाद आज़म ने इससे इस्तीफ़ा दे दिया था। ऐसे में सपा मुखिया ने इस सीट के प्रत्याशी का फ़ैसला आज़म ख़ान पर ही छोड़ा। सबको उम्मीद थी कि आज़म ख़ान की पत्नी यहां से चुनाव लड़ेंगी, उनके नाम से नामांकन पत्र भी खरीद लिया गया था। लेकिन इस अहम सीट पर आज़म ख़ान ने आसिम रज़ा की उम्मीदवारी का एलान कर दिया।

क्या है आज़म ख़ान के दिमाग़ में?

दरअसल आज़म ख़ान जानते हैं कि भले ही अखिलेश यादव ये जताते रहें कि उनको आज़म ख़ान की कोई ख़ास परवाह नहीं है। वे भले ही दूर दिखने की कोशिश करते हुए, आज़म ख़ान के ऊपर अपनी हैसियत साबित करने की कोशिश करते रहें; इस समय समाजवादी पार्टी में उनसे वरिष्ठ नेता कोई नहीं है। वे समाजवादी पार्टी में शुरुआत से हैं, मुलायम सिंह यादव के शुरुआती साथी हैं और सबसे अहम बात ये है कि भले ही पहले, वो यूपी के एकमुश्त वोट बटोर लाने वाले मुस्लिम नेता न रहे हों-अब लंबे समय जेल काटने के बाद, उनके साथ मुस्लिम समाज की सहानुभूति भी है। ऐसे में आज़म का कहीं भी और जाना, अखिलेश और समाजवादी पार्टी के लिए आत्मघाती कदम होगा। यही वजह थी कि न केवल अखिलेश अंततः आज़म ख़ान से मिलने पहुंचे, बल्कि रामपुर लोकसभा सीट का पूरा फ़ैसला उन पर छोड़ दिया।

चारों ओर ये ही ख़बर और चर्चा थी कि आज़म ख़ान की पत्नी ही इस सीट से चुनाव लड़ेंगी। लेकिन आज़म ख़ान, राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। उन्होंने अपनी अना (स्वाभिमान) भी बचा ली कि उन्होंने अपने परिवार से किसी को टिकट नहीं दिया। लेकिन रामपुर सीट से अपना वर्चस्व भी, अपने ही सबसे करीबी शख़्स आसिम रज़ा को टिकट देकर बनाए रखा। यानी कि वे न तो ये दिखाना चाहते हैं कि उन्होंने अखिलेश यादव से, अपने राजनैतिक रसूख़ के लिए किसी तरह की मदद ली और साथ ही रसूख कम भी नहीं होने दिया।

अपने एलान में उन्होंने इशारों-इशारों में अखिलेश यादव से ये भी कह दिया कि वे तो ख़ुद भी पिछला चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे लेकिन वो जानते थे कि कोई और रामपुर में ये काम कर भी नहीं सकता था। यानी कि उन्होंने अखिलेश यादव को एक बार फिर इशारों में ही सही, अपनी ज़रूरत का अहसास कराया है।

कौन हैं आसिम रज़ा?

आसिम रज़ा के नाम का एलान करते आज़म और नामांकन के बाद आसिम (दाएं)

आसिम रज़ा, फिलहाल रामपुर में समाजवादी पार्टी के नगर अध्यक्ष हैं। 59 साल के आसिम रजा, रामपुर शहर के मोहल्ला घेर सैफुदीन खां के रहने वाले है और आज़म ख़ान की ही जाति से हैं, यानी कि ‘पठान’ हैं। प्रॉपर्टी और ठेकेदारी का कारोबार करते हैं। आसिम, 2002 तक कांग्रेस में थे लेकिन 2002 में आज़म ख़ान ही उनको समाजवादी पार्टी में लाए। उसके बाद से वे उनके सबसे विश्वस्त लोगों में से रहे। आज़म ख़ान के प्रति अपनी निष्ठा का भुगतान उन्होंने भी अपने ऊपर 2018 से लगातार दर्ज होने वाले केस झेलकर और जेल जाकर किया। माना जाता है कि जब आज़म जेल में थे, तो वे ही आज़म ख़ान की ओर से उनकी राजनैतिक ज़मीन संभाले रहे। विधानसभा चुनावों में, जेल में बंद आज़म ख़ान की ओर से आसिम ने ही जाकर नामांकन दर्ज करवाया था।

ऐसे में तय है कि आज़म ख़ान ने अपनी ओर से तगड़ा पासा चला है। वैसे भी कम से कम रामपुर की राजनीति में उनकी हैसियत को कम कर के कोई आंक भी नहीं सकता है। भाजपा भी नहीं, जिसे किसी वक्त में आज़म ख़ान के ही करीबी रहे घनश्याम सिंह लोधी को टिकट दिया है।


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