विख्यात लेखिका और सामाजिक-कार्यकर्ता अरुंधती रॉय ने दिल्ली में टीकरी बार्डर स्थित किसान आन्दोलन के संयुक्त दिल्ली मोर्चा से कल अपनी बात कही. उनके संबोधन का लिप्यान्तरण आप सब के लिये प्रस्तुत है-
जिंदाबाद-जिंदाबाद !!
मुझे यहाँ बहुत पहले आना चाहिये था लेकिन मैं इसलिए नहीं आई कि कहीं सरकार आपका कोई नामकरण न कर दे. कहीं आपको आतंकवादी, नक्सलवादी अथवा माओवादी न करार दे. ऐसा मेरे साथ बहुत पहले कई बार हो चुका है. मैं नहीं चाहती थी कि जो कुछ मुझे कहा जाता रहा है वह आपको भी कहा जाये जैसे कि टुकड़े-टुकड़े गैंग, खान मार्केट गैंग, माओवादी वगैरा. मुझे आशंका थी कि कहीं गोदी मीडिया द्वारा ये नाम आप पर भी न थोप दिये जायें. लेकिन आपका नामकरण तो उन्होंने पहले ही कर दिया; इसके लिए आपको मुबारक.
इस आन्दोलन को हराया नहीं जा सकता क्योंकि यह जिंदादिल लोगों का आन्दोलन है. आप हार नहीं सकते. मैं आपको यह बताना चाहती हूँ कि पूरे देश को आपसे उम्मीदें हैं. पूरा देश देख रहा है कि लड़ने वाले दिल्ली तक आ गये हैं और ये लोग हारने वाले लोग नहीं हैं और इसके लिए भी एक बार फिर आप सब को मुबारकबाद.
मुझे इतने सारे लोगों के सामने बोलने का अभ्यास नहीं है फिर भी मैं कहना चाहूंगी कि जो कुछ हम लोग पिछले 20 सालों से लिख रहे थे, अखबारों और किताबों में पढ़ रहे थे; इस आन्दोलन ने उसे एक ज़मीनी हकीकत बना दिया है. इस आन्दोलन ने इस देश के एक-एक आदमी को, एक-एक औरत को समझा दिया है कि आखिर इस देश में हो क्या रहा है!
हर चुनाव से पहले ये लोग आपके साथ खड़े होते हैं, आपसे वोट मांगते हैं और चुनाव खत्म होते ही ये जाकर सीधे अम्बानी, अडानी, पतंजलि और बाहर की बड़ी-बड़ी कम्पनियों के साथ जाकर खड़े हो जाते हैं.
इस देश के इतिहास को देखें तो अंग्रेजों से आज़ादी लेने के बाद इस देश में कैसे-कैसे आन्दोलन लड़े जा रहे थे. जैसे 60 के दशक में लोग आन्दोलन कर रहे थे – जमींदारी खत्म करने के लिये, मजदूरों के हक के लिये. लेकिन ये सब आन्दोलन कुचल दिये गये. 80 के दशक में और उसके बाद लड़ाई थी कि लोग विस्थापित न हों.
जो आज आपके साथ हो रहा है या होने जा रहा है वह आदिवासियों के साथ बहुत पहले से शुरू हो गया था. बस्तर में नक्सली और माओवादी क्या कर रहे हैं, क्यों लड़ रहे हैं ? वे लड़ रहे हैं क्योंकि वहां आदिवासियों की ज़मीन और उनके पहाड़ और नदियाँ बड़ी-बड़ी कम्पनियों को दिये जा रहे हैं. उनके घर जला दिये गये. उन्हें अपने ही गाँवों से बाहर निकाल दिया गया. गाँव के गाँव खत्म कर दिये गये. जैसे नर्मदा की लड़ाई थी.
अब वे बड़े किसान के साथ भी वही खेल खेलने जा रहे हैं. आज इस आन्दोलन में देश का किसान भी शामिल है और मजदूर भी. इस आन्दोलन ने देश को एकता का अर्थ समझा दिया है.
इस सरकार को सिर्फ दो काम अच्छे से करने आते हैं – एक तो लोगों को बांटना और फिर बांट कर उन्हें कुचल देना. बहुत तरह की कोशिशें की जा रही हैं इस आन्दोलन को तोड़ने, बांटने और खरीदने की; लेकिन यह हो नहीं पायेगा.
सरकार ने तो साफ़-साफ़ बता दिया है कि कानून वापस नहीं लिये जायेंगे और आपने भी साफ़ कर दिया है कि आप वापस नहीं जायेंगे. आगे क्या होगा, कैसे होगा – इसे हमें देखना होगा. लेकिन बहुत लोग आपके साथ हैं. यह लड़ाई सिर्फ किसानों की लड़ाई नहीं है.
सरकार को अच्छा लगता है जब महिलायें, महिलाओं के लिये लड़ती हैं; दलित, दलितों के लिये लड़ते हैं; किसान, किसानों के लिये लड़ते हैं; मजदूर, मजदूरों के लिये लड़ते हैं, जाट, जाटों के लिये लड़ते हैं. सरकार को अच्छा लगता है जब सब अपने-अपने कुँए में बैठकर कूदते हैं. लेकिन जब सब एक साथ हो जाते हैं तो उनके लिए बहुत बड़ा खतरा खड़ा हो जाता है. जैसा आन्दोलन आप कर रहे हैं इस तरह का आन्दोलन आज दुनिया में कहीं भी नहीं हो रहा. इसके लिये आप सब बधाई के पात्र हैं.
इस देश में चार सौ से ज्यादा चैनल हैं. जब देश में कोरोना आया तो इसी मीडिया ने मुसलमानों के साथ क्या-क्या नहीं किया ? कितना झूठ बोला गया – कोरोना जिहाद, कोरोना जिहाद करकर के. अब आपके साथ भी वही काम शुरू करने की कोशिश की जा रही है. प्रचारित किया जा रहा है कि इतने लोग आ गये ! बिना मास्क के आ गये !! कोरोना आ जाएगा !!!
यह सरकार जो भी कानून लाती है रात को ही लाती है. नोटबंदी आधी रात को, जी.एस.टी. बिना बातचीत के, लॉकडाउन महज चार घंटे के नोटिस पर और किसानों के लिए जो क़ानून बनाये वे भी किसी से कोई बातचीत किये बिना बना दिये. किसी से भी कोई बातचीत नहीं की गई. पहले ऑर्डिनेंस ले आये अब कहते हैं चलो बातचीत कर लो. सारे काम उलटे तरीकों से हो रहे हैं. बातचीत तो पहले होनी चाहिये थी.
इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कहूंगी. हम सब आपके साथ हैं. हम आपके साथ ही नहीं हैं बल्कि हम भी आप ही हैं. आप भी हम हैं और हम सबको मिलकर लड़ना है. बात सिर्फ इन तीन कानूनों की नहीं है यह एक व्यापक लड़ाई है. लेकिन अभी सरकार को ये क़ानून वापस लेने ही होंगे और यह आन्दोलन हारने वाला नहीं है.
इन्कलाब जिंदाबाद!